By सचिन शर्मा | May 15, 2020
कवि ने इस कविता के माध्यम से महिला की सुरक्षा को लेकर यह बताना की कोशिश की है कि आज समाज में महिलायें कितनी सुरक्षित है। कवि ने बताया कि महिलाओं को किन-किन परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है और वह अपनी सुरक्षा के प्रति कितनी आशान्वित है।
मन व्यथित और रूह परेशान हैं,
उस रात सांसो से युद्ध वो लड़ी ।
मन के शून्य चेतन में गौर से देखो,
सड़क पर रात में निर्भया अकेली खड़ी।।
बहन बोलकर बिटिया को पास बुलाया था,
हंसकर अपने कदमों को फिर उसने बढ़ाया था ।
अचानक कौन सी घड़ी आन पड़ी,
सड़क पर रात में निर्भया अकेली खड़ी ।।
वह सोचती होगी कि बस अब घर लौट जाऊंगी,
मां के आंचल में सर रख के मैं चैन पाऊंगी ।
लेकिन वक्त की दुश्वारियां है बड़ी,
सड़क पर रात में निर्भया अकेली।।
उस अगली सुबह मैं निशब्द था मौन था,
माथे की लकीरों का उत्तरदाई कौन था ।
थी सामने मेरी मासूम सी दो बेटियां खड़ी,
सड़क पर रात में निर्भया अकेली खड़ी ।।
चंड-मुंड, शुंभ-निशुंभ, रक्तासुर-महिषासुर जैसे दानव,
संघार किया इन सबका और बचाए थे मानव, ।
उन्हीं मनुष्यों में कैसी आसुरी प्रवृत्ति आन पड़ी,
सड़क पर रात में निर्भया अकेली खड़ी ।।
वह चीखी, चिल्लाई और कर्राही होगी,
फिर भी उन राक्षसों को शर्म ना आई होगी ।
अनुनय विनय करते सिसक कर रो पड़ी,
सड़क पर रात में निर्भया अकेली खड़ी ।।
पापा भी हुए होंगे बहुत परेशान और,
मां का कलेजा भी जल रहा होगा।
थी सारी रात दोनों की निगाहें चौखट पर गड़ी,
सड़क पर रात में निर्भया अकेली खड़ी ।।
इंसानियत की सारी हदें पार हो गई होंगी,
हैवानियत भी शर्म से तार-तार हो गई होगी।
सांसे हो रही अवरुद्ध फिर भी वो लड़ी,
सड़क पर रात में निर्भया अकेली खड़ी ।।
- सचिन शर्मा