By प्रज्ञा पांडेय | Sep 17, 2025
आज इंदिरा एकादशी व्रत है, यह तिथि भगवान विष्णु को समर्पित है। पितृ पक्ष के दौरान पड़ने वाली इंदिरा एकादशी का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। इस दिन लोग व्रत रखते हैं और पूजा-पाठ करते हैं इससे घर में सुख-शांति और समृद्धि आती है तो आइए हम आपको इंदिरा एकादशी व्रत का महत्व एवं पूजा विधि के बारे में बताते हैं।
हिन्दू पंचांग के अनुसार, आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को इंदिरा एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस तिथि पर व्रत करने से पितरों को मोक्ष मिलता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इंदिरा एकादशी को करने से साधक को सभी पापों से छुटकारा मिलता है। साथ ही जीवन में सुख-समृद्धि बनी रहती है। इस व्रत का पारण अगले दिन यानी द्वादशी तिथि पर किया जाता है।
वैदिक पंचांग के अनुसार, इस बार 17 सितंबर को इंदिरा एकादशी व्रत किया जाएगा।
इंदिरा एकादशी तिथि की शुरुआत-17 सितंबर को देर रात 12 बजकर 21 मिनट पर
इंदिरा एकादशी तिथि का समापन- 17 सितंबर को देर रात 11 बजकर 39 मिनट पर
इंदिरा एकादशी व्रत का पारण अगले दिन यानी द्वादशी तिथि पर किया जाएगा। वैदिक पंचाग के अनुसार, व्रत पारण करने का शुभ मुहूर्त 18 सितंबर को सुबह 06 बजकर 07 मिनट से लेकर 08 बजकर 34 मिनट है। इस दौरान किसी भी समय व्रत का पारण कर सकते हैं। पारण करने के बाद विशेष चीजों का दान मंदिर या गरीब लोगों में जरूर करें।
पंडितों के अनुसार इस दिन सुबह स्नान करने के बाद प्रभु के नाम का ध्यान करें। इसके बाद सूर्य देव को अर्घ्य दें। भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा-अर्चना करें। मंत्रों का जप और विष्णु चालीसा का पाठ करें। इसके बाद सात्विक भोजन, फल और मिठाई का भोग लगाएं। प्रभु से जीवन में सुख-शांति की प्राप्ति के लिए कामना करें। आखिरी में प्रसाद ग्रहण करें।
इंदिरा एकादशी व्रत का पारण करने के बाद अन्न, धन और वस्त्र सहित सभी जरूरत की चीजों का दान करें। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, द्वादशी तिथि पर दान करने से साधक को जीवन में कोई कमी नहीं होती है। साथ ही धन में वृद्धि होती है।
इंदिरा एकादशी की रात तुलसी के पौधे के सामने घी का दीपक जलाएं। इसके बाद 11 बार 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय' मंत्र का जाप करें। पंडितों के अनुसार ऐसा करने से मां लक्ष्मी खुश होती हैं और घर में धन का आगमन होता है।
पीपल के पेड़ में भगवान विष्णु का वास माना जाता है। ऐसे में इंदिरा एकादशी की रात पीपल के पेड़ के नीचे जल में थोड़ा दूध मिलाकर अर्पित करें और इसके बाद एक सरसों के तेल का दीपक जलाएं। ऐसा करने से आर्थिक समस्याएं दूर होती हैं।
इंदिरा एकादशी की रात दक्षिणावर्ती शंख में गंगाजल भरकर भगवान विष्णु का अभिषेक करें। इस उपाय से घर में बरकत आती है और धन-धान्य की वृद्धि होती है। साथ ही इससे मां लक्ष्मी भी खुश होती हैं।
भगवान विष्णु को पीले रंग के फूल बहुत पसंद हैं। ऐसे में एकादशी की रात पूजा करते समय भगवान विष्णु को पीले फूल, पीले वस्त्र और पीली मिठाई जरूर चढ़ाएं। इससे भगवान विष्णु खुश होते हैं और धन से जुड़ी सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं।
