Matra Navami 2023: मातृ नवमी व्रत से घर में आती है सुख-समृद्धि

By प्रज्ञा पाण्डेय | Oct 07, 2023

आज मातृ नवमी है, मातृ नवमी पर दिवंगत माता का श्राद्ध किया जाता है इसलिए हम यहां आपको माताओं के लिए मातृ नवमी के पूजा-श्राद्ध विधी के साथ ही मातृ नवमी के महत्व के बारे में बता रहे हैं।


जानें मातृ नवमी के बारे में 

मातृ नवमी अश्विन माह के कृष्ण पक्ष की नवमी को होती है। इस साल 07 अक्टूबर 2023, शनिवार नवमी यानी मातृ नवमी होगी। पितृ पक्ष की शुरूआत हो गई है। इसमें पूरे 15 दिन अलग-अगल तिथियों पर लोग अपने पूर्वजों को याद का उनका श्राद्ध करेंगे। पंडितों का मानना है कि इससे घर में सुख-शांति और समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है। मृत्यु के पश्चात माता की आत्मिक संतुष्टि और शांति के के लिए पूर्ण श्रद्धा से मातृ नवमी पर कामना, प्रार्थना, कर्म और प्रयास करने पर उनकी अनंत यात्रा सफल होती है। 

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मातृ नवमी की तिथि 

पंचांग के अनुसार मातृ नवमी 7 अक्टूबर 2023 को है। यह तिथि माता का श्राद्ध करने के लिये सबसे उपयुक्त दिन होता है। इस तिथि पर श्राद्ध करने से परिवार की सभी मृतक महिला सदस्यों की आत्मा प्रसन्न होती है।


मातृ नवमी 2023 श्राद्ध समय 

कुतुप मूहूर्त- सुबह 11:45 - दोपहर 12:32

रौहिण मूहूर्त- दोपहर 12:32 - दोपहर 01:19

अपराह्न काल- दोपहर 01:19 - दोपहर 03:40


मातृ नवमी का महत्व 

पितृपक्ष में पड़ने वाली हर तिथि का अपना महत्व है लेकिन मातृ नवमी का अपना विशेष महत्व है इसलिए इस तिथि को सौभाग्यवती श्राद्ध तिथि भी कहा जाता है। जीते जी मां परिवार की खुशहाली के लिए हर संभव प्रयास करती है। ऐसे में मातृ नवमी पर दिवंगत माता को याद करते हुए श्राद्ध करने से सभी कष्ट दूर होते हैं, उनकी कृपा से घर फलता फूलता है। मातृ नवमी की तिथि के रोज दिवंगत माताओं, बहुओं और सुहागिन स्त्रियों का पिंडदान होता है। इसी कारण इसे मातृ नवमी श्राद्ध कहते हैं। मातृ नवमी का माताओं का श्राद्ध से परिवार में सुख-समृद्धि बढ़ती है। साथ ही घर की महिलाओं के इस दिन पूजा-पाठ और व्रत से सौभाग्य की प्राप्ति होती है। दिवंगत माताओं के श्राद्ध से उन्हें भी खुशी मिलती है।


मातृ नवमी पर इनसे मिलेगा लाभ 

पंडितों के अनुसार सुबह जल्दी स्नान दोपहर में दक्षिण दिशा में चौकी पर सफेद आसन बिछाएं। मृत परिजन की फोटो रख माला पहनाएं और गुलाब के फूल चढ़ाएं। फोटो के सामने तेल का दीपक जलाएं, उसमें काले तिल डालें। अब विधि विधान से श्राद्ध क्रिया संपन्न करें। इस दिन भूलकर भी किसी महिला का अपमान न करें, घर आए मेहमान, पशु-पक्षी को बिना अन्न-जल जाने के लिए न कहें। जिन विवाहित महिलाओं की मृत्यु नवमी तिथि को हुई हो या जिन महिलाओं की मृत्यु तिथि ज्ञात न हो, उनका श्राद्ध इस दिन पूरे विधि-विधान से किया जाता है। मातृ नवमी माता के श्राद्ध का शास्त्रीय विधान है। इस तिथि पर पुत्रवधू स्त्रियों को भोजन कराना पुण्यकारी होता है।


मातृ नवमी के दिन गरूड़ पुराण और गीता पाठ से होता है लाभ 

मातृ नवमी के रोज गरुड़ पुराण या श्रीमद्भागवत गीता का पाठ करना बहुत शुभ होता है। इस कारण पूजन के समय इनका पाठ करें और उसके बाद उन्हें भोज दें। श्राद्ध के बाद मृत परिजन के लिए भोजन का अंश जरूर निकालें। इस दिन गाय, कौआ, चींटी, चिड़िया और ब्राह्मण को भी भोजन कराना चाहिए. तभी श्राद्ध पूर्ण माना जाएगा। जिस प्रकार पितृ पक्ष में पुत्र अपने पिता, पिता, पूर्वज आदि के लिए तर्पण करते हैं, उसी प्रकार उन घरों के पुत्र-वधू भी अपनी देवतुल्य सास, माता आदि के लिए प्रतिप्रदा से लेकर प्रतिप्रदा तक तर्पण कार्य करते हैं। नवमी. नवमी के दिन महिलाएं आत्मशांति के लिए देवी मां और सास को ब्राह्मण को दान देकर उन्हें संतुष्ट करती हैं। पंडितों का मानना है कि मातृ नवमी के दिन मृत स्त्रियों को प्रणाम करने, भोजन कराने, दान-पुण्य करने और सुहाग की सामग्री चढ़ाने से सुहागन का आशीर्वाद बना रहता है।


अनुष्ठानों में, हिंदू देवताओं के बजाय धुरीलोचन जैसे देवताओं का आह्वान किया जाता है जिनकी आंखें आधी बंद रहती हैं। धुरी का अर्थ है धुआं और लोचन का अर्थ है आंखें; धुएं के कारण उनकी आंखें आधी बंद रहती हैं। कुछ क्षेत्रों में इस दिन श्राद्ध कर्म नहीं किया जाता है। इसके बजाय विवाहित महिला की आत्मा को भोजन या भोजन अर्पित किया जाता है। कुछ लोग इस दिन सुमंगली (विवाहित महिला) को भी खाना खिलाते हैं।


- प्रज्ञा पाण्डेय

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