नवाज शरीफ ने पाकिस्तान लौट कर बड़ी हिम्मत दिखाई, जल्द हालात बदलेंगे

By कुलदीप नैय्यर | Jul 18, 2018

पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट ने जनता के मत से दो बार 10 साल के लिए प्रधानमंत्री चुने गए नवाज शरीफ को सजा दी है। इस फैसले के बारे में आम राय है कि यह काफी कठोर है। लंदन में नवाज शरीफ ने फैसले के बारे में सुना तो उन्होंने कहा कि वह पाकिस्तान लौटेंगे। लेकिन पाकिस्तान लौटते ही उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।

 

ऐसा लगता है कि एक बार फिर गैर−फौजी शासकों तथा फौज के बीच टकराव बढ़ रहा है। शायद लोगों ने मजबूती से अपनी बात रखनी शुरू कर दी है, यह फौज को पसंद नहीं आया। जाहिर है कि नवाज शरीफ खाकी वर्दी का समर्थन करने वालों के हाथों का औजार बनना नहीं चाहते थे। लगता है कि फौज को यह अनुमान हो गया था कि नवाज शरीफ की सरकार में वापसी हुई तो इसकी सत्ता के लिए चुनौती पैदा होगी।

नवाज शरीफ के पास इतना ज्यादा पैसा है कि वह जुर्माने की और भी बड़ी रकम चुका सकते थे। सुप्रीम कोर्ट उलझन में थी। वह नहीं चाहती थी कि फौज को उकसाए और दूसरी ओर, वह नवाज शरीफ के साथ न्याय करना चाहती थी। इसलिए उसने उतनी सजा दी जितनी दे सकती थी, लेकिन कानून की हद में रहते हुए।

 

मैंने नवाज शरीफ से लंदन के बीचोंबीच स्थित उनके आलीशान मकान में मुलाकात की थी। उनकी अमीरी से मुझे अचरज नहीं हुआ क्योंकि भारतीय उपमहाद्वीप के कई नेताओं के फ्लैट इंग्लैंड में हैं। अंग्रेजों के 150 साल के शासन ने उनके दिल में बिठा दिया है कि लंदन का मतलब विलासिता और ताकत है।

 

नवाज शरीफ ने मुझे नाश्ते पर बुलाया था। लेकिन मेज पर मांसाहार के बेहतरीन पकवान थे। पाकिस्तान और सऊदी अरब में उनके परिवार के कई कारखाने हैं। इसलिए मुझे इससे कोई अचरज नहीं हुआ कि उनकी पत्नी और बेटी के एक−एक फ्लैट लंदन में हैं। जहां तक शरीफ का सवाल है, उनके खिलाफ कोई अभियोग नहीं लगा है। उन्होंने खुद भी इस बात पर जोर दिया है।

 

आरापों की सच्चाई का पता लगाना मुश्किल है। जब आखिरी शब्द फौज की ओर से ही आने हैं तो हर आरोप सही नहीं भी हो सकते हैं। बेशक, पाकिस्तान में न्यायपालिका स्वतंत्र है, लेकिन उसे ऐसे हालात से बच कर रहना पड़ता है जो फौज को चुनौती की तरह लगे। ऐसा मालूम पड़ता है कि हर दबाव और धमकियों के बावजूद दो जजों ने जुल्फिकार भुट्टो को फांसी की सजा दिए जाने का विरोध किया था। उन्होंने चुपके से देश छोड़ दिया क्योंकि उन्हें अपनी हत्या का डर था।

 

नवाज शरीफ अपने विपरीत आए फैसले से भागना नहीं चाहते हैं। इसलिए वह पाकिस्तान वापस आये और जेल गये। लोकप्रिय बने रहने के लिए नेताओं को यह कीमत चुकानी पड़ती है। ऐसा नहीं होगा तो लोगों को लगेगा कि वे अपने विरोध में दिए जाने वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले की परवाह नहीं करते।

 

एक समय था जब देश चलाने में भूमिका मांग रही फौज के हमलों से अपनी लोकतांत्रिक व्यवस्था की रक्षा के लिए पाकिस्तान के लोग सड़कों पर उतर आए थे। आज वे ही लोग चाहते हैं कि लोकतांत्रिक ढांचे के बचे−खुचे हिस्से के लिए फौज लोगों के बचाव में आए।

 