इंदिरा एकादशी की रात भगवान विष्णु की प्रतिमा के सामने बैठकर विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें। इस पाठ से घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और सभी नकारात्मकता दूर होती है। इसके साथ ही इससे आर्थिक स्थिति भी मजबूत होती है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, सतयुग में महिष्मति नगरी में एक धर्मात्मा राजा इंद्रसेन राज करते थे। एक दिन उनके दरबार में देवर्षि नारद जी प्रकट हुए। नारद जी ने बताया कि वे यमलोक से आ रहे हैं, जहां उन्होंने राजा के पिता को देखा। उन्होंने बताया कि राजा के पिता ने एकादशी का व्रत खंडित कर दिया था, जिसके कारण उन्हें यमलोक में रहना पड़ रहा है। नारद जी ने राजा को सुझाव दिया कि अगर वे विधि-विधान से इंदिरा एकादशी का व्रत करें तो उनके पिता को यमलोक से मुक्ति मिल जाएगी और उन्हें स्वर्ग प्राप्त होगा। यह सुनकर राजा इंद्रसेन ने तुरंत नारद जी से व्रत की विधि पूछी।
नारद जी ने बताया कि एकादशी के दिन सुबह स्नान करके अपने पितरों के लिए श्राद्ध, तर्पण और दान करें। भगवान शालिग्राम की स्थापना करके उनकी पूजा करें। रात में जागरण करें। अगले दिन यानी द्वादशी को फिर से पूजा-पाठ करके दान करें और फिर पारण करके व्रत पूरा करें। राजा ने नारद जी के बताए अनुसार पूरे विधि-विधान से व्रत किया। व्रत के प्रभाव से उनके पिता को तुरंत यमलोक से मुक्ति मिली और वे स्वर्ग चले गए। इस तरह यह व्रत पितरों के उद्धार का एक अद्भुत माध्यम बन गया।
पंडितों के अनुसार एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र पहनें। घर के मंदिर की साफ-सफाई करें और व्रत का संकल्प लें। भगवान विष्णु के ऋषिकेश स्वरूप का ध्यान करते हुए उनकी पूजा करें। उन्हें अक्षत, फूल, फल, चंदन, धूप, दीप और नैवेद्य अर्पित करें। दिन भर फलाहार पर रहें और रात में जागरण करें। अगले दिन द्वादशी को स्नान के बाद पूजा करके ब्राह्मणों को भोजन कराएं और दान-दक्षिणा दें। शुभ मुहूर्त में पारण करके व्रत पूरा करें।
घर की दक्षिण दिशा में सरसों के तेल का दीपक जलाएं। यह पितरों को सुख-शांति देता है।
काले कपड़े में काले तिल और दाल रखकर गाय को खिलाएं। इससे पितृ तृप्त होते हैं।
पीपल के पेड़ के नीचे दीपक जलाकर उसकी परिक्रमा करें। पीपल में पितरों का वास माना जाता है।
गरुड़ पुराण में बताया गया है कि इंदिरा एकादशी का व्रत करने से कई जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं और मृत्यु के बाद आत्मा को उच्च लोक में स्थान मिलता है। यही नहीं पद्म पुराण में तो यह भी कहा गया है कि इसका पुण्य कन्यादान और हजारों सालों की तपस्या से भी ज्यादा होता है।
शास्त्रों में भी खीर को पितरों का प्रिय भोजन बताया गया है, जो उन्हें तृप्त करता है। लेकिन धार्मिक मान्यता के अनुसार एकादशी के दिन किसी भी रूप में चावल का सेवन वर्जित है। ऐसे में आप चावल की जगह मखाने की खीर बना सकते हैं। एकादशी वाले दिन ब्राह्मण भोज के लिए भी ये उपयुक्त है।
- प्रज्ञा पाण्डेय