बड़े पैमाने पर इमारतों या फिर अन्य संरचनाओं की मजबूती का आकलन करने के लिए अक्सर रैपिड विज़ुअल स्क्रीनिंग (आरवीएस) की जाती है। आरवीएस दृश्य सूचना का उपयोग यह तय करने के लिए करता है कि कोई इमारत कितनी सुरक्षित है और भूकंप सुरक्षा को बढ़ाने के लिए तत्काल इंजीनियरिंग सुधार एवं मरम्मत की कितनी आवश्यकता है।
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) मंडी के शोधकर्ताओं ने हिमालय क्षेत्र में भूकंप झेलने की इमारतों की क्षमता का आकलन करने के लिए एक नया तरीका विकसित किया है। भूकंप के प्रति इमारतों की संवेदनशीलता का पता लगाने की यह पद्धति सरल है, जो भूकंप के प्रति भवनों की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए आवश्यक सुदृढ़ीकरण और मरम्मत कार्यों की प्राथमिकता तय करने में उपयोगी हो सकती है।
व्यापक क्षेत्र सर्वेक्षणों के माध्यम से, शोधकर्ताओं ने मंडी के हिमालय क्षेत्र में इमारतों के प्रकार और उनकी विशिष्टताओं पर आधारित डेटा एकत्र किया है, जो भूकंप के प्रति इमारतों की संवेदनशीलता से संबंधित है। पहाड़ी क्षेत्रों में इमारतों के तल की गणना के लिए दिशा-निर्देश स्थापित करने और उन इमारतों की रैपिड विज़ुअल स्क्रीनिंग (आरवीएस) के लिए शोधकर्ताओं ने एक संख्यात्मक अध्ययन किया है।
इमारतों की स्क्रीनिंग पद्धति एक पन्ने के आरवीएस प्रपत्र पर आधारित है, जिसे भरने के लिए अधिक विशेषज्ञता की आवश्यकता नहीं होती। विभिन्न संवेदनशीलता विशेषताओं को ध्यान में रखकर यह प्रपत्र केस स्टडी क्षेत्र की इमारतों के लिए विशेष रूप से डिजाइन किया गया है। इससे प्राप्त अवलोकनों के उपयोग से की गई गणना इमारतों के लिए एक भूकंपीय भेद्यता स्कोर उत्पन्न करती है, जो कमजोर इमारतों को मजबूत संरचनाओं से अलग करती है, और रखरखाव तथा मरम्मत के लिए बेहतर निर्णय लेने में मदद करती है। गणना प्रक्रिया को इस तरह डिजाइन किया गया है कि किसी इमारत का भूकंपीय भेद्यता स्कोर प्राप्त करने में मानव पूर्वाग्रह या निर्धारक की व्यक्तिपरकता की संभावना बेहद कम होती है।
मौजूदा आरवीएस विधियां विभिन्न देशों के डेटा पर आधारित हैं और विशेष रूप से भारतीय हिमालयी क्षेत्र पर लागू नहीं होती हैं। उदाहरण के लिए, भारत के अधिकांश भागों की तरह हिमालयी क्षेत्र में भी बड़ी संख्या में गैर-इंजीनियरिंग आधारित संरचनाएं हैं। स्थानीय निर्माण श्रमिकों में जागरूकता की कमी एवं हितधारकों के खराब नियोजन के कारण इमारतों एवं बुनियादी संरचनाओं का बेतरतीब वितरण देखने को मिलता है। इसलिए, क्षेत्र-विशिष्ट आरवीएस दिशानिर्देश का उपयोग आवश्यक है, जिसमें स्थानीय निर्माण प्रथाएं और टाइपोलॉजी जैसे कारक शामिल होते हैं।
डॉ संदीप कुमार साहा, सहायक प्रोफेसर, स्कूल ऑफ सिविल एंड एनवायरनमेंटल इंजीनियरिंग, आईआईटी मंडी के नेतृत्व में यह अध्ययन उनके पीएच.डी. छात्र यति अग्रवाल ने किया है। यह अध्ययन, शोध पत्रिका बुलेटिन ऑफ अर्थक्वेक इंजीनियरिंग में प्रकाशित किया गया है।
डॉ संदीप कुमार साहा बताते हैं - "हमने भारतीय हिमालयी क्षेत्र में प्रबलित कंक्रीट (आरसी) इमारतों की स्क्रीनिंग के लिए एक प्रभावी तरीका तैयार किया है, ताकि इमारतों की स्थिति के अनुसार मरम्मत कार्य को प्राथमिकता दी जा सके और आसन्न भूकंप के जोखिम को कम किया जा सके।”
शोधकर्ता यती अग्रवाल कहती हैं - “हमने दिखाया है कि प्रस्तावित विधि पहाड़ी क्षेत्रों में भूकंप की स्थिति में प्रबलित कंक्रीट इमारतों को होने वाले संभावित नुकसान के अनुसार अलग करने में उपयोगी है।”
भारतीय और यूरेशियन प्लेटों में टकराव के कारण हिमालय को दुनिया के सबसे अधिक भूकंप-संभावित क्षेत्रों में शामिल किया जाता है। यहाँ ऐसे भूकंप आते रहे हैं, जो जीवन और संपत्ति दोनों के नुकसान पहुँचाने के मामले में विनाशकारी रहे हैं।
हिमालयी की भूकंप भेद्यता के कारण वहाँ इमारतों का मूल्यांकन एक तत्काल आवश्यकता है। शोधकर्ताओं का कहना है कि पिछली दो शताब्दियों के "भूकंपीय अंतर" के कारण इस क्षेत्र में किसी भी समय बड़े भूकंप की आशंका है। यह माना जाता है कि भूकंपीय अंतराल (बड़े भूकंप की अनुपस्थिति) तनाव को संचित करने में लगने वाले समय का प्रतिनिधित्व करता है, जो बाद में एक बड़े भूकंप के रूप में जारी होता है। शोधकर्ताओं का कहना कि इन क्षेत्रों में मानव आवास संरचना को मजबूत करना समय की माँग है ताकि वे भविष्य में भूकंप का सामना कर सकें।
(इंडिया साइंस वायर)