By अभिनय आकाश | Jul 22, 2025
21 जुलाई 2025 दिन सोमवार संसद के मानसून सत्र की कार्यवाही शुरू हुई और शाम होते होते उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। हालांकि उन्होंने अपने इस्तीफे की वजह खराब स्वास्थ्य को बताया। राष्ट्रपति ने उनका इस्तीफा स्वीकार भी कर लिया। केंद्रीय गृह सचिव गोविंद मोहन द्वारा हस्ताक्षरित एक राजपत्र अधिसूचना में गृह मंत्रालय ने धनखड़ के इस्तीफे के पत्र को सार्वजनिक किया। राज्यसभा में आज गृह मंत्रालय की अधिसूचना के बारे में जानकारी दी गई। प्रश्नकाल के लिए उच्च सदन की बैठक दोपहर बारह बजे जब शुरू हुई तो पीठासीन अध्यक्ष घनश्याम तिवाड़ी ने कहा कि गृह मंत्रालय ने संविधान के अनुच्छेद 67 (ए) के तहत उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के तत्काल प्रभाव से इस्तीफे की 22 जुलाई 2025 को एक अधिसूचना जारी की है।
सबसे मजेदार बात इसमें ये रही कि जो जगदीप धनखड़ उपराष्ट्रपति बनने के बाद या उससे पहले जब वो पश्चिम बंगाल के राज्यपाल थे तो बीजेपी के बहुत दुलारे माने जाते थे। लेकिन इसके बाद भी जगदीप धनखड़ विदाई भाषण देने नहीं आए। इसके पीछे कुछ न कुछ तो वजह होगी? पीएम मोदी के पोस्ट पर नजर डालेंगे तो वो महज औपचारिकता लगता है। लगता है जैसे सरकार का बोझ हल्का हो गया। पीएम मोदी ने अपने पोस्ट में कहा कि श्री जगदीप धनखड़ जी को भारत के उपराष्ट्रपति सहित कई भूमिकाओं में देश की सेवा करने का अवसर मिला है। मैं उनके उत्तम स्वास्थ्य की कामना करता हूं।
कुछ हफ्तों पहले संघ प्रमुख मोहन भागवत का एक बयान सामने आया। जिसमें उन्होंने 75 साल को रिटायरमेंट की आयु बताया। 74 वर्षीय भागवत ने कहा था कि मोरोपंत पिंगले ने कहा था कि जब 75 वर्ष की शॉल ओढ़ाई जाती है तो अर्थ होता है कि हमारी उम्र हो चुकी है, अब थोड़ा किनारे हो जाना चाहिए।' भागवत ने कहा कि संघ में प्रसिद्धि से दूर रहते हुए काम कर 75 वर्ष की उम्र के बाद सेवानिवृत्त होने का आदर्श मोरोपंत पिंगले ने पेश किया था। इसका सीधा सा मतलब कि 75 साल का होने पर राजनेता मुख्य राजनीति से संयास ले ले और बाहर बैठे। जिससे नए चेहरों को मौका मिले। अब जब संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा तो सीधा सा मतलब था कि उनका ये मैसेज बीजेपी के संगठन को था। बीजेपी के संगठन को मैसेज गया तो इस बात की चर्चा भी मीडिया में तेज हो चली कि इस साल पीएम मोदी 75 साल के हो जाएंगे। तो क्या नरेंद्र मोदी इस्तीफा देंगे? कुछ लोग जगदीप धनखड़ के इस्तीफे के बाद इसकी चर्चा कर रहे हैं कि क्या पीएम मोदी के लिए कोई रास्ता खाली किया गया है? संघ प्रमुख मोहन भागवत के उस बयान के बाद सबसे पहला विकेट अगर गिरा तो वो जगदीप धनखड़ का है।
जस्टिस यशवंत वर्मा के महाभियोग को लेकर चर्चा की मांग की गई। कार्यमंत्रणा समिति ने इस पर चर्चा के लिए टाइम दे दिया। सरकार से बिना विचार किए जस्टिस वर्मा के ऊपर चर्चा करने के लिए जगदीप धनखड़ तैयार हो गए। कहा जाता है कि सदन के महासचिव से धनखड़ ने कहा कि आप इसको लेकर जो भी जरूरी कार्यवाही हो वो करिए। ये बात सरकार के गले नहीं उतरी। संसदीय कार्यमंत्री से लेकर राज्यसभा के वरिष्ठ नेता जेपी नड्डा से भी कोई चर्चा नहीं हुई। अकेले ही सभापति के फैसला लेने के बाद हॉट टॉक में ही तब्दील हो गई। सूत्रों की माने तो कार्यमंत्रणा समिति की बैठक में संसदीय कार्यमंत्री नहीं पहुंचे। जेपी नड्डा भी नहीं पहुंचे। सिर्फ विपक्ष के सासंद पहुंचे। ये एक बॉयकाट जैसा प्रतीत हुआ। जगदीप धनखड़ ने इसे अपने अहम पर ले लिया। उन्होंने केंद्र से ये सवाल पूछा और कहा कि ऐसा क्यों किया गया। मैं तो सभापति हूं।
टकराव बढ़ा तो इस लेवल पर पहुंच गया कि जेपी नड्डा से जगदीप धनखड़ की सीधी बहस हो गई। कहा जा रहा है कि इसी बीच एक कॉल आई। ये कॉल किसकी थी, इसको लेकर अभी कुछ ज्यादा खुलासा नहीं हुआ है। उसी कॉल में कहा गया कि आपके पास दो विकल्प बचे हैं। अगर आपको पद पर रहना है तो सरकार के हिसाब से रहिए, नहीं तो दूसरा ऑप्शन इस्तीफे का आपके पास है। ये बात जगदीप धनखड़ बर्दाश्त नहीं कर सके और उन्होंने इस्तीफा दे दिया। कहा जा रहा है कि जितना विरोध संसदीय कार्यमंत्री किरेन रिजिजू ने नहीं किया, उससे ज्यादा विरोध जेपी नड्डा ने किया है। भारत के लोकतंत्र के इतिहास में पहली बार हुआ है जब संसद की कार्यवाही चल रही हो और उपराष्ट्रपति ने इस्तीफा दिया हो।