साहेब कहीं #MeToo ना हो जाएं, अब डर लगता है !

By मनोज झा | Nov 05, 2018

आजकल मुंबई समेत देश के बड़े महानगरों में जहां देखो वहां मी टू अभियान की चर्चा है। मी टू अभियान ने किसी को नहीं छोड़ा... मोदी सरकार के एक मंत्री की जहां कुर्सी चली गई वहीं बॉलीवुड में बरसों से शराफत का चोला पहने कई चेहरे बेनकाब हो गए। महिलाओं के साथ यौन शोषण के खिलाफ चल रहे इस अभियान में नामी-गिरामी पत्रकार भी लपेटे में आ गए। ‘मी टू’ ने देश में ऐसी लहर पैदा कर दी है कि बॉलीवुड से लेकर अलग-अलग क्षेत्रों में काम करने वाली महिलाएं सामने आकर यौन शोषण से जुड़े अपने अनुभव लोगों से साझा कर रही है। हर रोज कोई न कोई महिला सोशल मीडिया पर अपनी आपबीती सुना रही है। किसी का मामला 10 साल पुराना है तो कोई अपने साथ 5 साल पहले हुए वाकये को लोगों के साथ साझा कर रही है। हर रोज अखबार पलटते ही कोई न कोई बड़ा नाम सामने आ जाता है। किसी बड़ी कंपनी में नौकरी या फिर फिल्मों में काम दिलाने के नाम पर महिलाओं का यौन शोषण होता है ये बात किसी से छिपी नहीं है। लेकिन अबतक किसी का चेहरा इसलिए बेनकाब नहीं होता था क्योंकि महिलाएं अपने साथ हुए वाकये को चुपचाप सहन कर जाती थी। लेकिन आज जमाना सोशल मीडिया का है... अब महिलाएं चुप नहीं बैठनेवाली। अमेरिका और पश्चिम के दूसरे देशों में मी टू मुहिम की कामयाबी ने अपने यहां भी उन महिलाओं के अंदर जोश भर दिया है जो कभी न कभी यौन शोषण का शिकार हो चुकी हैं। ये बात अलग है कि अब भी ज्यादतर मामले बॉलीवुड से ही आ रहे हैं। मशहूर फिल्मकार सुभाष घई, साजिद खान से लेकर कई लोगों का चेहरा पूरी तरह बेनकाब हो गया है। फिल्मों में रोल दिलाने के बहाने महिलाओं को परेशान करनेवाले लोग पूरी तरह डरे हुए हैं। 

 

बॉलीवुड में कुछ लोगों को छोड़कर हर कोई मी टू अभियान का समर्थन कर रहा है...कल तक जो हीरोइन किसी बड़े चेहरे का नाम लेने से डरती थी...आज इस मुहिम के चलते अपने साथ हुई बर्ताव को दुनिया के सामने ला रही है। वैसे अबतक जितने बड़े नामों का चेहरा उजागर हुआ है वो खुद को पाक-साफ बताने में लगे हैं। कोई अपनी छवि खराब करने का आरोप लगा रहा है...तो कोई इसे बदले की भावना से की गई कार्रवाई बता रहा है। किसी की दलील है कि अगर किसी महिला के साथ 10 साल पहले किसी तरह की घटना हुई तो वो अबतक चुप क्यों बैठी रही। कुछ लोगों का मानना है कि  ये सब पब्लिसिटी हासिल करने के लिए किया जा रहा है। लेकिन मैं इस बात से इत्तिफाक नहीं रखता। 

 

अभिनेता नसीरुद्दीन शाह की माने तो महिलाओं का सामने आना अच्छी बात है लेकिन उनके लगाए आरोपों की गंभीरता से जांच भी होनी चाहिए क्योंकि हो सकता है कि मामले का कोई दूसरा पहलू भी हो। लेकिन अगर आप समझ रहे होंगे कि मी टू अभियान को महिलाओं का 100 फीसदी समर्थन हासिल है तो आप गलत हैं। मैंने इसे लेकर जब एक-दो महिलाओं से बात की और उनकी राय जानने की कोशिश की तो उनका कहना था...अगर किसी महिला के साथ यौन शोषण हुआ तो वो 10 या 15 साल तक चुप क्यों बैठी रही ? 

 

सवाल चुप बैठने का नहीं है...सवाल महिलाओं की अस्मिता से जुड़ा है...देर से ही सही मी टू मुहिम ने उन महिलाओं को बोलने की ताकत दी है जो अभी तक घुट-घुट कर जी रहीं थी...आज महिलाएं इस स्थिति में पहुंच गई हैं कि वो लोगों के सामने अपनी बात बेबाकी से रख रही हैं।

 

आज पीड़ित महिला सामने आकर दुनिया को बता रही है कि दफ्तर में अपने केबिन में बुलाकर बॉस ने उसे कहां-कहां छुआ...कभी पगार बढ़ाने के नाम पर शोषण हुआ...तो कभी प्रमोशन के नाम पर... फर्क सिर्फ इतना था कि पहले किसी बॉस का चेहरा बेनकाब नहीं होता था। आज हर बड़े दफ्तर में वो अधिकारी डरा हुआ है जिसने कभी किसी महिला सहकर्मी के साथ इस तरह का बर्ताव किया है।  दफ्तरों में महिलाओं के उत्पीड़न रोकने के लिए विशाखा गाइडलाइंस तो लागू हो गया लेकिन उस पर अमल कभी नहीं हुआ। सच्चाई यही है कि जो काम विशाखा गाइडलाइंस नहीं कर सका अब वो मी टू अभियान कर रहा है। 

 

मेरे कई मित्रों ने बताया कि अब वो दफ्तरों में महिलाओं से हाथ मिलाने से भी परहेज करने लगे हैं...उन्हें लगता है कि क्या पता कभी कोई महिला बुरा मान जाए और उसे बाद में परेशान होना पड़े। मी टू अभियान से लोग कितने डरे हुए हैं इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि बिग बॉस के पूर्व कंटेस्टेंट कमाल राशिद खान ने दुबई और मुंबई में अपने दफ्तर से सभी महिला कर्मचारियों की छुट्टी कर दी है। केआरके की माने तो ऐसा उन्होंने अपनी पत्नी के कहने पर किया है। 

 

मी टू का असर देखिए...अभिनेता दिलीप ताहिल ने अभी हाल ही में एक फिल्म की शूटिंग के दौरान रेप सीन करने से मना कर दिया। जब डायरेक्टर ने बताया कि सीन फिल्म के लिए जरूरी है तो अभिनेता ने कहा पहले हीरोइन से लिखित में लो कि उसे रेप सीन करने से पहले और बाद में कोई दिक्कत नहीं है। अब इसे मी टू का डर नहीं तो और क्या कहेंगे? मुझे लगता है कि हमें मी टू अभियान का समर्थन करना चाहिए....मेरा मानना है कि अगर आप गलत नहीं हैं तो आपको डरने की कोई जरूरत नहीं है।

 

मनोज झा

लेखक पहले पत्रकार रह चुके हैं।

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