संविधान बचाने के नाम पर चल रहे आंदोलन स्थलों पर अराजकता का माहौल

By अजय कुमार | Feb 10, 2020

उत्तर प्रदेश के कई जिलों में नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के खिलाफ चल रहा धरना−प्रदर्शन लगातार विवादों में फंस कर सुर्खियां बटोर रहा है। कथित आंदोलन में सच्चाई कम फसाना ज्यादा नजर आ रहा है। कहने को तो इस आंदोलन को 'आम जनता का संघर्ष', 'संविधान बचाने का अभियान' और न जाने क्या−क्या नाम दिया जा रहा है, लेकिन हकीकत यही है कि सीएए के खिलाफ आंदोलन में कुछ राजनैतिक दलों के सदस्यों के अलावा 95 प्रतिशत भागीदारी मुस्लिमों की ही नजर आ रही है। हालात यह हैं कि दिल्ली का शाहीन बाग हो या फिर लखनऊ का घंटाघर पार्क अथवा किसी अन्य जिले का कोई प्रदर्शन स्थल, सब जगह अराजकता का माहौल है।

 

धरना स्थल पर आंदोलनकारियों की मर्जी के खिलाफ मीडिया तो क्या परिंदा भी पर नहीं मार सकता है। अगर कोई हिम्मत दिखाकर पहुंच जाता है तो उसे लगभग बंधक बना लिया जाता है। गत दिनों ऐसे ही नजारा मुरादाबाद के ईदगाह मैदान में देखने को मिला, जब सूचना विभाग के एक कर्मचारी को शक के आधार पर धरना दे रहे लोगों ने घेर कर अभद्रता की। चाहे लखनऊ हो या फिर अन्य किसी जिले में चलने वाला प्रदर्शन, सभी जगह हालात एक जैसे हैं। सीएए के विरोध का सिलसिला 20 दिसंबर से शुरू हुआ था जिसमें सीएए का विरोध करने वालों ने आगजनी, लूटपाट सहित पुलिस और मीडिया को भी अपना निशाना बनाया था, तब से आज तक हालात जस के तस हैं। हिंसा के बाद सीएए के खिलाफ चल रहा आंदोलन अब अपनी वैभवता के लिए भी सुर्खियां बटोर रहा है। सीएए के खिलाफ चल रहे आंदोलन में जिस तरह पैसा पानी की तरह बहाया जा रहा है, उसने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। खुफिया विभाग ने जब छानबीन की तो फंडिंग को लेकर और चौंकाने वाली जानकारी सामने आई। टेरर फंडिंग के लिए विदेशी तार जुड़ने और हवाला के जरिए पैसे लाने का भी शक है। पुलिस के मुताबिक, पैसा खपाने के लिए खातेदारों ने चार्टेड अकाउंटेंटों (सीए) की मदद भी ली है।

इसे भी पढ़ें: मुट्ठीभर पाक परस्त मुसलमानों की आंखें अब तो खुल जानी चाहिए

उत्तर प्रदेश के कई शहरों में 20 दिसंबर 2019 को हिंसा हुई थी। इसमें कई लोगों की जान चली गई थी। पुलिस जांच में खुलासा हुआ है कि पॉपुलर फ्रंट आफ इंडिया (पीएफआई) ने हिंसा के लिए लोगों को भड़काया था। लोगों को इसके लिए फंडिंग भी की गई। पुलिस के एक आला अफसर के मुताबिक, जांच में मिल रही जानकारी से लगता है कि हिंसा के लिए पीएफआई से फंडिंग की रकम दस करोड़ से भी अधिक हो सकती हैं। सभी संदिग्ध खाते खंगाले जा रहे हैं। आशंका है कि फंडिंग के तार विदेश से भी जुड़े हैं।

 

शुरुआती जांच में हवाला से पैसा आने का शक है। जांच में सामने आ रहा है कि एक नंबर से पैसा मंगाने की कोशिश की गई है ताकि पुलिस शिकंजे और आयकर से बचा जा सके। इसके अलावा पैसा पंजीकृत संस्थाओं के नाम से भी आया है, जिसका प्रयोग दीनी तालीम आदि के लिए करने का दावा है।

 

बात पीएफआई के अतीत की कि जाए तो सबसे पहले 2007 में पीएफआई पश्चिमी यूपी में प्रकाश में आई थी। उसके खिलाफ मुकदमा दर्ज हुआ था लेकिन बाद में पुलिस ने उसमें फाइनल रिपोर्ट लगा दी थी। उसके बाद पत्थरबाजी करते, फायरिंग करते और सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ टिप्पणी करने वाले पोस्टर भी पीएफआई ने जारी किए थे। इन पोस्टरों पर प्रिंटिंग प्रेस के नाम नहीं थे। पुलिस को जांच में सुराग मिल रहा है कि दिल्ली के शाहीन बाग में पीएफआई का मुख्यालय है, वहां से भड़काऊ सामग्री वितरित की जाती है।

इसे भी पढ़ें: मुस्लिम नेता जिन्ना जैसे कट्टर क्यों होते हैं ? कलाम जैसे सहृदय क्यों नहीं बनते ?

