माखनलालजी का समाचारपत्र ‘कर्मवीर’ बना अनूठा शिलालेख

By लोकेन्द्र सिंह राजपूत | Aug 21, 2025

स्मारक, भवन, परिसर इत्यादि के भूमिपूजन या उद्घाटन प्रसंग पर पत्थर लगाने (शिलालेख) की परंपरा का निर्वहन किया जाता है। यह इस बात का दस्तावेज होता है कि वास्तु का भूमिपूजन/ उद्घाटन / लोकार्पण कब और किसके द्वारा सम्पन्न किया गया। ये शिलालेख एक प्रकार से इतिहास और महत्वपूर्ण घटनाओं के विवरण को समझने में सहायता करते हैं। इन शिलालेखों का एक तयशुदा प्रारूप है, हम सबने देखे ही हैं। किंतु, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल के नवीन परिसर में स्वतंत्रतासेनानी एवं प्रखर संपादक पंडित माखनलाल चतुर्वेदी की प्रतिमा अनावरण के प्रसंग पर लगाया गया शिलालेख अनूठा है और अपने आप में अद्भुत है। मुझे विश्वास है कि ऐसा शिलालेख आपने पहले नहीं देखा होगा। माखनलालजी की प्रतिमा के ‘पेडस्टल’ पर आपको समाचारपत्र का प्रथम पृष्ठ चस्पा दिखायी देगा। दरअसल, समाचारपत्र का यह ‘फ्रंट पेज’ ही दादा माखनलाल चतुर्वेदी की इस प्रतिमा का ‘शिलालेख’ है। यह रचनात्मक और अभिनव शिलालेख अपने सृजनात्मक लेखन के लिए पहचाने जानेवाले विश्वविद्यालय के कुलगुरु श्री विजय मनोहर तिवारी की सुंदर कल्पना है। अगर आप माखनलालजी की प्रतिमा के समीप आ रहे हैं, तो यह शिलालेख आपको विश्वविद्यालय की 35 वर्ष की यात्रा, उसकी उपलब्धियों और भविष्य के स्वप्नों से भेंट करा देगा।


प्रतिमा दादा माखनलाल चतुर्वेदी की है, इसलिए उनके ही समाचारपत्र ‘कर्मवीर’ को शिलालेख बनाया गया है। हम सब जानते हैं कि माखनलालजी और कर्मवीर एक-दूसरे के पर्याय हैं। इस शिलालेख पर क्रांतिकारी समाचार पत्र ‘कर्मवीर’ का पंजीयन क्रमांक- एन.338 भी अंकित है। दादा माखनलाल चतुर्वेदी जब कर्मवीर के प्रकाशन के लिए अनुमति पत्र प्राप्त करने ब्रिटिश शासन के अधिकारी के पास गए थे, उसका रोचक किस्सा है। उस किस्से को आप पढ़िए। वह किस्सा बताता है कि दादा माखनलाल चतुर्वेदी और कर्मवीर की पत्रकारिता के तेवर क्या रहे होंगे। इस शिलालेख पर वह सब विवरण बहुत ही रोचक अंदाज में दर्ज है, जो सामान्य शिलालेखों पर दर्ज रहता है। प्रतिमा का अनावरण कब हुआ? इस प्रश्न का उत्तर आपको समाचारपत्र की ‘फोलिया लाइन’ में मिलेगा, जिसमें अंकित है- “बिशनखेड़ी, भोपाल | भाद्रपद, कृष्ण पक्ष, द्वादशी सम्वत 2082 | बुधवार, 20 अगस्त, 2025”। आठ कॉलम में फैली ‘टॉप बॉक्स न्यूज’ में आपको पता चलेगा कि प्रतिमा का अनावरण विश्वविद्यालय की महापरिषद के माननीय अध्यक्ष एवं मध्यप्रदेश के यशस्वी मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव, प्रसिद्ध कवि डॉ. कुमार विश्वास और कुलगुरु श्री विजय मनोहर तिवारी के द्वारा किया गया। इनके अतिरिक्त स्थानीय विधायक श्री भगवानदास सबनानी, आयुक्त जनसंपर्क डॉ. सुदाम खाड़े, इंदौर लिटरेचर फेस्टीवल के सूत्रधार श्री प्रवीण शर्मा, शब्दवेत्ता श्री अजीत वडनेरकर, वानिकी विशेषज्ञ डॉ. सुदेश वाघमारे सहित अन्य गणमान्य नागरिक उपस्थित रहे। यह लीड न्यूज स्वयं कुलगुरु श्री विजय मनोहर तिवारी ने ही लिखी है। 

