Shardiya Navratri 2024: देश भर में धूमधाम से मनाया जाता है नवरात्र पर्व

By शुभा दुबे | Oct 02, 2024

आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक नवरात्र पर्व देश भर में धूमधाम से मनाया जाता है। इस दौरान मां भगवती के नौ विभिन्न रूपों की विधि विधान से पूजा की जाती है। देश के हर भाग में नवरात्र की धूम अलग−अलग तरह से देखने को मिलती है जहां उत्तर भारत में मंदिरों में मां भगवती का पूरे श्रृंगार के साथ पूजन किया जाता है वहीं गुजरात और महाराष्ट्र में गरबा का आयोजन किया जाता है तो बंगाल में मनाया जाने वाला दुर्गोत्सव अलग ही छटा बिखेरता है। ज्यादातर श्रद्धालु पूरे नौ दिन व्रत रखते हैं। मां के मंदिरों विशेष रूप से माता वैष्णों देवी में तो नवरात्र में श्रद्धालुओं का तांता ही लग जाता है।


मां दुर्गा ही संपूर्ण विश्व को सत्ता, स्फूर्ति तथा सरसता प्रदान करती हैं। मां दुर्गा के नौ रूपों में पहला स्वरूप 'शैलपुत्री' के नाम से विख्यात है। कहा जाता है कि पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री रूप में उत्पन्न होने के कारण इनका नाम 'शैलपुत्री' पड़ा। नवरात्रि पर्व के दूसरे दिन मां के दूसरे स्वरूप 'ब्रह्मचारिणी' की पूजा अर्चना की जाती है। दुर्गा जी का तीसरा स्वरूप मां 'चंद्रघंटा' का है। तीसरे दिन की पूजा का नवरात्रि में अत्यधिक महत्व माना गया है। पूजन के चौथे दिन कूष्मा.डा देवी के स्वरूप की उपासना की जाती है। पांचवां दिन स्कंदमाता की उपासना का दिन होता है। स्कंदमाता अपने भक्तों की समस्त इच्छाओं की पूर्ति करती हैं। दुर्गा जी के छठे स्वरूप का नाम कात्यायनी और सातवें स्वरूप का नाम कालरात्रि है। मान्यता है कि नवरात्रि के सातवें दिन मां कालरात्रि की पूजा से ब्रह्मांड की समस्त सिद्धियों का द्वार खुलने लगता है। दुर्गा जी की आठवें स्वरूप का नाम महागौरी है। यह मनवांछित फलदायिनी हैं और इनकी उपासना से श्रद्धालुओं के सभी पाप विनष्ट हो जाते हैं। दुर्गा जी के नौवें स्वरूप का नाम सिद्धिदात्री है। ये सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाली हैं। जो श्रद्धालु इस दिन पूरे विधि−विधान और पूर्ण निष्ठा के साथ साधना करते हैं उन्हें सभी सिद्धियों की प्राप्ति होती है।

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पूजन विधि− वेदी पर रेशमी वस्त्र से आच्छादित सिंहासन स्थापित करें। उसके ऊपर चार भुजाओं तथा उनमें आयुधों से युक्त देवी की प्रतिमा स्थापित करें। भगवती की प्रतिमा रत्नमय भूषणों से युक्त, मोतियों के हार से अलंकृत, दिव्य वस्त्रों से सुसज्जित, शुभलक्षण सम्पन्न और सौम्य आकृति की हो। वे कल्याणमयी भगवती शंख−चक्र−गदा−पद्म धारण किये हुये हों और सिंह पर सवार हों अथवा अठारह भुजाओं से सुशोभित सनातनी देवी को प्रतिष्ठित करें। भगवती की प्रतिमा के अभाव में नवार्णमन्त्र युक्त यंत्र को पीठ पर स्थापित करें और पीठ पूजा के लिये पास में कलश भी स्थापित कर लें। वह कलश पंचपल्लव युक्त, उत्तम तीर्थ के जल से पूर्ण और सुवर्ण तथा पंचरत्नमय होना चाहिये। पास में पूजा की सब सामग्रियां रखकर उत्सव के निमित्त गीत तथा वाद्यों की ध्वनि भी करानी चाहिये। हस्त नक्षत्र युक्त नन्दा तिथि में पूजन श्रेष्ठ माना जाता है। पहले दिन विधिवत् किया हुआ पूजन मनुष्यों का मनोरथ पूर्ण करने वाला होता है। सबसे पहले उपवास व्रत, एकभुक्त व्रत अथवा नक्तव्रत इनमें से किसी एक व्रत के द्वारा नियम करने के पश्चात् ही पूजा करनी चाहिये।


