By अभिनय आकाश | Sep 30, 2021
देश की सर्वोच्च अदालत ने अवमानना को लेकर बड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि कानून बनाकर भी इसे छीना नहीं जा सकता है। एनजीओ ‘सुराज इंडिया ट्रस्ट’ के अध्यक्ष राजीव दहिया के आवेदन पर सुनवाई करते हुए पीठ ने यह टिप्पणी की। शीर्ष कोर्ट ने कहा, 'हमारा मानना है कि अवमानना करने वाला शख्स स्पष्ट तौर पर अदालत की आवमानना का दोषी है और अदालत को नाराज करने के उसके कदम को स्वीकार नहीं किया जा सकता।'
दरअसल, याचिका में शीर्ष अदालत के 2017 के फैसले को वापस लेने की मांग की गयी है जिसमें दहिया पर पिछले कुछ सालों में 64 जनहित याचिकाएं दाखिल करने पर 25 लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया। जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस एमएम सुंदरेश की पीठ ने कहा कि राजीव दहिया अदालत, प्रशासनिक कíमयों और राज्य सरकार समेत सभी पर कीचड़ उछालते रहे हैं। कोर्ट ने कहा कि न्यायिक मामलों के संबंध में व्यक्तिगत रूप से पेश होते समय अदालत को बदनाम करने की प्रवृत्ति के रूप में आक्षेप लगाने के लिए कोई पूर्ण लाइसेंस नहीं है।
पीठ ने कहा, ‘‘अक्सर इनकी अनदेखी की जाती है लेकिन जब पूरी स्वतंत्रता के बावजूद हर समय याचिका दाखिल करने वाले वादी सभी पर कीचड़ उछालकर अपने अस्तित्व को जायज ठहराना चाहते हैं तो अदालत को हस्तक्षेप करना होता है। दहिया ने अदालत को बताया था कि उनके पास जुर्माना भरने के लिए संसाधन नहीं है और वह दया याचिका लेकर राष्ट्रपति के पास जाएंगे। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जुर्माने के मामले में राष्ट्रपति के समक्ष दया याचिका दाखिल करने का कोई प्रविधान नहीं है। पीठ ने कहा, ‘अवमानना के लिए दंड देने की शक्ति एक संवैधानिक अधिकार है जिसे विधायी अधिनियम से भी छीना नहीं जा सकता। इसके साथ ही कोर्ट ने हर्जाने की रकम की वसूली एनजीओ और राजीव दहिया की संपत्ति से करने का भी आदेश दिया है।