स्वामी को GSTN के ढांचे पर आपत्ति, मोदी को लिखी चिट्ठी

By प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क | Aug 11, 2016

भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के लेखे और संग्रहण के प्रबंधन और नियंत्रण के लिये संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार के कार्यकाल में गठित कंपनी में निजी इकाइयों की बहुलांश हिस्सेदारी को लेकर कड़ी आपत्ति जताई है। स्वामी ने इस बारे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर कहा है कि इस कंपनी को सरकार के स्वामित्व वाले ढांचे में बदला जाना चाहिये। पत्र में उन्होंने कहा है कि वस्तु एवं सेवा कर नेटवर्क (जीएसटीएन) पर नए सिरे से विचार किया जाना चाहिए और इसकी गहन जांच होनी चाहिए। उन्होंने सवाल किया कि कैसे किसी निजी इकाई को बिना सुरक्षा मंजूरी के संवेदनशील सूचनाओं की अनुमति दी जा सकती है।

 

जीएसटीएन कंपनी जीएसटी के लेखे और कर संग्रहण का प्रबंधन तथा नियंत्रण करेगी। स्वामी ने कहा कि इस कंपनी में केंद्र और राज्य सरकारों की संयुक्त हिस्सेदारी 49 प्रतिशत होगी और शेष हिस्सेदारी निजी क्षेत्र की इकाइयों मसलन एचडीएफसी बैंक, आईसीआईसीआई बैंक तथा एलआईसी हाउसिंग फाइनेंस लि. की होगी। इन कंपनियों में विदेशी हिस्सेदारी भी है। उन्होंने आरोप लगाया कि जीएसटीएन ने शुरुआती प्रक्रिया के खर्च और शुल्क को 4,000 करोड़ रुपये दिखाया है। उन्होंने सवाल किया कि कैसे निजी क्षेत्र की मुनाफा कमाने वाली इकाइयों को धारा 25 वाली कंपनी जो कि गैर-लाभ वाली कंपनी है, उसमें बहुलांश हिस्सेदारी दी गई है। उन्होंने कहा कि कर संग्रहण के इस प्रयास में मुख्य खिलाड़ी निश्चित रूप से वह है जो आंकड़ों के संग्रहण का सृजन करेगा। इस मामले में यह केंद्र और राज्य सरकारें होनी चाहिये।

 

स्वामी ने पत्र में कहा कि अन्य सभी चीजें मसलन विभिन्न राज्यों के लिए जीएसटी के प्रतिशत का समायोजन के लिए सिर्फ प्रोग्रामिंग जरूरी है। यह काम सरकार अपने इलेक्ट्रानिक्स विभाग के जरिये करेगी। सरकार ने पहले ही आयकर को संहिताबद्ध किया है। इससे अधिक जटिल कुछ भी नहीं है। उन्होंने कहा कि गृह मंत्रालय से इस पर विचार विमर्श नहीं किया गया है। न ही मंत्रालय ने जीएसटीएन आपरेटरों को कर आंकड़ों तक पहुंच के लिए सुरक्षा मंजूरी दी है।

 

उन्होंने कहा कि वास्तव में इसे गृह मंत्रालय के समक्ष कभी सुरक्षा मंजूरी के लिए नहीं रखा गया जो काफी हैरान करने वाला है। स्वामी ने कहा कि अभी भी समय है जबकि सरकार इसके स्थान पर उचित सरकारी स्वामित्व वाला ढांचा ला सकती है। इस बीच, जीएसटीएन ने शुरुआती प्रक्रिया में ही करीब 4,000 करोड़ रुपये का शुल्क और खर्च बढ़ाकर दिखाया है। ‘'मेरा आपसे आग्रह है कि जीएसटीएन पर नए सिरे से विचार किया जाना चाहिए और इसकी गहनता से जांच होनी चाहिए।’’

 

 

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