By प्रज्ञा पांडेय | Jul 05, 2025
आज देवशयनी एकादशी है, देवशयनी एकादशी को हिन्दू धर्म में बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि इसी एकादशी से चातुर्मास लग जाता है और भगवान विष्णु निद्रा के लिए पाताल में निवास करने चले जाते हैं तो आइए हम आपको देवशयनी एकादशी का महत्व एवं पूजा विधि के बारे में बताते हैं।
एकादशी तिथि सृष्टि के संचालक श्री विष्णु जी की उपासना के लिए बेहद शुभ है। इस दिन की गई पूजा-अर्चना, दान-दक्षिणा व भजन-कीर्तन का फल साधक को अवश्य मिलता है। यही नहीं देवी लक्ष्मी की कृपा भी जीवन पर बनी रहती हैं। आमतौर पर सभी विष्णु भक्त साल की 24 एकादशियों पर प्रभु की आराधना करते हैं। परंतु देवशयनी सभी एकादशियों में खास होती है, क्योंकि इस दिन से श्रीहरि देवी लक्ष्मी के साथ चार मास की योग निद्रा में चले जाते हैं। इस दौरान देवी-देवता भी प्रभु के साथ योग निद्रा में होते हैं। इसलिए इस चार महीने की अवधि को चातुर्मास कहा जाता है जिसमें शादी-विवाह, तिलक, हवन और गृह प्रवेश जैसे शुभ कार्य करना वर्जित होता है। आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है। इस दिन भगवान विष्णु चार महीने के लिए योगनिद्रा में चले जाते हैं जिसे चातुर्मास कहते हैं।
हिंदू पंचांग के अनुसार, आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि की शुरुआत 05 जुलाई को शाम 06 बजकर 58 मिनट पर होगी। वहीं, इसकी समाप्ति 06 जुलाई को शाम 09 बजकर 14 मिनट पर होगी। ऐसे में इस साल 06 जुलाई को देवशयनी एकादशी का व्रत रखा जाएगा।
देवशयनी एकादशी का महत्व पुराणों में विशेष रूप से बताया गया है। इस दिन से भगवान विष्णु विश्राम करते हैं, और पूरी सृष्टि का कार्यभार भगवान शिव को सौंप देते हैं। इसी वजह से चातुर्मास के दौरान भगवान शिव की पूजा का विशेष महत्व है। इस अवधि में तपस्या, योग, मंत्र जाप और धार्मिक अनुष्ठान करने से दोगुना पुण्य फल की प्राप्ति होती है।
देवशयनी एकादशी बहुत पवित्र दिन होता है, इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और पीले कपड़े पहनें। भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापित करें। भगवान विष्णु को पीले वस्त्र, पीले फूल, फल, मिठाई, धूप, दीप और तुलसी दल आदि अर्पित करें। 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय' मंत्र का 108 बार जाप करें। देवशयनी एकादशी व्रत कथा का पाठ करें या सुनें। व्रत का संकल्प लें और श्रद्धा अनुसार व्रत का पारण करें। ब्राह्मणों और जरूरतमंदों को दान-दक्षिणा दें। तामसिक चीजों से परहेज करें। इस दिन भूलकर भी चावल का सेवन गलती से भी न करें।
