By एकता | Sep 14, 2025
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने इंदौर के ब्रिलिएंट कन्वेंशन सेंटर में केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल की पुस्तक 'परिक्रमा कृपासार' के विमोचन समारोह को संबोधित किया। अपने संबोधन में उन्होंने भारत की आस्था को 'प्रत्यक्ष अनुभूति' पर आधारित बताया और कहा कि यह कोई काल्पनिक आस्था नहीं, बल्कि ऐसी आस्था है जिसे कोई भी व्यक्ति अपने प्रयासों से अनुभव कर सकता है।
भागवत ने कहा कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण के लिए प्रत्यक्ष प्रमाण की आवश्यकता होती है, लेकिन आज के समय में खुद को वैज्ञानिक कहने वाले लोगों के पास भी प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं हैं। इसके विपरीत, भारत की आस्था के लिए प्रत्यक्ष प्रमाण मौजूद हैं, जिन्हें प्रयास और प्रयोगों से प्राप्त किया जा सकता है। उन्होंने भारत के गौरवशाली अतीत का उल्लेख करते हुए कहा कि हमारे पूर्वजों द्वारा दी गई 'पवित्रता की चेतना और भावना' के कारण, भारत 3000 वर्षों तक दुनिया का सर्वश्रेष्ठ देश था।
उन्होंने आगे कहा कि उस दौरान तकनीकी प्रगति बहुत अधिक थी, लेकिन पर्यावरण का कोई क्षरण नहीं हुआ। मानव जीवन सुखी और सुसंस्कृत था। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि भारत ने दुनिया का नेतृत्व किया, लेकिन कभी किसी देश पर विजय नहीं पाई, न ही किसी के व्यापार को दबाया या किसी का धर्मांतरण किया। उन्होंने कहा, 'हम जहां भी गए, हमने सभ्यता और ज्ञान दिया, हमने शास्त्रों की शिक्षा दी और जीवन को बेहतर बनाया।'
मोहन भागवत ने विश्व में होने वाले टकरावों का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि दुनिया में संघर्ष इसलिए होते हैं क्योंकि लोग 'भगवान' के एक होने या अनेक होने पर बहस करते हैं। इस पर उन्होंने कहा कि हमारे दार्शनिकों ने हमें इस तरह के टकराव में पड़ने से रोका है और यह सिखाया है कि 'सिर्फ 'भगवान' हैं। और कोई नहीं।'
उन्होंने एकता के महत्व पर बल देते हुए कहा कि दुनिया में टकराव इसलिए होते हैं क्योंकि एक व्यक्ति खुद को दूसरे से श्रेष्ठ समझता है। उन्होंने कहा, 'हम मानते हैं कि हम सब एक हैं, लेकिन क्या हम सबके साथ एकता का व्यवहार करते हैं? नहीं।' उन्होंने समाज में समानता और सद्भाव बनाए रखने की आवश्यकता पर बल दिया।