Madhav Sadashiv Golwalkar Death Anniversary: माधव सदाशिव गोलवलकर ने बनाया था आरएसएस को महान संस्थागत शक्ति

By अनन्या मिश्रा | Jun 05, 2025

आज ही के दिन यानी की 05 जून को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक माधव सदाशिव गोलवलकर का निधन हो गया था। वह मां भारती के अनन्य उपासक, राष्ट्र चिंतक और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के दूसरे सरसंघचालक थे। वह आरएसएस के सबसे प्रभावशाली व्यक्ति माने जाते थे। बता दें कि वह सबसे अधिक 33 सालों तक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक रहे। तो आइए जानते हैं उनकी डेथ एनिवर्सरी के मौके पर संघ के द्वितीय सरसंघचालक माधव सदाशिव गोलवलकर के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...


जन्म और शिक्षा

नागपुर के पास रामटेक में एक मराठी परिवार में 19 फरवरी 1906 को माधवराव सदाशिव गोलवलकर का जन्म हुआ था। उन्होंने साल 1937 में बीएचयू से एमएससी की डिग्री हासिल की थी। वह राष्ट्रवादी नेता और यूनिवर्सिटी के संस्थापक मदन मोहन मालवीय से काफी ज्यादा प्रभावित थे। इसी कारण से उन्होंने बीएचयू में जंतु शास्त्र पढ़ाते थे। इस दौरान उनको गुरुजी का उपनाम मिला था। वहीं साल 1932 में गोलवलकर की हेडगेवार से मुलाकात हुई और इसी के बाद माधव सदाशिव गोलवलकर को बीएचयू में संघचालक नियुक्त किया गया।

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आरएसएस के दूसरे सरसंघचालक

वह आरएसएस के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार की मृत्यु के बाद साल 1940 में आरएसएस के दूसरे सरसंघचालक बने थे। वह हमेशा राजनीति से दूर रहने की सलाह देते थे। क्योंकि गोलवलकर राजनीति को अच्छी चीज नहीं मानते थे। 


आरएसएस और राजनीति के बीच खींची एक लकीर

आज भी आरएसएस और राजनीति के बीच एक लकीर साफ नजर आती है। क्योंकि आरएसएस का सीधे तौर पर कभी भी राजनीति में हस्तक्षेप नहीं रहा है। आरएसएस खुद को हमेशा राजनीति से अलग ही बताता है। इसका उद्देश्य हिंदू समाज को सशक्त बनाना और संगठित करना है। महाभारत के एक श्लोक में राजनीति को वेश्याओं का धर्म बताया गया है। इसी श्लोक को माधवराव गोलवलकर और उनके बाद सभी सरसंघचालक दोहराते थे।


युवाओं के प्रेरणा पुंज

बता दें कि साल 1940 से लेकर 1973 तक गोलवलकर ने सरसंघचालक का दायित्व बड़ी ही कुशलता से निभाया। सरसंघचालक के तौर पर गोलवलकर के 33 साल बहुत महत्वपूर्ण रहे। इन 33 सालों में भारत छोड़ो आंदोलन, विभाजन के पहले और विभाजन के बाद हुआ भीषण रक्तपात, गांधीजी की हत्या, भारत के संविधान का निर्माण, पंडित नेहरू का निधन, भारत-पाक युद्ध आदि अनेक घटनाएं हुईं। इस दौरान गोलवलकर का अध्ययन और चिंतन इतना ज्यादा सर्वश्रेष्ठ रहा कि वह देशभर के युवाओं के लिए प्रेरक पुंज बन गए और पूरे राष्ट्र के दिशा-निर्देशक बन गए थे।


मृत्यु

माधव सदाशिव गोलवलकर ने समाज में रहते हुए एक संन्यासी की तरह अपनी जीवन जिया। वहीं साल 1969 में उनको कैंसर हो गया। जिसके बाद 05 जून 1973 को नागपुर में माधव सदाशिव गोलवलकर का निधन हो गया।

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