सड़क हादसों का अधिक शिकार बनते हैं 16-30 वर्ष के युवा

By उमाशंकर मिश्र | Nov 24, 2017

नई दिल्ली, (इंडिया साइंस वायर): भारतीय शोधकर्ताओं के अनुसार 16-30 वर्ष के युवा सड़क हादसों का सबसे अधिक शिकार बनते हैं। नई दिल्ली स्थित जयप्रकाश नारायण अपेक्स ट्रॉमा सेंटर में उपचार के लिए आए सड़क हादसों के शिकार 900 मरीजों के अध्ययन में यह बात उभरकर आई है। सड़क हादसों के शिकार मरीजों में 16-30 वर्ष के युवाओं की संख्या सर्वाधिक 47 प्रतिशत पाई गई है। यह संख्या सड़क दुर्घटनाओं में घायल होने वाले अन्य उम्र के मरीजों की अपेक्षा काफी अधिक है। हादसों में घायल होने वाले मरीजों की औसत उम्र 32 वर्ष थी। अध्ययनकर्ताओं के अनुसार जोखिम भरी ड्राइविंग की युवाओं की प्रवृत्ति हादसों को दावत देती है। 

नई दिल्ली एवं भोपाल स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के शोधकर्ताओं द्वारा किया गया यह अध्ययन हाल में शोध पत्रिका इंडियन जर्नल ऑफ क्रिटिकल केयर मेडिसन में प्रकाशित किया गया है। दुर्घटनाग्रस्त आधे से अधिक पीड़ितों ने माना है कि हादसे के वक्त वे जल्दबाजी में गाड़ी चला रहे थे। अध्ययन में दुर्घटना के समय शराब पीये हुए, मोबाइल फोन उपयोग अथवा सह-यात्री से बातचीत करते या फिर ट्रैफिक जाम से परेशान लोगों की संख्या करीब एक चौथाई थी। पर्याप्त नींद कितनी जरूरी है, यह भी अध्ययन में स्पष्ट हुआ है। करीब 59 प्रतिशत प्रतिभागी दुर्घटना से पिछली रात में महज छह घंटे ही सो पाए थे। छह घंटे से अधिक सोने वाले प्रतिभागियों की संख्या 41 प्रतिशत थी। करीब 28 प्रतिशत सड़क दुर्घटनाएं रात 12 बजे से सुबह छह बजे के बीच होती हैं। वहीं, आधे से अधिक सड़क हादसे सुबह छह बजे से शाम छह बजे के बीच होते हैं। 

 

वरिष्ठ शोधकर्ता डॉ. महेश चंद्र मिश्रा के अनुसार “सड़क हादसों में सबसे अधिक युवा प्रभावित होते हैं। इसका कारण ड्राइविंग करते वक्त उनका जोखिमपूर्ण व्यवहार सबसे अधिक जिम्मेदार है। इस तरह की खतरनाक ड्राइविंग पर लगाम लगाने के लिए जागरूकता कार्यक्रम चलाए जाने चाहिए। सुरक्षा उपाय जैसे- सीट बेल्ट या हेलमेट का उपयोग सुनिश्चित करना भी जरूरी है।” दुर्घटनाग्रस्त वाहन सवारों के घायल होने की एक मुख्य वजह सुरक्षा के प्रति लापरवाही को माना जा रहा है। महज 60 प्रतिशत दुपहिया सवारों ने दुर्घटना के वक्त हेलमेट पहना हुआ था। वहीं, सिर्फ 32 प्रतिशत लोगों ने सीट बेल्ट का उपयोग किया था। 20 प्रतिशत ड्राइवरों के पास लाइसेंस तक नहीं था। 

 

अध्ययनकर्ताओं के मुताबिक दुपहिया वाहन सबसे अधिक सड़क हादसों का शिकार बनते हैं। दुर्घटनाग्रस्त होने वाले वाहनों में 53 प्रतिशत दुपहिया और 39 प्रतिशत चार पहिया वाहन थे। अध्ययन में एक तथ्य यह भी सामने आया है कि एक चौथाई दुर्घटना के मामलों में बस से टक्कर हुई थी। भारी वाहनों से टक्कर के कारण दुर्घटना का प्रभाव अधिक होता है और मरीज की स्थिति ज्यादातर मामलों में गंभीर हो जाती है।  

 

दुर्घटना पीड़ितों को अस्पताल पहुंचाने के लिए अन्य विकल्पों की अपेक्षा सर्वाधिक 45 प्रतिशत मामलों में पुलिस की पीसीआर वैन ही काम आती है। जबकि एंबुलेंस का उपयोग 14 प्रतिशत मामलों में ही देखा गया है। भारत में वर्ष 2015 में सड़क हादसों के 4.64 लाख मामले सामने आए थे, जिनमें 4.82 लाख लोग घायल हुए और 1.48 लाख लोगों की मृत्यु हुई। राजधानी दिल्ली में ही 2015 में आठ हजार से अधिक सड़क हादसे सामने आए, जिनमें 1622 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी। 

 

जन-जागरूकता के अलावा अध्ययन में सड़क हादसों में घायल मरीजों की देखभाल के लिए ट्रॉमा सेवाओं को बेहतर बनाए जाने पर भी जोर दिया गया है। खासतौर पर अस्पताल पहुंचने से पूर्व मरीजों की देखभाल के लिए प्रभावी तंत्र विकसित करने, ढांचागत सुधार और साजो-सामान की आपूर्ति को सुनिश्चित करने पर जोर दिया गया है। इसके अतिरिक्त प्राथमिक उपचार, त्वरित प्रतिक्रिया और मरीजों की देखभाल के लिए मानव संसाधन के प्रशिक्षण और एंबुलेंस सेवाओं को बेहतर करने की भी जरूरत बताई गई है। अध्ययनकर्ताओं की टीम में प्रो. महेश चंद्र मिश्रा के अलावा डॉ. पुनीत मिश्रा, अनिंदो मजूमदार, शशिकांत, संजीव कुमार गुप्ता और सुबोध कुमार शामिल थे। 

 

(इंडिया साइंस वायर)

 

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