राफेल छोड़ बेरोजगारी को मुद्दा बनाए विपक्ष, चुनावों में सफलता मिलेगी

By अजय कुमार | Oct 01, 2018

मेरा देश बदल रहा है, आगे बढ़ रहा है। यह स्लोगन न केवल सुनने में अच्छा लगता है, बल्कि हकीकत से भी रूबरू कराता है। पूरी दुनिया में भारत का डंका बज रहा है। चाहे अंतरिक्ष का क्षेत्र हो या फिर विज्ञान की दुनिया। खेती−किसानी की बात हो या फिर औद्योगिक के क्षेत्र में भारत के बढ़ते कदम। पहले हमारी पहचान आयात करने वाले देश के रूप में होती थी, लेकिन अब हमारा निर्यात के क्षेत्र में सिक्का चलता है। हमारी गणना आर्थिक रूप से तेजी से उभरते देशों में होती है। सफेद क्रांति और हरित क्रांति ने भारत को आत्मनिर्भर बना दिया है तो शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी काफी तरक्की हुई है। देश का साक्षरता प्रतिशत भी बढ़ा है। इतना सब होते हुए भी हम कहीं न कहीं पिछड़े हुए नजर आते हैं। देश में व्याप्त भुखमरी, बेरोजगारी, अपराधों उसमें भी खासकर महिलाओं से जुड़े अपराधों का ग्राफ बढ़ता ही जा रहा है।

 

किसान अनाज तो उगा रहा है लेकिन उसे उसकी सही कीमत नहीं मिल पा रही है, जिसके कारण वह आत्महत्या तक करने को मजबूर है। उधर, तमाम कल्याणकारी योजनाओं के बाद भी भुखमरी एक विशाल समस्या बनी हुई है, आज से 71 साल पहले हम अंग्रेजों की गुलामी से तो मुक्त हो गये लेकिन इतने साल बीतने के बावजूद भी हमें गरीबी, भुखमरी, अशिक्षा, बेरोजगारी, आतंकवाद, जैसी मौलिक समस्याओं से स्वतंत्रता नहीं मिली है। एक तरफ तो हम मंगल पर पहुंच गए हैं लेकिन दूसरी तरफ आज भी हमारे देश में कई लोग भूखमरी की वजह से रोज दम तोड़ देते हैं। जिस देश में इंसान को पेट भरने के लिए मुश्किलें आती हों वहां वह कोई शख्स बीमार पड़ने पर इलाज कैसे करा पाता होगा। यह एक विचारणीय प्रश्न है। कहने को तो आयुष्मान भारत जैसी तमाम योजनाएं चल रही हैं, लेकिन यह कागजों पर भी ज्यादा मजबूत नजर आती है। देश में बेरोजगारी एक अभिशाप बन गई है। रोजगार नहीं मिलने के कारण युवाओं में हताशा पैदा हो रही है, जो अक्सर आत्महत्या और अपराध के कारण बनते देखे जा सकते हैं।

 

तमाम केन्द्र और राज्य सरकारों द्वारा ऐसी समस्याओं से निपटने के लिये समय−समय पर कई तरह के उपाय किये जाते हैं, लेकिन इच्छाशक्ति की कमी के कारण जमीनी हकीकत नहीं बदल पा रही है। भारतीय अर्थव्यवस्था के तेजी से बढ़ने के लिए बेहद जरूरी है कि देश के हर युवा को उसकी क्षमता के मुताबिक रोजगार मिले। जब तक हर हाथ को काम नहीं मिलेगा तब तक लोगों के खरीदने की क्षमता नहीं बढ़ेगी। अगर खरीदने की क्षमता नहीं बढ़ी तो इसका सीधा असर देश में होने वाले उत्पादन और मांग पर पड़ेगा। यूएन की रिपोर्ट के मुताबिक हिन्दुस्तान में वर्ष 2017−2018 में देश में बेरोजगारी दर में और इजाफा हो सकता है। 2015−2016 में में बेरोजगारी दर पिछले पांच साल के सबसे उच्च स्तर पर पहुंच चुकी थी। वर्ष 2012−2013 की रिपोर्ट के मुताबिक देश में 15 से 30 साल के युवाओं की बेरोजगारी दर 13.3 प्रतिशत है। शायद इसीलिये विरोधियों द्वारा मोदी सरकार से पूछा जा रहा है कि प्रत्येक वर्ष दो करोड़ रोजगार का उनका वायदा क्या हुआ।

 

भारत में बेरोजगारी की वजह से भुखमरी भी बढ़ रही है। जहां कुछ लोगों के लिये खानपान की बर्बादी आम बात है, वहीं अच्छी−खासी तादाद ऐसे लोगों की भी है जिन्हें कई दिनों तक खाना नहीं मिलने के कारण समय से पहले काल के गाल में समा जाना पड़ता है। बच्चे और महिलाएं कुपोषण के शिकार होकर दम तोड़ देते हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ के वर्ष 2014−2015 की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में करीब 19 करोड़ 40 लाख लोग भुखमरी के शिकार हैं जो विश्व में किसी भी दूसरे देश के मुकाबले सबसे अधिक हैं। एफएओ के आंकड़ों के मुताबिक भारत में 2009 में 23 करोड़ 10 लाख लोग भुखमरी का सामना कर रहे थे। हमारे देश में गरीबी हटाने और लोगों को भोजन मुहैया कराए जाने के लिए कई सरकारी कार्यक्रमों के बाद भी भुखमरी और कुपोषण सबसे बड़ी समस्या बनी हुई है तो दूसरी तरफ खाद्यान्न की कालाबाजारी करने वाले फलफूल रहे हैं। इसकी जड़ में है शिक्षा की कमी का होना, जिस कारण लोगों को अपने अधिकार ही नहीं पता हैं।

