इस बेहद से इश्क की हदों को न आज़माया करो तुम...

By टीम गुलज़ारियत | Feb 17, 2018

मुंबई के शायर समूह गुलज़ारियत की ओर से लिखी गयी यह नज़्म पाठकों को पसंद आयेगी। इसमें बड़े ही अलग अंदाज में इश्क से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर नजर डाली गयी है।

कुछ हसरतें...

हसरतों को हकीकत न दिखाया करो तुम

यूं बिछड़ते वक्त मुड़ तो जाया करो तुम

मशवरे हिदायतें.. वो सब ठीक है लेकिन

इस बेहद से इश्क की हदों को न आज़माया करो तुम

जब अमावस में तारों को तुम्हारी कमी खलती है

जब ये आँखें इंतज़ार में रात भर जलती हैं

उस एक रात ना आने पर रूठ जो जाता हूँ मैं

एक ही मुस्कान से मुझे यूँ न मनाया करो तुम

धड़कनों की गुफ्तगू में ले आते हो आँखों को

हम पर ये सितम न ढाया करो तुम,

अदा करनी है नमाज़ समझता हूँ मैं

मगर मस्जिद में आँखों से न पिलाया करो तुम

इक कंधा है जो मिल जाता है मुझको हर गम में

बेवजह मुस्कुराने का बहाना हमदम में

हँसाने का हुनर तो तुम में खूब है साथी

पर इस हँसाने के लिए खुद ही पहले न रुलाया करो तुम

कभी तो मेरी आवाज़ बनने आओगे तुम

गम-ए-गुबार का हमराज़ बनने आओगे तुम

इस हर इक हर्फ़ में जो कुरेदा है मैंने

इस बेजान पड़ी नज़्म की जान बनने आओगे तुम

 

- टीम गुलज़ारियत

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