टाइम के कवर पर मोदी: मैगजीन की टाइमिंग को लेकर उठे सवाल

By संतोष पाठक | May 11, 2019

दुनिया के तमाम विकसित देशों में एक खास तरह का गुण नेताओं के अंदर नजर आता है। राजनीतिक लाभ लेने या फिर चुनावी जीत हासिल करने के लिए वो घरेलू स्तर पर आपस में कितना भी लड़ रहे हो लेकिन जब मुद्दा राष्ट्रीय सम्मान का आता है, सुरक्षा और स्वाभिमान का आता है तो तमाम राजनीतिक दल और उनके नेता एक साथ खड़े नजर आते हैं, एक ही सुर में बोलते नजर आते हैं। अफसोसजनक कहे या दुर्भाग्यपूर्ण लेकिन भारतीय नेताओं में इस गुण का ज्यादातर अभाव ही पाया जाता है। इस बार किस्सा अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका टाइम मैगजीन का है जिसने ठीक लोकसभा चुनाव के बीच भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को फिर से अपने कवर पेज पर जगह दे दी है। इससे पहले 2015 में भी टाइम मैगजीन ने नरेंद्र मोदी पर कवर स्टोरी की थी। लेकिन वो साल दूसरा था ये साल दूसरा है। 2015 में स्टोरी का नाम रखा गया था- Why Modi Matters और 2019 की कवर स्टोरी को शीर्षक दिया गया है– India’s Divider In Chief – जिसका मतलब होता है – भारत को बांटने वाला प्रमुख व्यक्ति। पत्रकार आतिश तसीर ने इस स्टोरी को लिखा है। 

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टाइम की गजब टाइमिंग 

अब जरा टाइम मैगजीन की टाइमिंग पर गौर कीजिए । भारत में लोकसभा चुनाव चल रहे हैं।  दो चरणों का अहम चुनाव होना अभी बाकी है जहां सत्ताधारी पार्टी का बहुत कुछ दांव पर लगा है । इस बीच खबर आती है कि अमेरिका की जानी-मानी अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका टाइम ने मई के अपने नवीनतम अंक के लिए भारत के प्रधानमंत्री मोदी पर कवर स्टोरी की है। मैगजीन के कवर पर नरेंद्र मोदी की इलस्ट्रेटेड तस्वीर लगा कर साथ में लिखा गया है - India’s Divider In Chief । इस मैगजीन को छप कर बाजार में 20 मई को आना है और उससे एक दिन पहले यानी 19 मई को भारत में सभी चरणों के लोकसभा चुनाव समाप्त हो चुके होंगे। शायद इसलिए छठे चरण के चुनाव से दो दिन पहले ही इस कवर स्टोरी को सार्वजनिक कर दिया गया । टाइम मैगजीन ने कवर पेज को ट्वीट करते हुए टीजर दिया है – " Time’s new international cover : Can the World's Largest Democracy Endure Another Five Years of a Modi Government?" जिसका मतलब है कि क्या दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र मोदी सरकार को आने वाले और 5 साल बर्दाश्त कर सकता है ? 

विदेशी मीडिया और भारतीय मानसिकता 

विदेशी मीडिया को लेकर भारतीय नेताओं में एक अलग तरह का मोह देखा जाता रहा है । टाइम जैसी अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका में जब भी किसी भारतीय नेता ( चाहे वो किसी भी दल का हो ) की प्रशंसा छपती है तो उस पार्टी के नेता उछलने लगते हैं । इसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ती लोकप्रियता की संज्ञा देते-देते नेता देश के गौरव और सम्मान के साथ जोड़ने से भी गुरेज नहीं करते। यही वजह है कि कई बार अंतर्राष्ट्रीय मीडिया अपने आपको कई देशों से बड़ा समझने लगता है । विकासशील देशों के मामले में तो आमतौर पर वो ऐसा व्यवहार करते ही रहते हैं लेकिन दुनिया के सबसे विशाल लोकतांत्रिक देश भारत में भी हस्तक्षेप करने का कोई मौका चूकते नहीं है। 

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मोदी सरकार के कार्यकाल पर टाइम की टिप्पणी

टाइम मैगजीन में मोदी के गुजरात के मुख्यमंत्री से देश के प्रधानमंत्री बनने का जिक्र किया गया है। 2014 में उनकी जीत को 30 सालों में सबसे बड़ी जीत बताते हुए उनके पांच साल के कार्यकाल पर भी लिखा गया है । मैगजीन में पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और इंदिरा गांधी का जिक्र करते हुए लिखा गया है कि नरेंद्र मोदी कांग्रेस मुक्त भारत की बात करते हैं और उन्होने भारत की महान शख्सियतों पर राजनीतिक हमले भी किए । मैगजीन के एशिया संस्करण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पांच साल के कार्यकाल की कड़ी आलोचना करते हुए आरोप लगाया गया है कि उन्होने हिन्दू-मुस्लिम भाईचारे को बढ़ाने के लिए कोई भी इच्छा नहीं जताई है। लेख में 1984 के सिख विरोधी दंगो और 2002 के गुजरात दंगों का भी जिक्र किया गया है। 

टाइम के कवर पर विवाद  

टाइम मैगजीन के इस कवर पेज को लेकर विवाद खड़ा हो गया है। हालांकि इस मामले में सबसे पहले और सबसे बड़ा सवाल देश के नेताओं से ही पूछा जाना चाहिए कि विदेशी पत्रिका की तारीफ पर गाल बजाने वाले इन नेताओं ने क्या विदेशी मीडिया को इतनी छूट दे दी है कि वो ठीक चुनाव के बीच धार्मिक आधार पर देश के प्रधानमंत्री की आलोचना कर खुलेआम चुनावी प्रक्रिया को प्रभावित करने की कोशिश करे। सवाल देश की जनता से भी है कि हमारा नेता कैसा है , ये हमें विदेशी मीडिया से जानने – समझने की कोई जरूरत है क्या ? अगर नहीं है तो नेता और जनता दोनों ही जमातों को आगे आकर सधे अंदाज में इसका जवाब जरूर देना चाहिए टाइम मैगजीन को भी और हर उस अंतर्राष्ट्रीय मीडिया संस्थान को जो अपने आपको भारत से ऊपर समझता हो । वर्तमान दौर में तो हमारे पास सोशल मीडिया की बड़ी ताकत भी है । 

- संतोष पाठक

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