उमर अब्दुल्ला की PSA के तहत नजरबंदी, SC ने कहा- यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता का मामला

By प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क | Mar 03, 2020

नयी दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को कहा कि वह सारा अब्दुल्ला पायलट द्वारा दायर उस अर्जी पर सुनवायी पांच मार्च को करेगा जिसमें उन्होंने अपने भाई उमर अब्दुल्ला की जम्मू कश्मीर जन सुरक्षा अधिनियम (पीएसए) के तहत नजरबंदी को चुनौती दी है। न्यायालय ने इसे व्यक्तिगत स्वतंत्रता का मामला बताया। न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा और न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी की एक पीठ ने कहा, ‘‘मामला व्यक्तिगत स्वतंत्रता का है।’’ वहीं जम्मू कश्मीर प्रशासन ने न्यायालय से कहा कि नेशनल कांफ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला के ‘पिछले आचरण’ को देखते हुये ही उन्हें जन सुरक्षा कानून के तहत नजरबंद किया गया है और अगर उन्हें रिहा किया गया तो इस आचरण को पुन: दोहराने की संभावना है जो सार्वजनिक व्यवस्था के लिये हानिकारक हो सकती है।

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पीठ की यह टिप्पणी उस संक्षिप्त सुनवाई के अंत में आयी जिस दौरान अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने कहा कि याचिकाकर्ता को शीर्ष अदालत का रुख करने के बजाय पहले जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय का रुख करना चाहिए था। पीठ ने कहा कि उसने पिछले सप्ताह जम्मू कश्मीर प्रशासन से जम्मू कश्मीर की एक और पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती की नजरबंदी को चुनौती देने वाली एक अन्य याचिका पर जवाब मांगा था। जम्मू कश्मीर प्रशासन ने अब्दुल्ला को अनुच्छेद 370 के ज्यादातर प्रावधान खत्म करने के फैसले का काफी मुखर आलोचक बताया और दावा किया कि उनके कृत्य पूरी तरह से लोक व्यवस्था के दायरे में आते हैं क्योंकि इसका मकसद सार्वजनिक शांति और सद्भाव को भंग करना था।

श्रीनगर के जिला मजिस्ट्रेट ने उमर अब्दुल्ला की बहन सारा अब्दुल्ला पायलट की याचिका पर दाखिल अपने जवाब में यह दावा किया है। सारा ने उमर की पीएसए के तहत नजरबंदी को चुनौती दी है। जम्मू कश्मीर प्रशासन ने कहा कि स्वतंत्र भारत के इतिहास में पूर्ववर्ती जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने संबंधी संविधान के अनुच्छेद 370 का बना रहना हमेशा ही विवादास्पद और ज्वलंत मुद्दा बना रहा है। उसने कहा, ‘‘जो नजरबंद हैं वे अनुच्छेद धारा 370 के अधिकतर प्रावधान पांच अगस्त, 2019 को समाप्त किये जाने से पहले इसे संभावित रूप से समाप्त किये जाने के मुखर आलोचक रहे हैं। जम्मू कश्मीर और लद्दाख की अत्यंत खास भू-राजनीतिक स्थिति और इस्लामिक गणराज्य पाकिस्तान के साथ इसकी भौगोलिक निकटता को देखते हुए ‘‘सार्वजनिक आदेश’’ की अवधारणा को प्रासंगिक रूप से देखे जाने की जरूरत है।’’

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प्रशासन ने कहा कि अब्दुल्ला को शीर्ष अदालत में आने से पहले राहत के लिये जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय जाना चाहिए था। जम्मू कश्मीर प्रशासन की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ को जिला मजिस्ट्रेट द्वारा दाखिल जवाब के बारे में बताया। पीठ ने सारा अब्दुल्ला पायलट की याचिका पांच मार्च के लिये सूचीबद्ध करते हुये कहा कि याचिकाकर्ता चाहे तो इस पर अपना जवाब दाखिल कर सकती हैं। जम्मू कश्मीर प्रशासन ने अपने जवाब में कहा है कि सार्वजनिक व्यवस्था बनाये रखने में किसी प्रकार का व्यवधान डालने की कार्रवाई से रोकने के लिये नजरबंदी की आवश्यकता जरूरी महसूस करते हुये ही उमर अब्दुल्ला को जन सुरक्षा कानून की धारा 8 के तहत नजरबंद करने का आदेश दिया गया है।

प्रशासन ने सारा अब्दुल्ला की इस दलील का भी जवाब दिया है कि उनका भाई पहले ही पिछले साल पांच अगस्त से हिरासत में है और अब उसे सार्वजनिक व्यवस्था बनाये रखने में किसी प्रकार की बाधा डालने की संभावना के नतीजे पर पहुंचकर नजरबंद रखने का कोई आधार नहीं है। प्रशासन ने कहा कि याचिका में दी गयी यह दलील गलत है और नजरबंद करने वाले प्राधिकारी के संतुष्ट होने के पहलू को नजरअंदाज करती है। उनके बारे में पेश डोजियर से साफ पता चलता है कि अतीत में हुयी घटनाओं से उनकी निकटता थी। जवाब में यह भी कहा गया है कि पूर्ववर्ती जम्मू कश्मीर राज्य में 1990 से 71,038 घटनाओं में 41,866 व्यक्तियों की जान गयी थी। इसमें 14,038 नागरिक, 5,292 सुरक्षा बल के सदस्य और 22,536 आतंकवादी मारे गये।

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प्रशासन ने कहा कि जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय के पास इस समय 350 से अधिक बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिकायें दायर हैं जिनमें नजरबंदी के आदेशों को चुनौती दी गयी है। प्रशासन ने कहा है कि उच्च न्यायालय पूरी तरह से काम कर रहा है और उसने अगस्त 2019 से नजरबंदी के 68 आदेश रद्द किये हैं जबकि नजरबंदी के 11 आदेशों की ही पुष्टि की है। प्रशासन ने कहा कि याचिकाकर्ता यह बताने में विफल रही हैं कि वह पहले उच्च न्यायालय क्यों नहीं गयीं।

प्रशासन ने यह याचिका खारिज करने का अनुरोध करते हुये न्यायालय से कहा है कि इस पर विचार करने से, बेवजह ही यहां ऐसी याचिकाओं का अंबार लग जायेगा। सारा अब्दुल्ला पायलट ने अपनी याचिका में कहा है कि उमर अब्दुल्ला की नजरबंदी का आदेश गैरकानूनी हैं और सार्वजनिक व्यवस्था बनाये रखने में उनके भाई से किसी प्रकार का खतरा होने का सवाल ही नहीं है।

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