इसे लोगों ने प्रत्यक्ष देखा जब जनता के मत से चुने गए प्रधानमंत्री नवाज शरीफ सहयोग का आग्रह करने सेनाध्यक्ष जनरल रहील शरीफ से मिले। नवाज शरीफ ने सोचा कि एक गैर−फौजी प्रधानमंत्री के रूप में फौजी सहायता मांग कर वह आसानी से बच निकल सकते हैं। लेकिन फौज ने एक प्रेस बयान जारी कर बताया कि प्रधानमंत्री ने आग्रह किया जिसे फौज ने ठुकरा दिया। फौज की दलील थी कि एक लोकतांत्रिक ढांचे में फौज की परंपरागत भूमिका देश की रक्षा की है, उसे चलाने की नहीं।

 

वास्तव में, पद से हटाए गए प्रधानमंत्री ने अपने ऊपर यह मुसीबत खुद ही ली। उनके कुशासन ने लोगों को उनसे दूर कर दिया था। वे चाहते थे कि वह और उनके भाई पंजाब के मुख्यमंत्री शहबाज शरीफ पद छोड़ें और मध्यावधि चुनाव कराएं। इसके बदले, नवाज शरीफ ने अपने समर्थन का प्रस्ताव संसद से पारित करा लिया। इससे हालत सुधारने में कोई मदद नहीं मिली क्योंकि उनके दोनों विरोधी, तहरीक−ए−इंसाफ के इमरान खान तथा पाकिस्तान अवामी तहरीक के कादरी जनता की नुमाइंदगी करते थे।

 

नवाज शरीफ का विरोध करने वाले कुछ नेताओं ने मध्यावधि चुनाव की मांग की थी। उनका सोचना था कि लोग लोग फिर से तय करें कि वे नवाज शरीफ को देश चलाने देना चाहते हैं या किसी और को। अधिक दिन नहीं हुए थे कि फौज ने नवाज शरीफ को प्रधानमंत्री के पद से नीचे उतारा था। हस्तक्षेप का आग्रह करने वह सेनाध्यक्ष से मिले, यह पूरी तरह घूम जाना था। उन्होंने यह नहीं समझा कि जब भी उसे लगेगा या परिस्थितियों की मांग होगी, फौज तख्ता पलटने से हिचकेगी नहीं। यही वजह है कि नवाज शरीफ ने अपने बयानों में संसदीय लोकतंत्र का जिक्र किया ताकि इस पर जोर दिया जा सके कि सेना की भूमिका ज्यादा से ज्यादा, अस्थाई होगी।

 

मैं बंटवारे के बाद पहली बार नवाज शरीफ से दिल्ली में मिला था जब वह पंजाब के मुख्यमंत्री थे। उन्होंने बिना देरी किए कहा कि मैं सियालकोट से हूं। उन्होंने कहा कि मेरी पंजाबी में एक विशेष किस्म का जायका है, एक तरह का उच्चारण जो सिर्फ सियालकोट के रहने वालों की बोली में होता है।

 

लाहौर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नवाज शरीफ से मुलाकात से एक नए अध्याय की शुरूआत होनी चाहिए थी। दोनों देशों ने न केवल दोस्ती बढ़ाई होती बल्कि क्षेत्र को आर्थिक लाभ पहुंचाने के कदम भी उठाए होते। दोनों के बीच पूंजीगत माल के आयात और निर्यात का व्यापार दुबई होकर करने के बदले अपनी सीमाओं के जरिए होना चाहिए था।

 

यात्रा के बाद मोदी ने बयान दिया कि इस तरह की बात अब सामान्य तौर पर होंगी और वे एक दूसरे के देश में बिना सरकारी शिष्टाचार के आते−जाते रहेंगे। यह पहले ही हो जाना चाहिए था। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी दूरद्रष्टा थे जो इस तरह की बात सोच सकते थे। ऐसा लगा था कि मोदी उनकी राह पर चल रहे हैं क्योंकि लाहौर यात्रा के बाद पहला काम उन्होंने यही किया कि वह वाजपेयी से मिले जो भाजपा में एक उदार चेहरा माने जाते थे। वह अब शारीरिक रूप से अक्षम हैं, लेकिन उन्होंने अपने हाव−भाव से बताया कि मोदी ने वही किया है जो कुछ वह खुद करते। मोदी के शासन में वह भावना दिखाई देनी चाहिए थी। 

 

इसके बदले, नवाज शरीफ दस साल की सजा का सामना कर रहे हैं। लोग इसके कुछ ठोस सबूत देखना चाहेंगे कि नवाज शरीफ और उनके परिवार ने भ्रष्टाचार किया था।

 

-कुलदीप नैय्यर

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