झूठ बोलिए बिजली बनाइए (व्यंग्य)

By डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’ | Apr 13, 2024

समाचार पत्र के पहले पन्ने पर छपा था – समुद्री लहरों से बिजली उत्पादन, हुआ फलाँ देश से करार। पढ़कर ज्यादा आश्चर्य नहीं हुआ। अब धरती के भीतर बचा ही क्या है? खुदाई पर खुदाई करते जायेंगे तो खुदा की खुदाई शर्माएगी नहीं तो क्या ब्रेक डैंस करेगी? वह तो बच्चे हैं जो गुब्बारे में हवा भरकर धरती को फुलाए रखे हैं! पेट्रोल के चक्कर में इंसान पे के साथ-साथ टे-टे करते-करते इतना ट्रोल हो रहा है कि पूछो मत। बहुत जल्द डीजल का नाम बदलकर दिल जल करने का प्रस्ताव जनता की संसद में जारी होने वाला है। मिट्टी का तेल तो कब का मिट्टी हो चुका। अब बचा ही क्या धरती में जो उसमें से निचोड़ोगे। ईंधन के बिना जानवर जी सकते हैं, इंसान कतई नहीं। यहाँ खिसकन, घिसकन के लिए भी इंसान ईंधन मांगता है। 


पंचतत्व में विलीन होने से पहले इंसान पंचतत्व की बैंड बजाकर छोड़ता है। ईंधन की भूख ने पंचतत्वों को कहीं का नहीं छोड़ा। वायु, अग्नि, धरा, गगन, जल में से जो मिला, जैसे मिला, जहाँ मिला उसका जैसे चाहा तैसे, जब चाहा तब खूब इस्तेमाल किया। थोड़ी देर के लिए दोस्त की बाइक मिल जाए तो जो कुटाई होती है, वही हालत पंचतत्वों की है। तत्व तो कब के हवा हो गए अब तो केवल इंसानों के लिए पंच बचा है। वैज्ञानिकों ने बहुत पहले कह रखा था कि हिलने-डुलने और हर सड़ने वाली चीज़ से ऊर्जा पैदा की जा सकती है। विश्वास न हो तो इंसान को ही ले लो। यह जितना हिलता-डुलता और सड़ता है उतना ही उत्पात मचाकर छोड़ता है।

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समुद्री लहरों से बिजली पैदा हो न हो इंसानी धड़कनों से जरूर पैदा हो सकती है। सड़ते अंधविश्वासों से अविश्वसनीय बिजली का महारूप तैयार किया जा सकता है। नेताओं की लंबी-लंबी फेंकने से भी ईंधन का विकराल रूप प्रकट हो सकता है। अब तो रेडियो, टीवी, सोशल मीडिया हर जगह इन्हीं फेंकुओं की धूम है। इनकी ईर्ष्यागाथा से विरोधियों के पेट में जो मराड़ पैदा होती है, उससे भी बिजली पैदा की जा सकती है। इन फेंकुओं के मुख पर पाइप लगा दें तो इतनी बिजली पैदा होगी कि आने वाली अनंत पीढ़ियों को बिजली तो क्या किसी चीज की कमी नहीं पड़ेगी। 


कभी-कभी ख्याल आता है कि ईर्ष्या के बजाय झूठ से बिजली पैदा की जाए तो कैसा रहेगा! चूंकि देश में सच आईसीयू में है और झूठ राज कर रहा है, सो इसी से अनंत बिजली तैयार की जा सकती है। इसका सबसे बड़ा लाभ यह होगा कि इसका निर्यात पड़ोसी देशों को किया जा सकता है। जरूरत पड़ी तो पूरी दुनिया को भी। और समय चुनाव का हो तो इतनी बिजली पैदा होती है कि पूरे ब्रह्मांड की लाइटिंग की जा सकती है। इसलिए झूठ बोलते जाइए बिजली के गुन गाते जाइए।


- डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’,

(हिंदी अकादमी, मुंबई से सम्मानित नवयुवा व्यंग्यकार)

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