विकास को ही लक्ष्य बनाकर आगे बढ़ रही है मोदी सरकार

By अजेंद्र अजय | May 29, 2018

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 27 मई को जो दो दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेसवे व ईस्टर्न पेरिफेरल (पूर्वी परिधीय) एक्सप्रेसवे राष्ट्र को समर्पित किए, उनकी गिनती देश में अब तक निर्मित एक्सप्रेसवे की भांति नहीं की जा सकती है। यह दोनों एक्सप्रेसवे स्मार्ट और हाईटेक सुविधाओं से युक्त हमारी इंजीनियरिंग की मिसाल भी हैं। इन एक्सप्रेसवे पर फर्राटे भरते हुए देश के नागरिक मोदी सरकार के आधुनिक भारत की मजबूत नींव से रूबरू हो सकते हैं और यह भी गर्व कर सकते हैं कि हम तकनीकी के मामले में दुनिया के किसी भी देश से पीछे नहीं हैं। 

दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेसवे लगभग 82 किलोमीटर लंबा होगा। प्रधानमंत्री मोदी ने इसके प्रथम चरण दिल्ली स्थित निजामुद्दीन पुल से उत्तर प्रदेश बॉर्डर तक करीब 9 किलोमीटर लंबे मार्ग का उद्घाटन किया। यह देश का पहला 14 लेन वाला एक्सप्रेसवे है। शुरू के 27 किलोमीटर तक यह 14 लेन का रहेगा और शेष 6 लेन का। प्रधानमंत्री मोदी ने दिसंबर 2015 में इसका शिलान्यास किया था। लगभग 842 करोड़ की लागत से निर्मित प्रथम चरण का कार्य रिकॉर्ड समय में पूरा हुआ। इसके निर्माण का लक्ष्य 30 माह रखा गया था। इसके विपरीत मात्र 18 माह में निर्माण कार्य पूरा हो गया।

 

यह पहला ऐसा एक्सप्रेसवे होगा जिसमें दिल्ली से डासना के बीच 28 किलोमीटर के खंड पर बाइसिकिल ट्रैक भी होगा। केंद्र सरकार ने इस पूरे एक्सप्रेसवे के निर्माण के लिए मार्च 2019 तक का लक्ष्य निर्धारित किया है। इसके निर्माण के बाद दिल्ली से मेरठ तक की यात्रा मात्र 45 मिनट में पूरी की जा सकेगी। इसका लाभ पश्चिम उत्तर प्रदेश के साथ उत्तराखंड को भी मिलेगा। इसके अलावा प्रतिवर्ष उत्तराखंड की यात्रा पर आने वाले लाखों श्रद्धालुओं व पर्यटकों के समय के साथ पैसों की बचत भी होगी।

 

दिल्ली को बाईपास कर हरियाणा और यूपी के शहरों को जोड़ने वाला 135 किलोमीटर लंबा ईस्टर्न पेरिफेरल देश का सबसे तेज एक्सप्रेसवे है। अभी तक यमुना एक्सप्रेसवे पर 100 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से वाहन चलाने की अनुमति थी। मगर अब ईस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेसवे पर 120 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से वाहन दौड़ सकेंगे। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के जाम व प्रदूषण को काफी हद तक दूर करने की क्षमता रखने वाला एक्सप्रेसवे अपनी बनावट, निर्माण शैली व सुविधाओं के लिए लिहाज से विश्वस्तरीय एक्सप्रेसवे की कतार में खड़ा हो गया है। आधुनिक हाईवे ट्रैफिक मैनेजमेंट सिस्टम के जरिए वाहनों को स्पीड,  ट्रैफिक, दुर्घटना, डायवर्जन आदि के बारे में निर्देशित किया जा सकेगा। एक्सप्रेसवे पर बिजली की व्यवस्था सोलर प्लांट के जरिए की जाएगी। तमाम स्थानों पर हमारे ऐतिहासिक स्थलों के प्रतीक चित्र, लाइटिंग, मोटल, खाने-पीने के स्थान आदि इस एक्सप्रेसवे की यात्रा को यादगार बनाने में सफल साबित होंगे। रेन वाटर हार्वेस्टर के जरिए हाईवे को ग्रीन बेल्ट के रूप में तब्दील किया जाएगा। 

 

11 हजार करोड़ की लागत से तैयार इस एक्सप्रेसवे का शिलान्यास प्रधानमंत्री मोदी ने नवंबर 2015 में किया था। यह एक्सप्रेसवे भी अपने निर्धारित लक्ष्य से काफी पहले रिकॉर्ड 500 दिन में तैयार हो गया। एक्सप्रेसवे के निर्माण से 4 घंटे की यात्रा अब सवा घंटे में पूरी की जा सकेगी। 

 

