Malhar Rao Holkar Death Anniversary: 20 मई को हुई थी मालवा के पहले मराठा सूबेदार की मौत, ऐसे स्थापित किया था साम्राज्य

By अनन्या मिश्रा | May 20, 2023

होलकर राजवंश की स्थापना करने वाले मराठा शासक मल्हार राव होल्कर को एक सफल शासक के तौर पर जाना जाता है। होलकर का शासन मालावा से लेकर पंजाब राज्य तक चलता था। मल्हारराव होलकर मध्य भारत के मालवा इलाके के पहले मराठा सूबेदार थे। बता दें कि साल 1721 में वह पेशवा की सेवा में शामिल हुए थे। इसके बाद अपनी योग्यता के जरिए वह जल्द ही सूबेदार बन गए थे। आज ही के दिन यानी की 20 मई को उनका निधन हो गया था। 


जन्म

पुणे के निकट एक होले गांव में 16 मार्च 1693 को मल्हार राव होल्कर का जन्म एक चरवाहा परिवार में हुआ था। यह अपने माता-पिता की इकलौते बेटे थे। जब होल्कर महज 5 साल के थे, तो इनके पिता का निधन हो गया था। जिसके बाद उनकी मां ने होलकर का पालन-पोषण अपने भाई रदार भोजराजराव बारगल के यहां किया था। मल्हार राव होल्कर बचपन में अपने मामा के यहां भेड़-बकरियां चराने का काम करते थे।


किशोर मल्हार राव के जीवन की घटना

एक बार प्रचंड गर्मी में जब मल्हार राव भेड़-बकरी चराने के दौरान पेड़ की छाया में आराम कर रहे थे। नींद आने पर वह पेड़ के नीचे लेट गए। जब वह सो रहे थे, तब जंगल से एक सांप आया और वह अपने फन से होल्कर के सिर पर छाया देने लगा। जब उनके अन्य साथी जंगल पहुंचे तो वह दृश्य देखकर हैरान रह गए। अन्य लोगों को आसपास देखकर सांप वापस जंगल की ओर चला गया। जब यह सूचना गांव में और होल्कर के मामा और मां को पता चली। तो परिवार ने उसे भेड़ चराने के काम छुड़ा दिया। इसके बाद उनके मामा ने मल्हार राव को सरदार कदम बंदे के सेवा में तैनात सेना की टुकड़ी में शामिल कर दिया।

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मल्हार राव का इतिहास

मल्हारराव होलकर मध्य भारत के मालवा के पहले सूबेदार थे। एक साधारण से परिवार में जन्में मल्हार राव ने शासक के रूप में पंजाब तक अपने साम्राज्य का विस्तार किया था। इसके बाद वह पेशवा बाजीराव प्रथम की सेना में शामिल हो गए। मल्हार राव ने 1746-47 में कालिंजर, अजयगढ़ और जौनपुर के युद्धों में अपनी वीरता और कौशल का परिचय दिया था। इनकी वीरता देश पेशवा ने उनको घुड़सवार टुकड़ी का प्रमुख बना दिया गया। साल 1736 में दिल्ली पर मराठों के जीत में मल्हार राव प्रमुख कमांडर थे। बता दें कि पेशवा उनकी वीरता से खासे प्रभावित थे। जिस कारण पेशवा ने मल्हार राव को मालवा का कुछ इलाका सौंप दिया। वहीं कुछ समय बाद पेशवा ने उनको इंदौर की रियासत भी सौंप दी।


कलिंजर की लड़ाई

मल्हारराव होलकर के पुत्र खंडेराव होलकर अपने पिता के साथ कलिंजर के युद्ध के दौरान मोर्चा संभाले हुए थे। जब एक दिन खंडेराव अपनी पालकी में बैठकर सेना के निरीक्षण का कार्य कर रहे थे। तभी दुश्मन की तोप का गोला उनकी पालकी के पास गिरा। जिसमें खंडेराव की मौत हो गई। अपने पुत्र की मौत पर मल्हार राव एकदम पागल से हो गए थे। हालांकि बेटे की मौत के बाद उन्होंने अपनी पुत्रवधु अहिल्याबाई को सती होने से बचा लिया था। मल्हार राव ने कुमहेर किले को नाश्तेनाबूत करने का प्रण ले लिया था। हालांकि बाद में मराठों और सुरजमल के बीच संधि हो गई थी। जिसके बाद राजा सुरजमल ने खंडेराव के सम्मान में नकी मृत्यु के स्थान पर छत्री का निर्माण करवाया।


मृत्यु

अपने एकलौते पुत्र खंडेराव होलकर को कलिंजर के युद्ध में खोने के बाद मल्हार राव होलकर बीमार और उदास रहने लगे थे। वहीं कुछ पुराने घाव भी उनको काफी तकलीफ देने लगे थे। अचानक तबियत बिगड़ने पर उनका काफी उपचार कराया गया। लेकिन किसी भी दवा ने उन पर कोई असर नहीं किया। जिसके बाद 20 मई 1766 को इस महान योद्धा की आलमपुर में मौत हो गई।

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