मोदी सरकार के New India की नई तस्वीर, आजादी के 75 साल पर नया संसद भवन

By अभिनय आकाश | Dec 09, 2020

संसद भवन, एक संस्थान जो एक राष्ट्र की संस्कृति और गौरव के सारांश के समान है। ये भव्य इमारत एक आजाद मुल्क के जन्म से लेकर उसकी उन्नति और प्रगति की साक्षी है। देश की संसद भवन एक ऐतिहासिक धरोहर है लेकिन इसके दरवाजे, दीवार, हर मेहराब, हर मीनार के साथ गुलामी का इतिहास जुड़ा है। राष्ट्रपति भवन से लेकर इंडिया गेट तक जाने वाली सड़क को वैसे तो पूरा देश राजपथ के नाम से जानता है। इसी सड़क पर हर साल देश अपने गणतंत्र की शक्ति और साहस का प्रदर्शन परेड के आयोजन के माध्यम से करता है। आज़ादी से पहले इस मार्ग को 'किंग्स वे' कहा जाता था, जिसका अर्थ है- राजा के गुज़रने का रास्ता। आज़ादी के बाद इसका नाम राजपथ कर दिया गया यानी इसके नाम का सिर्फ हिंदी अनुवाद किया गया। इसके पीछे की औपनिवेशिक सोच नहीं बदली गई। भारत से ब्रिटिश राज चला गया लेकिन राजपथ नहीं गया। पिछले 71 वर्षों से लोकतंत्र के मंदिर संसद से भारत का शासन चलता आया है। ये सत्ता और विपक्ष के बीच मंथन का केंद्र है। इसी भवन के कक्षों से जननायकों और मार्गदर्शकों ने देश को हर बार एक नई दिशा दी। ये इमारत विश्वास दिलाती है कि भारत के हर एक नागरिक को न्याय और सम्मान मिले। संसद भवन एक प्राचीन और विविधिताओं से भरे देश की आधुनिक लोकतांत्रिक शक्ति बनने का सफर है। लेकिन अब दिल्ली की इस पहचान को बदलने की तैयारी में है मोदी सरकार। 

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संसद भवन की कल्पना 1911 से शुरू हो गई थी। देश की राजधानी कलकत्ता से बदलकर दिल्ली लाने के बाद ये तय हुआ कि भारत की आधुनिक राजधानी रायसीना हिल पर तराशी जाए। शुरुआती चर्चा ये थी की भारत की संसद राष्ट्रपति भवन यानी की उस वक्त के वायसराय हाउस का ही एक हिस्सा होगी। लेकिन 1919 में मोंटेंक्यू जोम्सफोर्ड रिफार्म के बाद ये तय हुआ कि निर्वाचन प्रतिनिधित्व को बढ़ाया जाए। तब संसदीय कार्यप्रणाली के लिए एक अलग और विशाल इमारत बनाने के सुझाव पर गौर हुआ। संसद भवन की नींव 12 फरवरी 1921 में ड्यूक आफ कनाट प्रिंस आर्थर द्वारा रखी गई।

6 सालों के लंबे इंतजार के बाद ये इमारत अपने वजूद में आई। संसद भवन का डिजाइन एडविन लुटियंस और हरबर्ट बेकर ने तैयार किया था। उन दोनों ने ही नयी दिल्ली का निर्माण किया था।18 जनवरी 1927 में एक शानदार समारोह में उस समय के वायसराय लार्ड इरविन ने संसद भवन का उद्घाटन किया। तकरीबन 83 लाख के लागत से तैयार हुई संसदभवन के डिजाइन और आकार पर भी बेहद लंबा विमर्श हुआ। 

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अंग्रेजों के जमाने में बना भारत का संसद भवन अब सिर्फ इतिहास में रह जाएगा। मौजूदा संसद भवन के पास नए संसद भवन का निर्माण किया जा रहा है। 971 करोड़ रुपए की लागत से बन रहे नए संसद भवन का भूमि पूजन 10 दिसंबर को दोपहर 1 बजे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करेंगे।

