सरकार के जबरदस्त 'होमवर्क' की बदौलत ही कामयाब रही कश्मीर पर बैठक

By अशोक मधुप | Jun 28, 2021

अनुमान, अटकलें, अफवाहें खत्म हो गईं। प्रधानमंत्री के साथ जम्मू−कश्मीर के आठ दलों के 14 नेताओं के साथ वार्ता पूरी होते ही जम्मू−कश्मीर में कुछ नया और बड़ा होने की आशंका को विराम मिल गया। प्रधानमंत्री की कश्मीर के 14 नेताओं से बहुत अच्छे वातावरण में बात हुई। नेताओं ने अपनी बात रखी। प्रधान मंत्री ने उनकी बात सुनी। दो साल से बंद बातचीत शुरू हुई। गिले−शिकवे रखे गए। जैसी की उम्मीद थी, ठंडे पड़े रिश्तों से बर्फ पिंघली। सबने साथ−साथ प्रसन्न मुद्रा में फोटो भी खिंचवाई। वार्ता में शामिल अधिकांश नेताओं ने दाव किया कि वार्ता बहुत शानदार रही।


वार्ता अच्छे माहौल में हुई। वार्ता में विरोध हुआ, पर कुछ टूटा नहीं, ये केंद्र की बड़ी सफलता है। केंद्र सरकार का जम्मू−कश्मीर पर वार्ता के लिए वहां के 14 नेताओं को जब प्रस्ताव गया था, तो सब आश्चर्यचकित थे। आशंकित थे। सबको लगता था कि जम्मू−कश्मीर में केंद्र कुछ नया करने जा रहा है। इसीलिए बैठक बुलाई है। मीटिंग का एजेंडा न होना इन अफवाहों को जन्म देने के लिए काफी था। बुलाए गए नेता आशंकित थे। क्या प्रस्ताव आएंगे। डरे थे। सहमे थे। इसीलिए मींटिग से पहले उन्होंने आने वाले प्रस्ताव पर वार्ता की। चिंतन किया। मंथन किया। अपनी योजना बनाई। मीटिंग की सबसे बेहतर बात यह रही कि बुलाये गए सभी नेतागण आए। किसी ने भी बॉयकॉट नहीं किया। लगता था कि बैठक में अनुच्छेद 370 हटाने का मामला जोर−शोर से उठेगा। सबका जोर इसी पर होगा। पर ऐसा नहीं हुआ। ये केंद्र सरकार की कामयाबी मानी जाएगी। उसके होम वर्क की सफलता कही जाएगी।

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वार्ता में शामिल सभी नेताओं ने एक सुर में जम्मू−कश्मीर में चुनाव की मांग की। पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग की। सरकार चाहती भी यहीं थी। सरकार चाहती थी कि वार्ता में आए दल चुनाव कराने की मांग करें। उन्होंने मांग की। सरकार उनके मुख से यही कहलवाना चाहती थी। उनकी चुनाव कराने की मांग आते ही सरकार ने यह कह कर गेंद उनके पाले में डाल दी कि वह भी यही चाहती है। किंतु चुनाव से पहले विधानसभा सीटों का परीसीमन होना है। सरकार इसमें लगी है। सभी दल मिल कर सहयोग करें। इस कार्य को आगे बढ़वाएं ताकि चुनाव जल्दी हो सकें। प्रधानमत्री नरेंद्र मोदी ने  सभी को आश्वस्त भी किया। कहा कि केंद्र वहां जल्दी से जल्दी चुनाव कराना चाहता है। वहां का विकास चाहता है। उन्होंने सभी दलों से इसमें सहयोग की अपील भी की। परिसीमन कार्य में सहयोग भी मांगा।

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एक तरह से इसे एक कामयाब वार्ता कहा जाएगा। हालांकि सब कुछ एक बार में नहीं हो पाया पर ये निश्चित हो गया कि ठंडे पड़े रिश़्तों से बर्फ पिंघलने लगी है। विश्वास बहाली की प्रक्रिया शुरू हुई है। धीरे-धीरे सब ठीक हो जाएगा। इस मीटिंग की एक प्रमुख बात और रही कि कांग्रेस की ओर से कश्मीरी ब्राह्मणों के पुनर्वास की मांग उठी। अब तक भाजपा के अलावा अन्य दल इस मांग पर प्रायः चुप्पी साधे रहते थे। शायद सरकार चाहती भी थी कि यह मांग आए और वह अपने कार्य को आगे बढ़ाए। लगता है कि कांग्रेस के कश्मीरी ब्राह्मणों के विस्थापन की मांग उठने के बाद भाजपा कश्मीर  में अब विकास कार्य के साथ−साथ कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास पर भी जोर देगी।


-अशोक मधुप

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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