नारी तेरे रूप अनेक (कविता)

By प्रतिभा तिवारी | Mar 08, 2019

वर्तमान में भी वर्ष के सिर्फ एक दिन ही हम महिलाओं को सम्मान, प्यार, सत्कार का हकदार समझते हैं, हर 8 मार्च को ये सवाल सभी के जेहन में आता है। इसी बात से प्रेरित होकर कवयित्री प्रतिभा तिवारी ने महिला के अनेकों रूपों का वर्णन 'नारी तेरे रूप अनेक' कविता में किया है।

 

नारी तेरे रूप अनेक 

सभी युगों और कालों में 

है तेरी शक्ति का उल्लेख 

ना पुरुषों के जैसी तू है 

ना पुरुषों से तू कम है  

स्नेह,प्रेम करुणा का सागर 

शक्ति और ममता का गागर 

तुझमें सिमटे कितने गम है  

गर कथा तेरी रोचक है तो 

तेरी व्यथा से आंखे नम है 

मिट-मिट हर बार संवरती है 

खुद की ही साख बचाने को 

हर बार तू खुद से लड़ती है 

आंखों में जितनी शर्म लिए 

हर कार्य में उतनी ही दृढ़ता  

नारी का सम्मान करो 

ना आंकों उनकी क्षमता 

खासतौर पर पुरुषों को 

क्यों बार बार कहना पड़ता 

हे नारी तुझे ना बतलाया 

कोई तुझको ना सिखलाया 

पुरुषों को तूने जो मान दिया 

हालात कभी भी कैसे हों 

तुम पुरुषों का सम्मान करो 

नारी का धर्म बताकर ये 

नारी का कर्म भी मान लिया 

औरत सृष्टि की जननी है 

श्रृष्टि की तू ही निर्माता 

हर रूप में देखा है तुझको 

हर युग की कथनी करनी है 

युगों युगों से नारी को 

बलिदान बताकर रखा है 

तू कोमल है कमजोर नहीं 

पर तेरा ही तुझ पर जोर नहीं 

तू अबला और नादान नहीं 

कोई दबी हुई पहचान नहीं 

है तेरी अपनी अमिटछाप 

अब कभी ना करना तू विलाप 

 चुना है वर्ष का एक दिन 

नारी को सम्मान दिलाने का 

अभियान चलाकर रखा है 

बैनर और भाषण एक दिन का 

जलसा और तोहफा एक दिन का 

हम शोर मचाकर बता रहे 

हम भीड़ जमाकर जता रहे 

ये नारी तेरा एक दिन का

सम्मान बचाकर रखा है 

मैं नारी हूं है गर्व मुझे 

ना चाहिए कोई पर्व मुझे 

संकल्प करो कुछ ऐसा कि 

अब सम्मान मिले हर नारी को 

बंदिश और जुल्म से मुक्त हो वो 

अपनी वो खुद अधिकारी हो। 

 

- प्रतिभा तिवारी

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