Major Dhyan Chand Death Anniversary: मेजर ध्यानचंद ने ठुकरा दिया था हिटलर का ऑफर, ऐसे बने थे हॉकी के जादूगर

By अनन्या मिश्रा | Dec 03, 2025

आज ही के दिन यानी की 03 दिसंबर को हॉकी के जादूगर कहलाने वाले ध्यानचंद का निधन हो गया था। मेजर ध्यानचंद ने भारत को तीन ओलंपिक स्वर्ण दिलाने में अहम योगदान दिया था। उनकी बॉल कंट्रोल और गोल करने की क्षमता ने दुनिया भर के खिलाड़ियों और दर्शकों को हैरान कर दिया था। तो आइए जानते हैं उनकी डेथ एनिवर्सरी के मौके पर मेजर ध्यानचंद के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...


जन्म और परिवार

उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में 29 अगस्त 1905 को ध्यानचंद का जन्म हुआ था। इनके पिता का नाम समेश्वर दत्त था। जोकि ब्रिटिश भारतीय सेना में कार्यरत थे। वहीं पिता की राह पर चलते हुए ध्यानचंद भी 16 साल की उम्र में सेना में शामिल हो गए थे। यहीं से उन्होंने हॉकी खेलना शुरू किया और जल्दी ही अपने शानदार प्रतिभा से लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर लिया।

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34 वर्षों तक की भारत की सेवा

साल 1922 से लेकर 1926 के बीच ध्यानचंद ने रेजिमेंटल मैचों में अपने खेल से लोगों को प्रभावित किया। इस दौरान उनको न्यूजीलैंड दौरे के लिए सेना की टीम में मौका मिला। इस दौरान ध्यानचंद के उत्कृष्ट खेल के कारण सेना ने 18 मैच जीते। जहां दो मुकाबले बराबरी के रहे और सिर्फ एक मैच में टीम को हार मिली। ध्यानचंद के शानदार प्रदर्शन से ब्रिटिश आर्मी काफी ज्यादा खुश हुई और पुरुस्कार के तौर पर उनको 'लांस नायक' के पद पर पदोन्नति दी गई। करीब 34 सालों तक देश की सेवा करते हुए ध्यानचंद ने साल 1956 में 'लेफ्टिनेंट' के पद से रिटायरमेंट ले लिया।


तीन ओलंपिक में भारत को दिलाया स्वर्ण

साल 1928 के ओलंपिक के लिए जब भारतीय हॉकी टीम में ध्यानचंद का चयन शुरू हुआ। ऐसे में उनको ट्रायल में बुलाया गया। ध्यानचंद को टीम में चुने गए और फिर 5 मैचों में 14 गोल दागे। भारत ने इस ओलंपिक में अपराजित रहते हुए स्वर्ण पदक जीता। साल 1932 और 1936 के ओलंपिक में ध्यानचंद ने भारत को स्वर्ण दिलाने में अहम भूमिका निभाई। फिर साल 1936 बर्लिन ओलंपिक में भारत ने जर्मनी को 8-1 से हराया। इस मैच में ध्यानचंद के प्रदर्शन से हिटलर काफी प्रभावित हुआ और हिटलर ने ध्यानचंद को जर्मन सेना में उच्च पद का प्रस्ताव दिया। लेकिन ध्यानचंद ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया और देश के प्रति अपने निष्ठा को व्यक्त किया।


ओलंपिक से पहले लिया संन्यास

सेकेंड वर्ल्ड वॉर के बाद साल 1948 के ओलंपिक का समय आया। तब तक ध्यानचंद की उम्र 40 साल से ज्यादा हो चुकी थी। ऐसे में ध्यानचंद ने खुद टीम में शामिल होने से मना कर दिया और युवा खिलाड़ियों को मौका देने के लिए कहा। दो दशकों से अधिक समय तक भारत के लिए खेलते हुए ध्यानचंद ने करीब 400 से ज्यादा गोल किए।


पुरस्कार

खेल में ध्यानचंद के अद्वितीय योगदान के लिए उनको 'पद्म भूषण' से सम्मानित किया गया। वहीं आज देश का सर्वोच्च खेल पुरस्कार 'मेजर ध्यानचंद खेल रत्न' उनके नाम पर दिया जाता है।


मृत्यु

वहीं 03 दिसंबर 1979 को लिवर कैंसर से जूझते हुए ध्यानचंद का निधन हो गया था। ध्यानचंद को पूरे राजकीय सम्मान के साथ अंतिम विदाई दी गई थी।

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