महिलाओं के बारे में यह कहना किसी प्रकार की अतिशयोक्ति नहीं है कि नारी समाज की शिल्पकार होती है। वह परिवार और समाज को उत्थान के मार्ग पर ले जाने का अभूतपूर्व सामर्थ्य भी रखती है। इसी मौके पर आशीष श्रीवास्तव ने हर मां की यही कामना कविता लिखी।
करें इक दूजे का सम्मान सभी
सेवाभाव हो सबके मन में
ईर्ष्या को दूर भगाएं सभी
परिवार रहें खुशहाल सभी
मर्यादा का पालन करके
अपने बनाये नियमों पे चलके
बातचीत से हल निकालकर
मिलजुलकर काम करें सभी
परिवार रहें खुशहाल सभी
सुख-समृद्धि आए घर में
रोग-दोष न आएं घर में
आचार-विचार न बिगड़ें किसी के
अच्छी जीवनशैली अपनाएं सभी
परिवार रहें खुशहाल सभी
मतभेद भले ही हो जाएं
मनभेद कभी न होने देना
सद्गुणों को अपना करके
तुलना करने से बचें सभी
परिवार रहें खुशहाल सभी
लालच के जाल, न फंसे कभी
व्यर्थ के विवाद, न पड़ें कभी
बनायें रखें एका हर हाल में
चाहें, परिवार की भलाई सभी
परिवार रहें खुशहाल सभी
शुभ संकल्पों और संस्कारों से
बचकर रहें सदा अहंकारों से
क्रोध-लोभ की आग बुझाएं
सदा हंसमुख रहें सभी
परिवार रहें खुशहाल सभी
अच्छाई की करें प्रसंशा
सादा जीवन हो सबकी मंशा
याद रखें सदा महापुरूषों की शिक्षा
घर के खर्चों में हाथ बंटायें सभी
परिवार रहें खुशहाल सभी
- आशीष श्रीवास्तव