By अनन्या मिश्रा | Feb 19, 2025
एम एस गोलवलकर आरएसएस के दूसरे सरसंघचालक थे। वह आरएसएस राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में सबसे प्रभावशाली और प्रमुख शख्सियतों में से एक थे। वह भारत के शुरूआती हिंदू राष्ट्रवादी विचारकों में से एक थे। माधवराव सदाशिव राव गोलवलकर काशी हिंदू विश्वविद्यालय में 'गुरुजी' की उपाधि मिली थी। आज ही के दिन यानी की 19 फरवरी को माधवराव सदाशिव गोलवलकर का जन्म हुआ था। तो आइए जानते हैं उनकी बर्थ एनिवर्सरी के मौके पर माधवराव सदाशिव गोलवलकर के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...
जन्म और शिक्षा
नागपुर के पास रामटेक में एक मराठी परिवार में 19 फरवरी 1906 को माधवराव सदाशिव गोलवलकर का जन्म हुआ था। आरएसएस के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार के निधन के बाद साल 1940 में आरएसएस के दूसरे सरसंघचालक बने। हालांकि वह हमेशा राजनीति से दूर रहने की सलाह देते थे। क्योंकि वह राजनीति को अच्छी चीज नहीं मानते थे। बता दें कि महाभारत के एक श्लोक में राजनीतिक को वेश्याओं का धर्म बताया गया। महाभारत की यह लाइन गुरुजी की राजनीतिक के प्रति थी।
साल 1927 में उन्होंने बीएचयू से एमएससी की डिग्री हासिल की थी। वह राष्ट्रवादी नेता और यूनिवर्सिटी के संस्थापक मदन मोहन मालवीय से बहुत प्रभावित थे। इसी वजह से पढ़ाई पूरी करने के बाद बीएचयू में जंतु शास्त्र पढ़ाया। इस दौरान उन्होंने गुरुजी का उपनाम कमाया था। इसी दौरान गुरुजी के बारे में आरएसएस के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार को एक छात्र ने बताया। फिर साल 1932 में हेडगेवार से मुलाकात की और इसके बाद उनको बीएचयू में संघचालक नियुक्त किया गया।
वकालत और RSS का काम छोड़ दिया
माधवराव सदाशिव गोलवलकर ने सन्यासी बनने के लिए पश्चिम बंगाल में सरगाछी रामकृष्ण मिशन आश्रम के लिए आरएसएस और वकालत का काम छोड़ दिया। गोलवलकर स्वामी अखंडानंद के शिष्य बन गए। जोकि रामकृष्ण के शिष्य और स्वामी विवेकानंद के भाई भिक्षु थे। गोलवलकर ने कथित तौर पर 13 जनवरी 1937 को दीक्षा प्राप्त की और फिर फौरन आश्रम छोड़ दिया। फिर साल 1937 में गुरु की मृत्यु के बाद हेडगेवार की सलाह लेने के लिए अवसाल और अनिर्णय की स्थिति में नागपुर लौट आए। तब गोलवलकर को हेडगेवार ने आश्वस्त किया और आरएसएस के लिए काम करके समाज के प्रति दायित्व को सबसे अच्छे तरीके से पूरा किया जा सकता है।