By रेनू तिवारी | May 26, 2023
टीपू सुल्तान जिसे टीपू साहिब या फतेह अली टीपू भी कहा जाता है, मैसूर के टाइगर के नाम से जाना जाता है, मैसूर के सुल्तान थे। टीपू को उनके पिता हैदर अली, जो मैसूर के मुस्लिम शासक थे, के रोजगार में फ्रांसीसी अधिकारियों द्वारा सैन्य रणनीति का निर्देश दिया गया था। टीपू सुल्तान एक शानदार तलवार बाज भी थे। अब सालों बाद मैसूर के 18वीं सदी के शासक टीपू सुल्तान की तलवार लंदन में हुई नीलामी में 1.4 करोड़ पाउंड (1.74 करोड़ डॉलर या 140 करोड़ रुपये) में बिकी है।
नीलामी का आयोजन करने वाले नीलामी घर बोनहम्स ने कहा कि मंगलवार को कीमत अनुमान से सात गुना अधिक थी। बोनहम्स ने आगे कहा कि शासक के साथ प्रमाणित व्यक्तिगत जुड़ाव के साथ तलवार सबसे महत्वपूर्ण हथियार थी। टीपू सुल्तान ने 18वीं शताब्दी के अंत के युद्धों में ख्याति प्राप्त की। उन्होंने 1775 और 1779 के बीच कई मौकों पर मराठों के खिलाफ लड़ाई लड़ी।
टीपू सुल्तान की तलवार ने नीलामी के रिकॉर्ड तोड़े
मैसूर के 18वीं सदी के शासक टीपू सुल्तान के निजी कक्ष से मिली तलवार ने लंदन में बोनहम्स के लिए भारतीय वस्तुओं की नीलामी के सभी रिकॉर्ड को तोड़ दिए हैं। यह इस सप्ताह हुई इस्लामी एवं भारतीय कला बिक्री में 1.4 करोड़ पौंड (जीबीपी) में बिकी है।
टीपू सुल्तान की तलवार को ‘सुखेला’- सत्ता का प्रतीक
वर्ष 1782 से 1799 तक शासन करने वाले टीपू सुल्तान की तलवार को ‘सुखेला’- सत्ता का प्रतीक कहा जाता है। तलवान स्टील की है और इस पर सोने से बेहतरीन नक्काशी की गई है। यह टीपू सुल्तान के निजी कक्ष में मिली थी और ईस्ट इंडिया कंपनी ने हमले में उनके साहस और आचरण के प्रति अपने उच्च सम्मान के प्रतीक के तौर पर जनरल डेविड बेयर्ड को भेंट की गयी थाी। इस हमले में टीपू सुल्तान की मौत हो गई थी जिन्हें ‘टाइगर ऑफ मैसूर’ के नाम से जाना जाता है। यह हमला मई 1799 में हुआ था।
बोनहम्स के इस्लामी और भारतीय कला के प्रमुख और नीलामकर्ता ओलिवर व्हाइट ने मंगलवार को बिक्री से पहले एक बयान में कहा था कि यह शानदार तलवार टीपू सुल्तान से जुड़े उन सभी हथियारों में सबसे बेहतरीन है जो आज भी निजी हाथों में है। उन्होंने कहा कि सुल्तान का इसके साथ घनिष्ठ व्यक्तिगत जुड़ाव था और इसकाउत्कृष्ट शिल्प कौशल इसे अद्वितीय और अत्यधिक वांछनीय बनाता है।
तलवार का मूल्य जीबीपी 1,500,000 और 2,000,000 के बीच था लेकिन इसे अनुमानित तौर पर 14,080,900 में बेचा गया। इस्लामी एवं भारतीय कला की समूह प्रमुख नीमा सागरची ने कहा कि तलवार काअसाधारण इतिहास और बेजोड़ शिल्प कौशल है। उन्होंने कहा कि फोन के जरिए दो लोगों नेजबकि कक्ष में मौजूद एक व्यक्ति ने बोली लगाई और उनके बीच गर्मजोशी से मुकाबला हुआ।
मई 1799 में टीपू सुल्तान का शाही गढ़ श्रीरंगपट्ट्नम तबाह होने के बाद उनके महल से कई हथियारों को हटाया गया था। इसमें कुछ हथियार उनके बेहद करीब थे। सोहलवीं शताब्दी में भारत में पेश किए गए जर्मन ब्लेड के मॉडल के बाद मुगल तलवार निर्माताओं ने इसे बनाया था और इसकी मूठ पर सोने से कैलिग्रफी हुई है और अल्लाह का गुणगान किया गया है।