आज हम इन उपलब्धियों के लिए यदि मुस्कुरा रहे हैं तो इसका अवसर उन तमाम इंजीनियरों व श्रमिकों ने हमें प्रदान किया है, जिन्होंने रात-दिन एक कर समय से पहले यह निर्माण कार्य पूरे किए हैं। और इससे बढ़कर रही मोदी सरकार की दृढ़-इच्छाशक्ति। प्रधानमंत्री मोदी ने विकास के लिए मजबूत इंफ्रास्ट्रक्चर को अपनी प्राथमिकताओं में शामिल किया। सरकार ने आधारभूत संरचनाओं के विकास की दिशा में आगे बढ़ते हुए बेहतर कनेक्टिविटी के लिए बेहतर सड़कों के निर्माण पर अपना फोकस किया। प्रधानमंत्री मोदी के इस मिशन को केंद्रीय सड़क परिवहन व राष्ट्रीय राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने पूरे दमखम व कुशलता से धार दी।

 

वर्ष 2014 में मोदी सरकार के सत्ता संभालते वक्त सड़क परिवहन क्षेत्र में बड़ी चुनौतियां थीं। व्यापक भ्रष्टाचार के चलते निवेश का माहौल कम था। तमाम सड़क परियोजनाएं विभिन्न विवादों के चलते लंबित पड़ी हुई थीं। मोदी सरकार के गठन के बाद बाधाएं दूर करने के लिए गंभीर प्रयास किए गए। लंबित ठेकों के विवाद निपटाने में सरकार ने तेजी दिखाई। विवादों को न्यायालय में जाने से रोकने के लिए सरकार ने रणनीतिक कौशलता का परिचय दिया। भूमि अधिग्रहण के मामले में पेचीदगियों को दूर किया गया। किसानों को भूमि का मुआवजा बाजार भाव से अधिक दिया गया।

 

मोदी सरकार ने शुरू में सड़क निर्माण के लिए निर्माण, संचालन और स्थानांतरण (बीओटी) के इकोनॉमी मोड का इस्तेमाल किया। मगर इसके अपेक्षित परिणाम नहीं मिलने पर इंजीनियरिंग, अधिप्राप्ति एवं निर्माण (ईपीसी) का तरीका अपनाया। इसमें सरकार धन की व्यवस्था करती है। निजी कंपनियां एक निश्चित समय अवधि के भीतर निर्माण कार्य पूरा करने का अनुबंध करती हैं। 

 

मोदी सरकार ने सड़क निर्माण से जुड़े नीति-निर्माताओं के मार्गदर्शन के लिए देश में पहली बार 'राजमार्ग क्षमता नियम पुस्तिका' जारी की। राष्ट्रीय राजमार्ग परियोजनाओं में वैल्यू इंजीनियरिंग प्रोग्राम को लागू किया। इसका मकसद परियोजनाओं की लागत में कमी के साथ-साथ पर्यावरण अनुकूलन, नई प्रौद्योगिकी, सामग्री व उपकरणों के उपयोग को बढ़ावा देना था। देश में पहली बार भारतीय पुल प्रबंधन प्रणाली (आईबीएमएस) लांच की गई। इस प्रणाली के लांच होने के बाद पुलों का डाटा बैंक बनाया गया है। इसमें पुलों का पूरा लेखा-जोखा, स्थिति, ढांचा, मरम्मत आदि के बारे में पूरी जानकारी रहेगी। मोदी सरकार सड़क निर्माण में लगे प्रोफेशनल्स, श्रमबल आदि के कौशल में वृद्धि के लिए भी व्यापक कार्यक्रम चलाने को प्रयासरत है। 

 

मोदी सरकार के इन प्रयासों का परिणाम आज दिखने लगा है। यूपीए सरकार के समय में जहां प्रतिदिन 11 से 12 किलोमीटर सड़कों का निर्माण हो रहा था, वहां आज आंकड़ा 27 किलोमीटर प्रतिदिन पहुंच गया है। केंद्र सरकार ने वर्ष 2017-18 के मुकाबले वर्ष 2018-19 में 45 किलोमीटर प्रतिदिन सड़क निर्माण का लक्ष्य निर्धारित किया है। सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने अकेले वित्तीय वर्ष 2017-18 में 9829 किलोमीटर राष्ट्रीय राजमार्ग के निर्माण में एक लाख सोलह हजार करोड़ रुपए खर्च किए। सरकार ने वर्ष 2017-18 से वर्ष 2021-22 तक 5 वर्षों के लिए दीर्घकालीन योजना प्रस्तावित की है। इस दौरान सड़क निर्माण के क्षेत्र में लगभग सात लाख करोड़ रुपये खर्च करने की योजना बनाई गई है।

 

केंद्र सरकार का अनुमान है कि वर्ष 2018-22 की अवधि में सड़क निर्माण योजना से 12.5 करोड़ श्रम प्रतिदिन प्रतिवर्ष सृजित होंगे। इनमें एक करोड़ प्रोफेशनल, 3.5 करोड़ कुशल श्रम दिवस और आठ करोड़ अर्द्ध कुशल व अकुशल श्रम दिनों का सृजन हो सकेगा। यानी सड़क निर्माण का कार्य जहां एक ओर आधारभूत ढांचे के निर्माण में कारगर साबित होगा, वहीं रोजगार सृजन की राह का विस्तार करेगा। 

 

-अजेंद्र अजय 

(लेखक उत्तराखंड भाजपा के मीडिया संपर्क विभाग के प्रमुख हैं)

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