अपनी ओजस्वी रचनाओं से आज भी प्रेरित करते हैं माखनलालजी

By नीरज कुमार दुबे | Apr 04, 2018

माखनलाल चतुर्वेदी देश के ख्यातिप्राप्त कवि और लेखक थे जिन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ अपनी कलम का इस्तेमाल करके युवाओं को जागृत किया। उनकी रचनाएँ व कृतियां आज भी लोकप्रिय हैं। उनका जन्म 4 अप्रैल 1889 को और निधन 30 जनवरी 1968 को हुआ। चतुर्वेदी 1921-22 में असहयोग आंदोलन के दौरान जेल भी गये थे। उनकी कविताएँ देशप्रेम के साथ ही प्रकृति के प्रति प्रेम से भी ओतप्रोत हैं। उनके नाम पर मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में स्थापित किया गया माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय आज सैंकड़ों युवाओं को पत्रकारिता की शिक्षा प्रदान कर रहा है।

माखनलाल चतुर्वेदी का जन्म मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले में बाबई नामक स्थान पर हुआ। उनके पिता नंदलाल चतुर्वेदी प्राथमिक विद्यालय में शिक्षक थे। माखनलाल ने प्राथमिक शिक्षा के बाद घर पर ही संस्कृत, बंगला, अंग्रेजी और गुजराती आदि भाषाओं का ज्ञान प्राप्त किया।

 

कार्यक्षेत्र

माधवराव सप्रे के 'हिन्दी केसरी' ने सन 1908 में जब 'राष्ट्रीय आंदोलन और बहिष्कार' विषय पर निबंध प्रतियोगिता का आयोजन किया तब खंडवा के युवा अध्यापक माखनलाल चतुर्वेदी का निबंध प्रथम चुना गया। अप्रैल 1913 में खंडवा के हिन्दी सेवी कालूराम गंगराड़े ने मासिक पत्रिका 'प्रभा' का जब प्रकाशन शुरू किया तो इसके संपादन की जिम्मेदारी माखनलाल जी को सौंपी गयी। सितंबर 1913 में अध्यापक की नौकरी छोड़ कर वह पूरी तरह पत्रकारिता, साहित्य में रम गये और राष्ट्रीय आंदोलन में अपना योगदान देने लगे।

 

1916 के लखनऊ कांग्रेस अधिवेशन के दौरान माखनलालजी की मुलाकात गणेश शंकर विद्यार्थी, मैथिलीशरण गुप्त और महात्मा गाँधी से हुई। महात्मा गाँधी द्वारा आहूत सन 1920 के 'असहयोग आंदोलन' में महाकौशल अंचल से पहली गिरफ्तारी देने वाले माखनलालजी ही थे। 1930 में सविनय अवज्ञा आंदोलन में भी उन्होंने अपनी गिरफ्तारी दी।

 

पुरस्कार

 

'देव पुरस्कार' हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में सबसे बड़ा पुरस्कार माना जाता था। यह पुरस्कार माखनलाल जी को 'हिम किरीटिनी' के लिए 1943 में दिया गया। 1955 में जब साहित्य अकादमी की स्थापना हुई तो प्रथम पुरस्कार माखनलालजी को ही 'हिम तरंगिनी' के लिए दिया गया। देश के इस महाकवि को मध्य प्रदेश के सागर विश्वविद्यालय ने 'पुष्प की अभिलाषा' और 'अमर राष्ट्र' जैसी ओजस्वी रचनाओं के लिए डी. लिट् की मानद उपाधि भी प्रदान की।

 

1963 में भारत सरकार ने उन्हें 'पद्मभूषण' से अलंकृत किया। लेकिन सितंबर 1967 में उन्होंने विरोध स्वरूप यह सम्मान लौटा दिया। दरअसल उन्होंने राष्ट्रभाषा हिन्दी पर आघात करने वाले राजभाषा संविधान संशोधन विधेयक का विरोध किया था।

 

प्रकाशित कृतियाँ

 

-हिम किरीटिनी, हिम तरंगिनी, युग चरण, समर्पण, मरण ज्वार, माता, वेणु लो गूंजे धरा, बीजुरी काजल आँज रही आदि इनकी प्रसिद्ध काव्य कृतियाँ हैं।

 

-कृष्णार्जुन युद्ध, साहित्य के देवता, समय के पांव, अमीर इरादे: गरीब इरादे आदि माखनलाल जी की प्रसिद्ध गद्यात्मक कृतियाँ हैं।

 

- नीरज कुमार दुबे

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