जिन्होंने आरक्षण बढ़ा दिया उनको आरक्षण विरोधी कहना जमता नहीं है

By नीरज कुमार दुबे | Aug 20, 2019

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत की एक टिप्पणी पर आजकल जो राजनीतिक विवाद खड़ा किया जा रहा है वह दर्शाता है कि दुनिया के इस सबसे बड़े स्वयंसेवी संगठन के मुखिया को राजनीतिक विवाद में घसीटने के प्रति राजनीतिक दल कितने लालायित रहते हैं। गत सप्ताहांत दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम में दिये अपने संबोधन में मोहन भागवत ने सिर्फ यही कहा था कि जो आरक्षण के पक्ष में हैं और जो इसके खिलाफ हैं उन लोगों के बीच इस पर सौहार्द्रपूर्ण माहौल में बातचीत होनी चाहिए। उनके इस बयान को लेकर कहा जा रहा है कि संघ आरक्षण खत्म करना चाहता है और यह उसका छिपा हुआ एजेंडा है। लेकिन ऐसा आरोप लगाने वालों से पूछा जाना चाहिए कि इस बयान में कहां आरएसएस ने आरक्षण खत्म करने की बात कही है।

मोहन भागवत के भाषण के एक भाग पर जो अनावश्यक विवाद खड़ा किया जा रहा है वह दुर्भाग्यपूर्ण है। लगभग एक साल पहले यानि पिछले सितंबर माह में नयी दिल्ली के विज्ञान भवन में आरएसएस की ओर से एक व्याख्यान माला का आयोजन किया गया था। इस दो दिवसीय आयोजन में मोहन भागवत ने स्वयं पूरे समय उपलब्ध रह कर संघ के बारे में फैलाये जाने वाले भ्रमों को दूर किया और समाज के सभी वर्गों को यह अवसर प्रदान किया कि वह इस आयोजन में शामिल होकर संघ को समझ सकें, उसको करीब से जान सकें। इस आयोजन में प्रतिभागी रहे अनेकों लोगों ने सीधे संघ प्रमुख से कई मुद्दों पर सवाल किये और उनके जवाब भी मिले। इन प्रश्नों में एक प्रश्न आरक्षण पर संघ की सोच से भी संबंधित था और उसके जवाब में संघ प्रमुख ने यही कहा था कि आरएसएस का मानना है कि सामाजिक असमानता को दूर करने के लिए आरक्षण की जो व्यवस्था हमारे संविधान में की गयी है, वह जारी रहनी चाहिए।

 

अब जरा कांग्रेस और बसपा को देखिये। लोकसभा चुनावों में विभिन्न पार्टियों ने तमाम तरह के भ्रम फैलाये लेकिन जनता ने जिसको सही पाया उसी को ही चुना और कांग्रेस को लगातार दूसरी बार विपक्ष का नेता बनने लायक भी नहीं छोड़ा। वह कांग्रेस और बसपा, जिनको कि लोकसभा चुनावों में दलितों, पिछड़ों का समर्थन नहीं मिला अब वह इनका समर्थन हासिल करने के लिए मोहन भागवत के बयान को आधार बनाकर आरोप लगा रही हैं कि भारतीय जनता पार्टी और आरएसएस दलित विरोधी हैं और दलितों का कल्याण इनके हाथों से नहीं हो सकता।

 

कांग्रेस का कहना है कि दलितों को आरक्षण से जो लाभ मिल रहा है यह इन लोगों को अच्छा नहीं लगता इसलिए जैसे-तैसे करके इस व्यवस्था को खत्म करना चाहते हैं। कांग्रेस कैसे इस मुद्दे पर राजनीति कर रही है यह सोमवार को हुई कांग्रेस की प्रेस कांफ्रेंस में साफ हो गया जब पार्टी के नेता पी.एल. पुनिया ने कहा कि आरएसएस और भाजपा आरक्षण खत्म करना चाहते हैं और इन लोगों ने जब दिल्ली में रविदास मंदिर को गिराया गया तो कह दिया कि ऐसा सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर हुआ। पुनिया ने निशाना साधते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने आदेश किस आधार पर दिया- क्योंकि आपने गलत मास्टर प्लान बनाया। पुनियाजी, आप मास्टर प्लान पर सवाल तो उठा रहे हैं लेकिन इसे बनाने वाली तो आपकी पार्टी की ही सरकारें थीं। सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा है कि इस मुद्दे पर राजनीति नहीं हो लेकिन आप पता नहीं क्यों मान नहीं रहे हैं!

 

जहां तक आरक्षण खत्म करने जैसे आरोपों की बात है तो इस सरकार की छवि आरक्षण पक्षधर की है क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी पहली सरकार के दौरान गरीब सवर्णों को दस प्रतिशत आरक्षण देने का साहस दिखाया था वह भी बिना किसी वर्ग का आरक्षण खत्म किये बगैर। और अगर किसी के मन में कोई भी शंका है आरक्षण के बारे में तो लोकसभा चुनावों के दौरान महाराष्ट्र की एक चुनावी रैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से दिये गये उस भाषण के अंश को दोबारा देख, सुन और सहेज ले जिसमें उन्होंने साफ कहा था- 'जब तक यह मोदी है कोई भी आरक्षण को खत्म नहीं कर सकता।'

 

बहरहाल, आरएसएस से ही क्यों, सभी से वैचारिक मतभेद रखिये लेकिन किसी की बातों को तोड़ मरोड़ कर पेश करने से लाभ नहीं नुकसान ही होता है। संभव है बयानों को गलत तरीके से पेश करने वालों को कोई तात्कालिक लाभ मिल जाये लेकिन आगे चलकर अविश्वासी का ऐसा ठप्पा लगता है जो उतारते नहीं उतरता। आरएसएस पूरी तरह स्पष्ट कर चुका है कि आरक्षण के विषय पर उसका मत यही है कि अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी), अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) और आर्थिक आधार पर पिछड़ों के आरक्षण का (आरएसएस) पूर्ण समर्थन करता है। माना जाना चाहिए कि यह विवाद यहीं समाप्त हो जायेगा। 

 

-नीरज कुमार दुबे

 

 

 

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