इसे भी पढ़ें: दादा माखनलाल चतुर्वेदी की प्रतिमा का अनावरण, एमसीयू के विद्यार्थियों ने राष्‍ट्रीय मीडिया में दिया ऐतिहासिक योगदान: मुख्‍यमंत्री डॉ. यादव

शिलालेख पर प्रतिमा की विशेषताएं भी दर्ज है। जैसे- बहुधातु से निर्मित दादा माखनलाल चतुर्वेदी की यह प्रतिमा 12 फीट ऊंची और 11 सौ किलोग्राम वजनी है।

 

इतना ही नहीं, यह शिलालेख विश्वविद्यालय की 35 वर्ष की गौरवशाली परंपरा से भी परिचय कराता है। साथ ही, पंडित माखनलाल चतुर्वेदी के उस ‘विचार बीज’ का स्मरण भी कराता है, जो विश्वविद्यालय की नींव में है। दक्ष पत्रकारों के निर्माण के लिए एक विद्यापीठ की मूल कल्पना माखनलालजी ने ही की थी, जो 1990 में जाकर माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के रूप में साकार हुई। भोपाल में त्रिलंगा स्थित छोटे-से भवन से शुरू हुई यह यात्रा महाराण प्रताप नगर में स्थित विकास भवन से होकर दो वर्ष पूर्व ही बिशनखेड़ी स्थित 50 एकड़ के परिसर में पहुँच गई है। यह शिलालेख बताता है कि विश्वविद्यालय से दीक्षित होकर निकले विद्यार्थी देश के प्रत्येक मीडिया संस्थान में चमक रहे हैं। पत्रकारिता विभाग से शुरू हुए विश्वविद्यालय में आज 10 शैक्षणिक विभाग हैं। प्रत्येक विभाग की यात्रा और उनके मील के पत्थरों की कहानी भी यह शिलालेख कहता है। 


एक और विशेष बात है कि जिस ‘पेडस्टल’ दादा माखनलाल चतुर्वेदी सुशोभित हैं, उसके चारों और महान विचारों को स्थान दिया गया है। एक वक्तव्य- ‘जन्मभूमि का सम्मान’, महात्मा गांधीजी का है, जिसमें वह बता रहे हैं कि माखनलालजी के जन्मस्थान ‘बाबई’ (अब माखननगर) क्यों जा रहे हैं? गांधीजी कहते हैं कि जिस भूमि ने माखनलालजी को जन्म दिया, उसी भूमि को मैं सम्मान देना चाहता हूँ। दूसरा वक्तव्य- एक कविता ‘जियो सदा माई के लाल’ के रूप में राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त का है। यह कविता उन्होंने माखनलालजी के जन्मदिन के प्रसंग पर लिखी थीं। तीसरा वक्तव्य- ‘लिखना माखनलालजी से सीखा’ फिराक गोरखपुरी का है, जिसमें वह कह रहे हैं- “उनके लेखों को पढ़ते समय ऐसा मालूम होता था कि आदि-शक्ति शब्दों के रूप में अवतरित हो रही है या गंगा स्वर्ग से उतर रही है…”। 


नि:संदेह, यह अनूठा शिलालेख माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्याल को एक अलग पहचान देगा। यह विद्यार्थियों को भी कल्पनाशील एवं सृजनशील होने के लिए प्रोत्साहित करेगा। यह रचनाधर्मिता ही पत्रकारिता का गुणधर्म है। यही अर्जित करने के लिए हम सब देश के अलग-अलग हिस्सों से यहाँ एकत्र आए हैं। 


- लोकेन्द्र सिंह             

सहायक प्राध्यापक, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल (मध्यप्रदेश)

प्रमुख खबरें

December Festival List 2025 : दिसंबर महीने के व्रत-त्योहारों की पूरी सूची, जानें कब, क्या है पूजा का विशेष समय

Video | Putin Ceremonial Welcome | पुतिन का भारत के राष्ट्रपति भवन में हुआ औपचारिक स्वागत, दी गयी 21 तोपों की सलामी, रूसी राष्ट्रपति ने राजघाट पर श्रद्धांजलि दी

हार्दिक पंड्या के प्रशंसकों की दीवानगी के कारण मुश्ताक ट्रॉफी में मैच का स्थल बदला गया

Indian Pickleball League: चेन्नई सुपर वॉरियर्स लगातार चौथी जीत के साथ प्लेऑफ में