Dorabji Tata Death Anniversary: भारत के स्टील मैन थे दोराबजी टाटा, भारत को ओलंपिक में जाने के लिए किया था प्रेरित

आज ही के दिन यानी की 03 जून को दोराबजी जमशेदजी टाटा का निधन हो गया था। उन्होंने टाटा ग्रुप को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाने का काम किया था। निस्वार्थता और परोपकार की भावना उनको अपने पिता से विरासत में मिली थी।
आज के दौर में टाटा कंपनी किसी परिचय की मोहताज नहीं है। इस कंपनी की को नई ऊंचाई तक पहुंचाने में सर दोराबजी जमशेदजी टाटा का अहम योगदान रहा था। आज ही के दिन यानी की 03 जून को दोराबजी जमशेदजी टाटा का निधन हो गया था। उन्होंने टाटा ग्रुप को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाने का काम किया था। निस्वार्थता और परोपकार की भावना उनको अपने पिता से विरासत में मिली थी। तो आइए जानते हैं उनकी डेथ एनिवर्सरी के मौके पर दोराबजी टाटा के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...
जन्म और परिवार
दोराबजी टाटा का जन्म 27 अगस्त 1859 को हुआ था। उनके पिता का नाम जमशेदजी टाटा था और वह सबसे बड़े बेटे थे। देश के महान उद्योगपति सर दोराबजी टाटा बिजनेस अपने पिता से विरासत में मिला था। उन्होंने अपने पिता से बिजनेस के गुण भी सीखे थे। साल 1904 में पिता जमशेदजी टाटा की मृत्यु के बाद दोराबजी टाटा ने टाटा समूह की कमान संभाली थी।
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टाटा स्टील
कंपनी का नेतृत्व संभालने के सिर्फ 3 महीने बाद ही दोराबजी टाटा ने स्टील के क्षेत्र में कदम रखा और साल 1907 में टाटा स्टील और साल 1911 में टाटा पावर की स्थापना की थी। उस दौर में टाटा स्टील देश का पहला इस्पात संयंत्र हुआ करता था। अधिकतर लोहे की खानों का सर्वेक्षण उन्हीं के नेतृत्व में हुआ। दोराबजी टाटा ने कारखाना लगाने के लिए मैंगनीज, कोयला और लोहा समेत इस्पात और खनिज पदार्थों की खोज की। वहीं साल 1910 आते आते ब्रिटिश सरकार की तरफ से उनको नाइटहुड की उपाधि से नवाजा गया।
बता दें कि दोराबजी टाटा समूह के पहले चेयरमैन बने और साल 1908 से लेकर 1932 तक इस पद पर कायम रहे। उन्होंने अपने पिता के सपने को पूरा करने के लिए जमशेदपुर का विकास किया और यह शहर औद्योगिक नगर के तौर पर भारत के नक्शे पर छा गया।
खेल में रुचि
उद्योग के अलावा दोराबजी टाटा को खेलों में भी रुचि थी। उन्होंने कैंब्रिज में बिताए 2 साल में खेलों में अपनी एक अलग पहचान बनाई थी। वह क्रिकेट और फुटबॉल भी खेलना जानते थे और अपने कॉलेज के लिए टेनिस भी खेला था। इसके अलावा दोराबजी एक अच्छे घुड़सवार थे। साल 1920 में उन्होंने भारत को पहली बार ओलंपिक में भाग लेने के लिए प्रेरित किया था। बता दें कि भारतीय ओलंपित परिषद के अध्यक्ष रहते हुए दोराबजी टाट ने साल 1924 में पेरिस ओलंपिक के लिए भारतीय टीम की आर्थिक तौर पर मदद की थी। उन्होंने अपनी मृत्यु से पहले संपत्ति का बड़ा हिस्सा दान कर दिया था। जिसके बाद से दोराबजी टाटा ट्रस्ट की स्थापना हुई थी।
मृत्यु
वहीं 11 अप्रैल 1932 को दोराबजी टाटा यूरोप की यात्रा पर गए थे, इसी यात्रा के दौरान 03 जून 1932 को जर्मनी के बैड किलेनगेन में दोराबजी टाटा का निधन हो गया।
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