लोकतंत्र का प्रतीक रही ये इमारत अब इतिहास बनने जा रही है। देश जब आजादी की 75वीं सालगिरह मना रहा होगा। तो आत्मनिर्भर भारत की एक नई मिसाल पेश करेगा संसद का ये नया भवन। अब आपको तफसील से बताते हैं कि नया संसद भवन कैसा होगा।

नया संसद भवन तिकोना होगा। 

लोकसभा सदस्यों के लिए 888 सीटें होंगी।

राज्यसभा सदस्यों के लिए 336 सीटें होंगी। 

लोकसभा हाल में एक साथ 1224 सदस्य बैठ सकेंगे।

निर्माण पर 971 करोड़ की लागत आएगी, 64,500 मीटर का दायरा होगा।

नए संसद भवन के बारे में विस्तार से

नये संसद भवन में सभी सांसदों के लिये अलग-अलग कार्यालय होंगे और उन्हें नवीनतम डिजिटल उपकरणों से लैस किया जाएगा। यह कदम कागज रहित कार्यालय सुनिश्चित करने की दिशा में एक कदम है। नये भवन में एक संविधान कक्ष (कॉंस्टीट्यूशन हॉल) भी होगा, जो भारत की लोकतांत्रिक धरोहर को प्रदर्शित करेगा। इसके अलावा संसद सदस्यों के लिये एक लाउंज, एक पुस्तकालय, कई समितियों के लिये कमरे, खान-पान के लिये स्थान और वाहन पार्किंग की जगह भी होगी। संविधान कक्ष में संविधान की मूल प्रति भी रखी जाएगी। भारत की लोकतांत्रिक धरोहर आदि को डिजिटल माध्यमों से दिखाया जाएगा। आगंतुकों को इस कक्ष में आने दिया जाएगा ताकि वे भारतीय संसदीय लोकतंत्र की यात्रा को समझ सकें। सेंट्रल विस्टा--राष्ट्र के सत्ता के गलियारे--की पुनर्विकास परियोजना एक त्रिभुजाकार संसद भवन, एक साझा केंद्रीय सचिवालय की परिकल्पना करता है। साथ ही राष्ट्रपति भवन से लेकर इंडिया गेट तक तीन किमी लंबे राजपथ का कायाकल्प भी किया जााएगा। सेंट्रल विस्टा परियोजना के तहत प्रधानमंत्री आवास एवं कार्यालय भी साउथ ब्लॉक के पास आने की संभावना है। उप राष्ट्रपति का नया आवास नार्थ ब्लॉक के आसपास होगा। सरकार द्वारा उद्योग भवन, कृषि भवन और शास्त्री भवन जैसी इमारतों को ध्वस्त कर देने की संभावना है ताकि नया केंद्रीय सचिवालय बन सके, जिसमें कई मंत्रालयों के कार्यालय होंगे।

नई संसद के शिलान्यास की अनुमति, सेंट्रल विस्टा में निर्माण पर रोक

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को 10 दिसंबर को ‘सेंट्रल विस्टा परियोजना’ के आधारशिला कार्यक्रम के आयोजन की अनुमति दे दी। इससे पहले, सरकार ने न्यायालय को आश्वासन दिया कि इस परियोजना को चुनौती देने वाली याचिकाओ का निबटारा होने तक निर्माण कार्य या इमारतों को गिराने जैसा कोई काम नहीं किया जाये। सालिसीटर जनरल तुषार मेहता ने न्यायमूर्ति ए. एम. खानविलकर, न्यायमूर्ति दीपक माहेश्वरी और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की पीठ को आश्वासन दिया कि सिर्फ आधारशिला रखने का कार्यक्रम किया जाएगा और वहां कोई निर्माण कार्य, इमारतों को गिराने या पेड़ काटने जैसा कोई काम नहीं होगा।  पीठ ने आदेश में आगे कहा, ‘‘हम इस वक्तव्य को रिकार्ड पर लेते हैं। इस तथ्य के मद्देनजर, हम स्पष्ट करते हैं कि प्राधिकारी इस स्थल के स्वरूप में किसी भी प्रकारका बदलाव किये बगैर 10 दिसंबर, 2020 को आधारशिला कार्यक्रम का आयोजन जारी रखने सहित सभी प्रक्रिया से संबंधित कार्यवाही जारी रख सकते हैं।- अभिनय आकाश


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