पंडितों के अनुसार देवशयनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु को केसर की मिठाई, पंचामृत और पीले रंग की चीजें जैसे कि बेसन के लड्डू, मोतीचूर के लड्डू या केले का भोग लगाना शुभ माना जाता है। भगवान विष्णु को पीला रंग प्रिय है इसलिए उन्हें पीले रंग के फल और भोग अर्पित किए जाते हैं। आप भोग में भगवान विष्णु पेड़े चढ़ा सकते हैं। पेड़ा बनाने के लिए दूध या खोया की आवश्यकता होती है। दूध को उबालते हुए लगातार चलाते रहे, जब तक यह गाड़ा न हो जाए। इससे आपको खोया मिल जाएगा। फिर इसमें चीनी डालकर अच्छे से चलाएं। लगातार चलाते रहें वरना पैन में चीनी लग जाएगी। इसके बाद इसमें इलायची पाउडर डालकर ठंडा होने के लिए रख दें। जब मिक्सचर ठंडा हो जाए, तो इसमें चीनी डालकर मिलाएं। अच्छी तरह मिला लेने के बाद इसे अपनी पसंद का शेप दें और भगवान को भोग में चढ़ाएं।
शास्त्रों में देवशयनी एकादशी के बारे में एक पौराणिक कथा प्रचलित है। इस पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार ब्रह्माजी ने नारदजी को बताया था कि सतयुग में मांधाता नामक एक चक्रवर्ती राजा का शासन था। उनके राज्य में प्रजा बहुत सुखी रहती थी, लेकिन नियति को पलटने में देर नहीं लगती है। अचानक, तीन वर्षों तक वर्षा नहीं होने के कारण राज्य में भयंकर अकाल पड़ गया। यज्ञ, हवन, पिंडदान, कथा-व्रत आदि धार्मिक क्रियाएं कोई भी कार्य नहीं हो पा रहे थे। प्रजा ने राजा के पास जाकर अपनी व्यथा सुनाई। राजा मांधाता इस स्थिति से पहले ही परेशान थे और सोचते थे कि न जाने किस पाप के कारण यह आपदा उन पर आई है।
राजा मांधाता अपनी सेना सहित वन की ओर प्रस्थान कर, ब्रह्माजी के पुत्र अंगिरा ऋषि के आश्रम में पहुंचे। ऋषिवर ने उन्हें आशीर्वाद दिया और उनके आने का कारण पूछा। राजा ने हाथ जोड़कर कहा, महात्मन्, मैं धर्म का पालन पूरी ईमानदारी से करता हूं, लेकिन इसके बावजूद भी पिछले तीन वर्षों से मेरे राज्य में बारिश नहीं हुई है और राज्य में अकाल पड़ा हुआ है। महर्षि अंगिरा ने कहा कि हे राजन्! सतयुग में छोटे से पाप का भी भयंकर दण्ड मिलता है। आपके राज्य में एक शूद्र तपस्या कर रहा है, जो इस युग में अनुचित माना गया है। इसी कारण आपके राज्य में वर्षा नहीं होती। जब तक वह शूद्र तपस्वी जीवित रहेगा, अकाल समाप्त नहीं होगा।
राजा मांधाता ने कहा, "हे भगवान! मेरा मन किसी निर्दोष व्यक्ति को मारने को तैयार नहीं है। कृपया कोई अन्य उपाय बताएं।" महर्षि अंगिरा उन्हें आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत करने की सलाह दी। इस व्रत के प्रभाव से उनके राज्य में अवश्य वर्षा होने की बात कही। राजा ने राजधानी लौटकर विधि-विधान से पद्मा एकादशी का व्रत किया। व्रत के प्रभाव से मूसलाधार वर्षा हुई और राज्य धन-धान्य से भर गया।
पंडितों के अनुसार देवशयनी एकादशी विशेष होती है इसलिए इस दिन खास पूजा करें। इस दिन प्रातः स्नान आदि से निवृत्त हो कर भगवान विष्णु का स्मरण करना चाहिए। इसके बाद पीले रंग का आसन बिछाकर उस पर विष्णु जी की प्रतिमा स्थापित करें। भगवान विष्णु को धूप, दीप, अछत, पीले फूल चढ़ा कर षोढशोपचार पूजन करें। भगवान विष्णु को पीले रंग का प्रसाद चढ़ाएं। धार्मिक मान्यताओं में देवशयनी एकादशी व्रत सबसे श्रेष्ठ एकादशी मानी जाती है और इस दिन विधि-विधान से व्रत और पूजा करने से व्यक्ति के सभी पापों का नाश हो जाता है।
- प्रज्ञा पाण्डेय