गौरतलब है कि डीजीपी और प्रमुख सचिव (गृह) भी हाल में दावा कर चुके हैं कि हिंसा फैलाने में पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया की अहम भूमिका रही हैं। मेरठ, लखनऊ, कानपुर, सीतापुर, गाजियाबाद, शामली आदि 13 जिलों में पीएफआई के 108 सक्रिय सदस्यों को सिर्फ चार दिन में गिरफ्तार किया गया। पीएफआई के प्रदेश अध्यक्ष वसीम अहमद समेत 25 सदस्यों को पहले गिरफ्तार किया था। मेरठ जोन में ही अकेले अब तक 47 पीएफआई सदस्य गिरफ्तार किए गए हैं। जिनमें मेरठ में 21, गाजियाबाद में 9, मुजफरनगर में 6 और शामली में 10 शामिल हैं। जोन में अभी करीब 80 सदस्य और चिह्नित किए गए हैं।

 

बहरहाल, जिस चरमपंथी इस्लामी संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) का नाम उत्तर प्रदेश में नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के खिलाफ विरोध प्रदर्शन में भड़की हिंसा में प्रमुखता से सामने आया है, वह पीएफआई यानि पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया 2006 में केरल में नेशनल डेवलपमेंट फ्रंट (एनडीएफ) के मुख्य संगठन के रूप में शुरू हुई थी। केंद्रीय एजेंसियों के ताजा खुफिया इनपुट के मुताबिक पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया ने नेशनल डेवलपमेंट फ्रंट, मनिथा नीति पासराई, कर्नाटक फोरम फॉर डिग्निटी और अन्य संगठनों के साथ मिलकर कई राज्यों में पहुंच हासिल कर ली है। वैसे तो यूपी में 2007 में पीएफआई चर्चा में आया था, लेकिन तब की मायावती सरकार ने इसको 'फन' उठाने से पहले की कुचल दिया था। इसको पाँव पसारने का मौका तब मिला जब प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी। पीएफआई ने पिछले दो सालों में उत्तर प्रदेश के मुसलमानों के जहन में खूब जहर उगला है।

 

सीएए का हौवा खड़ा करके इसने अपनी ताकत में बेतहाशा वृद्धि कर ली। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के शामली जिले में 19 दिसंबर से पीएफआई के 14 सदस्यों सहित 28 लोगों को गिरफ्तार किया गया है, जो कथित रूप से सीएए के विरोध प्रदर्शनों के दौरान बड़े पैमाने पर लोगों को उकसाने का प्रयास कर रहे थे, जिनमें इस संस्था का अहम सदस्य मोहम्मद शदाब भी शामिल था। पीएफआई के बारे में लखनऊ के एसएसपी कलानिधि नैथानी से जब पूछा गया तो उनका कहना था कि लखनऊ हिंसा के मास्टरमाइंड वसीम, नदीम और अशफाक जिनको पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है, तीनों पीएफआई से जुड़े हैं। वसीम पीएफआई का प्रदेश प्रमुख जबकि वसीम खजांची है और नदीम इसी संस्था का सदस्य है।

 

विश्वस्त सूत्रों ने बताया है कि यूपी पुलिस को ऐसे इंटेलिजेंस इनपुट मिले थे जिसमें कहा गया था कि पीएफआई सदस्य कैराना और शामली के कांधला शहर में हिंसा फैलाने की योजना बना रहे हैं। पीएफआई के कुछ सदस्य हिरासत में भी लिए गए थे जिनके बारे में पता चला कि उन्होंने केरल का दौरा किया और वहां कुछ संदिग्ध लोगों से मुलाकात की और वहीं प्रदेश को हिंसा की आग में झोंक देने का खाका तैयार हुआ। उधर, योगी सरकार ने पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया पर प्रदेश में प्रतिबंध लगाने की तैयारी शुरू कर दी है। इस संबंध में पुलिस और गृह विभाग की ओर से राज्य सरकार को प्रस्ताव भेजा गया है।

 

-अजय कुमार

 

प्रमुख खबरें

Election Commission ने AAP को चुनाव प्रचार गीत को संशोधित करने को कहा, पार्टी का पलटवार

Jammu Kashmir : अनंतनाग लोकसभा सीट के एनपीपी प्रत्याशी ने अपने प्रचार के लिए पिता से लिये पैसे

Mumbai में बाल तस्करी गिरोह का भंडाफोड़, चिकित्सक समेत सात आरोपी गिरफ्तार

‘आउटर मणिपुर’ के छह मतदान केंद्रों पर 30 अप्रैल को होगा पुनर्मतदान