 

यूनेस्को की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में करीब 2 करोड़ 87 लाख ऐसे बुजुर्ग हैं जो पूरी तरह अशिक्षित हैं। अगर देश में साक्षरता दर की बात करें तो केरल में जहां सबसे ज्यादा 93.91 फीसदी लोग साक्षर हैं वहीं इस मामले में बिहार सबसे पिछड़ा हुआ राज्य है। बिहार में सारक्षरता दर पूरे देश में सबसे कम 63.82 प्रतिशत है। देश की सबसे बड़ी समस्या बेरोजगारी सभी चुनावों में एक महत्वपूर्ण मुद्दा रहता है। राजनेताओं द्वारा बेरोजगारी के बहाने ही युवाओं को अपने पक्ष में रिझाया जाता है। यह ऐसी समस्या है जिसकी किसी भी सरकार के गिरने या बनने में महत्वपूर्ण भूमिका रहती है, लेकिन बेरोजगारी पर लगाम कभी नहीं लग सकी है।

 

ऐसा लगता है कि 2019 के आम चुनाव में भी बेरोजगारी बड़ा मुददा बनने जा रहा है। विपक्ष मोदी को बेरोजगारी के मसले पर इसलिये घेर रहा है क्योंकि मोदी ने 2014 में चुनाव प्रचार के दौरान वायदा किया था कि प्रत्येक वर्ष दो करोड़ रोजगार उपलब्ध कराये जायेंगे, जबकि मोदी के दावों के विपरीत इंटरनैशनल लेबर ऑर्गनाइजेशन का अनुमान है कि भारत में 2018 में बेरोजगारी की दर 3.5 प्रतिशत पर बनी रहेगी। दूसरी तरफ चीन में मौजूदा बेरोजगारी दर 4.7 प्रतिशत से बढ़कर 4.8 रहेगी। भारत के लिए चिंता की बात यह है कि देश में 77 प्रतिशत रोजगार असुरक्षित बने रहेंगे जबकि चीन में सिर्फ 33 प्रतिशत रोजगार असुरक्षित की श्रेणी में रहेंगे। आईएलओ की रिपोर्ट हालांकि कहती है कि पिछले 1−2 दशकों में सर्विस सेक्टर में खासकर भारत में अच्छी तादाद में रोजगार सृजित हुए हैं, लेकिन चिंता की बात यह है कि रोजगार के मामले में असंगठित क्षेत्र और असुरक्षित रोजगार का दबदबा है।

 

रिपोर्ट में कहा गया है कि असंगठित क्षेत्र में रोजगार की वजह से भारत में असुरक्षित रोजगार की दर ऊंची बनी हुई है। हालांकि 2017 से 2019 तक यह 77 प्रतिशत पर स्थिर है। असुरक्षित रोजगार में स्वरोजगार या परिवार द्वारा चलाए जा रहे प्रतिष्ठान में काम करना शामिल है। ऐसे लोगों के लिए बेहतर कामकाजी माहौल और पर्याप्त सामाजिक सुरक्षा की कमी रहती है। आईएलओ के डेटा के मुताबिक दुनिया में इस साल अनुमानतः 1.4 अरब लोग असुरक्षित रोजगार की श्रेणी में हैं, इनमें से अकेले भारत में 39.4 करोड़ यानी एक चौथाई से ज्यादा लोग हैं।

 

यह संतोषजनक बात हो सकती है कि अपने देश भारत में हर साल 1.2 करोड़ लोग लेबर मार्केट से जुड़ते हैं, लेकिन दुख की बात यह है कि खराब क्वालिटी की नौकरी के कारण यह लोग प्रतिदिन 198 रुपये ही कमा रहे हैं। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक पिछले चार सालों में हर रोज 550 नौकरियां खत्म हो रही हैं। तो एक अन्य सर्वे के अनुसार भारत में 12 करोड़ युवाओं के पास रोजगार नहीं है। श्रम ब्यूरो के सरकारी आंकड़ों के मुताबिक भारत में सबसे ज्यादा बेरोजगारी है।

 

लब्बोलुआब, यह है कि विपक्ष राफेल में भ्रष्टाचार जैसे भ्रामक मसलों को उठाने की बजाये अगर बेरोजगारी, किसानों की दुदर्शा, गरीबी को अपना हथियार बना ले तो 2019 के आम चुनाव में मोदी सरकार के लिये मुश्किल खड़ी हो सकती है। बेरोजगारी युवाओं से जुड़ा सीधा मसला है और देश का लगभग 60 प्रतिशत युवा अगर ठान ले तो सरकार बदलने में देरी नहीं लगेगी। मगर अफसोस की बात यह है कि देश की मौजूदा या पूर्ववर्ती सरकारों ने बेरोजगारी के बहाने युवाओं को बहकाने का ही काम किया है।

 

-अजय कुमार

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