ईद उल फितर और ईद उल अजहा में क्या होता है अंतर, जानिए यहां

By मिताली जैन | Jul 07, 2022

मुस्लिम समुदाय के लिए सबसे बड़ा त्योहार होता है ईद। इस्लाम में ईद के दो समर्पित समय हैं जिन्हें मुसलमान पैगंबर मुहम्मद के मार्गदर्शन के अनुसार मनाते हैं। इन्हें ईद उल-फितर और ईद उल-अजहा कहा जाता है। अधिकतर लोग ईद उल-फितर और ईद उल-अजहा को एक ही मान लेते हैं या फिर वह इन दोनों के नाम सुनकर भ्रमित हो जाते हैं। हालांकि, यह दो अलग-अलग उत्सव हैं और उनके पीछे अलग-अलग अर्थ हैं। साथ ही इन्हें मनाने के तरीके में भी भिन्नता देखी जाती है। तो चलिए आज इस लेख में हम आपको ईद उल-फितर और ईद उल-अजहा के बीच के अंतर के बारे में बता रहे हैं-


क्या है ईद उल-फितर

ईद उल-फितर को मीठी ईद कहकर भी पुकारा जाता है। मीठी ईद की तारीख इस्लामिक कैलेंडर जिसे हिजरी सन भी कहा जाता है, के आधार पर तय होती है। इस कैलेंडर के अनुसार 9वां महीना रमजान का है, जिसमें मुसलमान लगातार एक महीने तक रोजे कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस माह उपवास रखने और नेकी करने से उन्हें अल्लाह सबाब देता है। रमजान माह के खत्म होने पर जश्न मनाया जाता है, जिसे ईद-उल फितर कहा जाता है। इस त्योहार को मीठी ईद इसलिए भी कहा जाता है, क्योंकि इस दिन घरों में मीठे पकवान, खासतौर पर सेवई पकाई जाती है। इतना ही नहीं, लोग यह सेवईयां एक-दूसरे को भेंट भी करते हैं। 

इसे भी पढ़ें: ईद उल-अज़हा को लेकर दुनिया भर में रहती है धूम, जानें विभिन्न देशों में इसे कैसे मनाया जाता है

क्या है ईद उल-अजहा 

ईद उल-अजहा का पर्व ईद उल-फितर के करीबन 70 दिनों बाद मनाया जाता है। इसे मुस्लिम समाज के लोग बलिदान के पर्व के रूप में देखते हैं। चूंकि, इस दिन बकरे की कुर्बानी दी जाती है, इसलिए इसे बकरा ईद भी कहा जाता है। यह पैगंबर इब्राहिम की इच्छा का सम्मान करने के लिए एक उत्सव है जो अल्लाह ने उसे करने के लिए कहा था। ऐसा कहा जाता है कि अल्लाह में इब्राहिम ने किसी एक खास चीज की कुर्बानी मांगी, तो हजरत इब्राहिम अपने बेटे को कुर्बान करने के लिए तैयार हो गए। उन्होंने अपनी आंखों पर पट्टी बांधकर अपने बेटे की कुर्बानी दी, लेकिन जब उन्होंने आंखें खोली तो वहां पर एक जानवर की कुर्बानी दी गई थी और इब्राहिम साहब का बेटा जिंदा था। तभी से अल्लाह की राह में सच्ची कुर्बानी के लिए लोग जानवर की कुर्बानी देने लगे। इस त्योहार का एक और महत्वपूर्ण पहलू यह है कि यह सऊदी अरब में मक्का की हज यात्रा के अंत का भी प्रतीक है। ऐसा माना जाता है कि यात्रा पूरी करने के बाद उनके पाप धुल जाते हैं और फिर उन्हें हाजी कहा जाता है।


- मिताली जैन

प्रमुख खबरें

UP: अमेठी छोड़ राहुल रायबलेरी से लड़ने पर हमलावर हुई BJP, कहा- कांग्रेस ने स्वीकार कर ली अपनी हार

मिजोरम में 4.34 करोड़ से अधिक की हेरोइन, विदेशी सिगरेट जब्त

RCB vs GT: प्लेऑफ की उम्मीदें कायम रखने के लिए आरसीबी और गुजरात के बीच करो या मरो मुकाबला

राम मंदिर को लेकर विपक्ष पर बरसे Amit Shah, कहा- वोट बैंक के नाराज होने के डर से वे भगवान राम की प्राण प्रतिष्ठा में नहीं गये