By नीरज कुमार दुबे | Nov 25, 2025
अफगानिस्तान के वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री अलहाज नूरुद्दीन अज़ीज़ी की भारत यात्रा ने दोनों देशों के ठंडे पड़े आर्थिक संबंधों में नई ऊर्जा भर दी है। अज़ीज़ी ने घोषणा की है कि भारत के साथ “वीज़ा का मुद्दा सुलझा लिया गया है” और अब अफ़गान व्यापारी तथा आम नागरिक काबुल स्थित भारतीय दूतावास से सुगमता से व्यापारिक एवं चिकित्सा वीज़ा प्राप्त कर सकेंगे। हम आपको बता दें कि तालिबान के 2021 में सत्ता में आने के बाद यह पहली बार है जब भारत–अफगानिस्तान संबंधों में इस स्तर की व्यावहारिक प्रगति दर्ज हुई है। काबुल ने व्यापारिक उड़ानों, एयर कॉरिडोर को सस्ता बनाने और कपड़ा उद्योग सहयोग को बढ़ाने पर भी जोर दिया है।
सोमवार को भारत और अफगानिस्तान के बीच कपड़ा व्यापार बढ़ाने को लेकर उच्चस्तरीय बैठक हुई, जिसमें अफ़गानिस्तान ने भारत की कपास और परिधान क्षेत्र की विशेषज्ञता का लाभ उठाने की इच्छा जाहिर की। उल्लेखनीय है कि भारत वर्तमान में अफगानिस्तान को कपड़ा व परिधान का दूसरा सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता है। इसके अलावा, अज़ीज़ी ने भारतीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल से मुलाकात कर व्यापार को 1 अरब डॉलर से ऊपर ले जाने की प्रतिबद्धता जताई। दोनों देशों ने वीज़ा, उड़ान, बैंकिंग, व्यापार-मार्ग, एफएसएसएआई शुल्क में छूट, संयुक्त वाणिज्य मंडल और संयुक्त कार्य-समूह को सक्रिय करने सहित कई बाधाओं को हल करने पर सहमति व्यक्त की।
अज़ीज़ी ने खुलासा किया कि अफगानिस्तान भारत को खनन, कृषि, स्वास्थ्य और निवेश क्षेत्रों में नए अवसर देना चाहता है। पाकिस्तान के साथ हालिया सीमा तनाव और व्यापार रोक के बीच अफगानिस्तान ने यह भी स्पष्ट किया कि वह भारत सहित किसी भी देश के साथ विविधीकृत, सुरक्षित और दीर्घकालिक व्यापारिक मार्गों की तलाश कर रहा है।
देखा जाये तो अफगान वाणिज्य मंत्री नूरुद्दीन अज़ीज़ी की भारत यात्रा सामान्य राजनयिक औपचारिकता भर नहीं थी; यह दक्षिण एशिया के रणनीतिक मानचित्र में एक महत्वपूर्ण मोड़ का संकेत है। वर्षों तक राजनीतिक अनिश्चितता, सुरक्षा चिंताओं और पाक-अफगान तनावों के कारण जो आर्थिक गलियारे बाधित थे, वे एक-एक करके खुलते दिखाई दे रहे हैं। अज़ीज़ी का यह बयान कि “वीज़ा का मुद्दा हल हो गया है” सिर्फ वीज़ा सुविधा की सूचना नहीं, बल्कि बदलते वातावरण की उद्घोषणा है- एक ऐसा वातावरण जिसमें भारत और अफगानिस्तान फिर से स्वाभाविक साझेदारों की तरह आगे बढ़ते दिख रहे हैं।
देखा जाये तो भारत और अफगानिस्तान के ऐतिहासिक संबंध, सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनीतिक, सदैव गर्मजोशी के रहे हैं। लेकिन तालिबान के सत्ता में आने के बाद यह रिश्ता अनिश्चितता में पड़ गया था। अज़ीज़ी की इस यात्रा में दो बातें विशेष रूप से उभरीं- वीज़ा और उड़ानों का पुनर्संचालन तथा कपड़ा, खनन, कृषि और चिकित्सा क्षेत्र में नई साझेदारियाँ। हम आपको बता दें कि अफगानिस्तान के लिए भारत की चिकित्सा सुविधाएँ अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। चिकित्सा वीज़ा की पुनर्बहाली से हजारों अफगानी नागरिकों के लिए राहत का रास्ता खुलेगा और दोनों देशों के बीच मानवीय संबंध और मजबूत होंगे। कपड़ा व्यापार में सहयोग अफगानिस्तान की रोजगार सृजन और उत्पादकता बढ़ाने की प्राथमिकताओं से सीधे जुड़ा है। भारत की तकनीकी विशेषज्ञता अफगान कपास उत्पादकों के लिए वरदान साबित हो सकती है।
