By नीरज कुमार दुबे | Dec 24, 2025
पाकिस्तान की राजनीति में इस समय बड़ी हलचल देखने को मिल रही है। हम आपको बता दें कि जमीयत उलेमा ए इस्लाम एफ के प्रमुख मौलाना फजलुर रहमान ने अफगानिस्तान में पाकिस्तान सेना की सीमा पार कार्रवाइयों की तुलना भारत के ऑपरेशन सिंदूर से करते हुए इस्लामाबाद की दोहरी सोच को बेपर्दा कर दिया है। पाकिस्तान के वरिष्ठ नेता की ओर से अपने देश की सैन्य नीति पर सवाल उठाये जाने से शहबाज शरीफ सरकार असहज हो गयी है और उससे सीधा जवाब देते नहीं बन रहा है।
हम आपको बता दें कि फजलुर रहमान ने पाकिस्तानी सेना प्रमुख असीम मुनीर के नेतृत्व में अफगानिस्तान के भीतर किए गए हमलों पर सवाल उठाते हुए कहा है कि इन कार्रवाइयों में आम अफगान नागरिक मारे गए हैं। उन्होंने कहा कि अगर पाकिस्तान यह कहता है कि उसने अफगानिस्तान में अपने दुश्मनों को निशाना बनाया और यह उसका अधिकार है तो भारत भी यही कह सकता है कि उसने बहावलपुर और मुरिदके में उन संगठनों के मुख्यालयों पर हमला किया जो कश्मीर में आतंक फैलाते हैं। फिर आपत्ति किस आधार पर की जाए?
फजलुर रहमान ने साफ कहा कि आज वही आरोप अफगानिस्तान पाकिस्तान पर लगा रहा है जो पाकिस्तान भारत पर लगाता रहा है। ऐसे में एक साथ दो विपरीत रुख को सही ठहराना न नैतिक रूप से संभव है न राजनीतिक रूप से। हम आपको बता दें कि फजलुर रहमान की टिप्पणी भारत की उस सैन्य कार्रवाई के संदर्भ में है जिसे दुनिया ऑपरेशन सिंदूर के नाम से जानती है। सात मई की सुबह भारत ने पाकिस्तान और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में नौ आतंकी ठिकानों पर मिसाइल हमले किए थे। इनमें बहावलपुर में जैश ए मोहम्मद का गढ़ और मुरिदके में लश्कर ए तैयबा का मुख्य अड्डा शामिल था। यह कार्रवाई 22 अप्रैल को कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले का जवाब थी जिसमें छब्बीस निर्दोष नागरिक मारे गए थे।
हम आपको यह भी बता दें कि फजलुर रहमान के बयान के बाद पाकिस्तान सरकार में बेचैनी साफ दिखी। रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने उनकी आलोचना को खारिज करते हुए कहा कि अफगानिस्तान में की गई कार्रवाई आतंकियों के खिलाफ थी न कि किसी देश के खिलाफ। लेकिन यह सफाई उस मूल सवाल का जवाब नहीं देती जो फजलुर रहमान ने उठाया है। हम आपको बता दें कि फजलुर रहमान की पार्टी के नेशनल असेंबली में दस सदस्य हैं।
इधर पाकिस्तान और अफगानिस्तान के रिश्ते लगातार बिगड़ते जा रहे हैं। तालिबान की काबुल में वापसी के बाद से सीमा पर तनाव बढ़ा है। पाकिस्तान का आरोप है कि अफगान धरती से आतंकियों को संरक्षण मिलता है जबकि अफगान पक्ष इन आरोपों को सिरे से खारिज करता है। हालिया सीमा झड़पों में अफगान नागरिकों की मौत ने इस टकराव को और भड़काया है। भारत ने भी पाकिस्तान की अफगानिस्तान के खिलाफ सैन्य कार्रवाइयों की आलोचना की है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने स्पष्ट कहा कि निर्दोष अफगान नागरिकों पर हमले निंदनीय हैं।
देखा जाये तो फजलुर रहमान का बयान सिर्फ एक राजनीतिक हमला नहीं है बल्कि पाकिस्तान की सामरिक सोच पर एक तीखा आरोप पत्र है। दशकों से पाकिस्तान सेना यह मानकर चलती रही है कि राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर हर कदम जायज है और उस पर सवाल उठाना देशद्रोह के बराबर है। लेकिन अब यही सवाल भीतर से उठ रहा है और वह भी धार्मिक राजनीति के पुराने खिलाड़ी द्वारा। सामरिक दृष्टि से इसका पहला असर पाकिस्तान की नैतिक स्थिति पर पड़ता है। जब खुद उसके नेता यह स्वीकार करते दिखें कि सीमा पार हमले एक वैध विकल्प हो सकते हैं तो भारत की कार्रवाइयों को अवैध बताने का उसका नैरेटिव कमजोर पड़ जाता है।
साथ ही फजलुर रहमान का बयान भारत के उस तर्क को बल देता है कि आतंक और राजनीति को अलग नहीं किया जा सकता। जब आतंक के खिलाफ कार्रवाई को पाकिस्तान खुद सही ठहराता है तो फिर वही तर्क भारत के लिए गलत कैसे हो सकता है।