नवरात्र व्रत करने वाले हर श्रद्धालु को चाहिए कि वह इस दौरान नित्य भूमि पर सोये और वस्त्र, आभूषण तथा अमृत के सदृश दिव्य भोजन आदि से कुमारी कन्याओं का पूजन करे। नित्य एक ही कुमारी का पूजन करें अथवा प्रतिदिन एक−एक कुमारी की संख्या के वृद्धि क्रम से पूजन करें अथवा प्रतिदिन दुगुने−तिगुने के वृद्धि क्रम से और या तो प्रत्येक दिन 9 कुमारी कन्याओं का पूजन करें। अपने धन−सामर्थ्य के अनुसार भगवती की पूजा करें। देवी के यज्ञ में धन की कृपणता न करें। पूजा विधि में एक वर्ष की अवस्था वाली कन्या नहीं लेनी चाहिये क्योंकि यह कन्या गन्ध और भोग आद िपदार्थों के स्वाद से बिल्कुल अनभिज्ञ रहती है। कुमारी कन्या वह कही गयी है जो दो वर्ष की हो चुकी हो। तीन वर्ष की कन्या त्रिमूर्ति, चार वर्ष की कन्या कल्याणी, पांच वर्ष की रोहिणी, छह वर्ष की कालिका, सात वर्ष की चण्डिका, आठ वर्ष की शाम्भवी, 9 वर्ष को दुर्गा और दस वर्ष की कन्या सुभद्रा कहलाती है।


व्रती को चाहिए कि वह प्रतिदिन कथा सुनने के बाद माता की आरती करें और उसके बाद देवीसूक्तम का पाठ अवश्य करें। आदिकाल में शुम्भ−निशुम्भ की क्रूरता और प्रकोप इतना फैला हुआ था कि देवता भी भयभीत होकर प्राणों की सुरक्षा के लिए विचलित हो उठे थे। उस समय देवताओं ने एकत्र होकर असुरों का संहार करने वाली, भक्तों का कल्याण करने वाली भगवती दुर्गा की स्तुति की थी। उस स्तुति को देवीसूक्तम का नाम दिया गया। देवीसूक्तम का श्रद्धा व विश्वास से पाठ करने पर अभीष्ट फल प्राप्त होता है।


नवरात्र पर्व की वैसे तो पूरे भारत वर्ष में धूम देखने को मिलती है लेकिन बंगाल में इसकी अलग ही छटा दिखती है। यहां विभिन्न सोसायटियों और संस्थाओं की ओर से दुर्गा पूजा के बड़े बड़े और भव्य पंडाल लगाये जाते हैं जोकि समय के साथ साथ आधुनिक होते जा रहे हैं। इन पंडालों के माध्यम से धार्मिक के साथ ही सामाजिक संदेश भी दिये जाते रहे हैं और हर साल सभी पंडालों के लिए एक थीम तय कर दी जाती है जिससे यह श्रद्धालुओं के लिए और आकर्षक हो जाते हैं। यही नहीं देश के अन्य राज्यों में रहने वाले बंगाली लोग भी दुर्गा पूजा के पंडाल पूरी श्रद्धा के साथ लगवाते हैं और मां दुर्गा की पूजा के इन नौ विशेष दिवसों के दौरान बंगाली संस्कृति से भी अन्यों को रूबरू कराते हैं।


-शुभा दुबे

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