इसके साथ ही अफगानिस्तान की भारत के प्रति इस तेज़ी से उभरती सकारात्मकता का सबसे बड़ा सामरिक प्रभाव पाकिस्तान पर पड़ता है। हालिया सीमा संघर्ष, गोलीबारी और हजारों ट्रकों का फंस जाना इस बात का प्रमाण है कि पाकिस्तान पर अत्यधिक निर्भरता कितनी जोखिमपूर्ण है। अफगानिस्तान का यह बयान कि भारत “बेहतर गुणवत्ता और बेहतर शर्तों” वाला साझेदार है, इस निर्भरता के टूटने की शुरुआत है। इसके अलावा, भारत-अफगान प्रत्यक्ष व्यापार मार्गों का पुनःसक्रिय होना जैसे- एयर कॉरिडोर, चाबहार मार्ग, मध्य एशिया के ज़मीनी मार्ग आदि की सक्रियता पाकिस्तान की पारंपरिक “ट्रांजिट शक्ति” को कमजोर करेगी। साथ ही अफगानिस्तान ने पाकिस्तान की दवाइयों के आयात पर 3 महीने का अस्थायी प्रतिबंध लगाया है। यदि व्यापार व्यवस्थित रूप से भारत और ईरान मार्गों की ओर मुड़ गया, तो पाकिस्तान की फार्मा, कृषि और ट्रांजिट लॉजिस्टिक्स को भारी आर्थिक झटका लगेगा।
इसके अलावा, भारत–अफगानिस्तान की बढ़ती साझेदारी केवल द्विपक्षीय लाभ तक सीमित नहीं; इसके प्रभाव क्षेत्रीय हैं। मध्य एशिया, ईरान और अफगानिस्तान में सहयोग भारत की दीर्घकालिक “कनेक्ट सेंट्रल एशिया” नीति की आधारशिला है। अफगानिस्तान का यह भरोसा कि भारत उसके एयर कॉरिडोर, खनन क्षेत्र और कृषि परियोजनाओं में मुख्य साझेदार बनेगा, इस नीति को ठोस आधार देता है। साथ ही चीन CPEC को अफगानिस्तान तक विस्तार देने की कोशिश करता रहा है। लेकिन अफगानिस्तान की भारत के साथ बढ़ती निकटता इस चीनी-पाक भू-राजनीतिक धुरी के प्रभाव को सीमित कर सकती है।
देखा जाये तो यह स्पष्ट है कि तालिबान अपने राजनयिक विकल्पों को व्यापक बनाना चाहता है और पाकिस्तान पर अत्यधिक निर्भरता से निकलने का मार्ग भारत के साथ बेहतर संबंधों से होकर ही जाता है। तालिबानी मंत्री अज़ीज़ी ने बार-बार यह कहा कि अफगानिस्तान “व्यवसाय के लिए खुला” है और भारतीय कंपनियाँ वहां सुरक्षित रूप से कार्य कर सकती हैं। यह बयान खनन व रेयर अर्थ मिनरल्स कंपनियों के लिए शुभ संकेत है। साथ ही कृषि प्रोसेसिंग, खाद्य आयात (FSSAI शुल्क छूट से अफगान उत्पादों का मार्ग आसान), चिकित्सा सेवाएँ व अस्पताल श्रृंखलाएँ, कपड़ा उद्योग प्रशिक्षण और मशीनरी, एयर और समुद्री मार्गों में निवेश आदि क्षेत्रों में सहयोग से व्यापार को 1 अरब डॉलर से ऊपर ले जाने का लक्ष्य सहज संभव लगता है।
देखा जाये तो अज़ीज़ी की यात्रा एक प्रतीक है, एक ऐसे अफगानिस्तान की जो पाकिस्तान की छाया से बाहर निकलकर बहु-आयामी साझेदारियों की तरफ बढ़ना चाहता है। भारत, जो परंपरागत रूप से अफगान जनता का विश्वसनीय मित्र रहा है, उसके लिए यह अवसर है कि वह अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण, आर्थिक स्थिरता और क्षेत्रीय शांति में केंद्रीय भूमिका निभाए। यह साझेदारी केवल आर्थिक नहीं, बल्कि भू-राजनीतिक, सामरिक और मानवीय महत्व वाली है। दक्षिण एशिया में बदलते समीकरणों के बीच, भारत–अफगानिस्तान का यह नया व्यापारिक अध्याय पूरे क्षेत्र की रणनीतिक संरचना को पुनर्परिभाषित कर सकता है और पाकिस्तान के लिए यह एक स्पष्ट संकेत है कि क्षेत्रीय राजनीति में एकतरफा निर्भरता का युग समाप्त हो रहा है।
बहरहाल, अफगान विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी की हालिया सफल भारत यात्रा ने दोनों देशों के बीच संवाद की जमीनी नींव तैयार कर दी थी और उसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए वाणिज्य मंत्री नूरुद्दीन अज़ीज़ी की यह यात्रा भी अत्यंत महत्वपूर्ण साबित हुई। विदेश मंत्री की यात्रा के दौरान बनी राजनीतिक समझ और भरोसे को अज़ीज़ी की व्यापारिक पहलों ने व्यावहारिक रूप दिया। दो सप्ताह के भीतर दोनों उच्चस्तरीय अफगान यात्राओं ने न केवल संवाद की रुकावटें दूर कीं, बल्कि भारत–अफगानिस्तान संबंधों में एक नए “विश्वास बहाली चरण” की शुरुआत भी की। यह क्रमिक द्विपक्षीय सहभागिता स्पष्ट संकेत देती है कि काबुल, नई दिल्ली के साथ अपने राजनीतिक और आर्थिक रिश्तों को दीर्घकालिक दिशा देने को तैयार है और भारत भी इस नए अवसर को खुलकर स्वीकार कर रहा है। दोनों यात्राएँ मिलकर इस बड़े संदेश को मजबूत करती हैं कि दक्षिण एशिया के बदलते परिदृश्य में भारत और अफगानिस्तान स्वाभाविक साझेदार के रूप में फिर से एक-दूसरे के करीब आ रहे हैं।