By प्रतिभा तिवारी | Sep 05, 2019
शिक्षक अपनी दुनिया का वह इकलौता जीव होता है जिसे अपने बच्चों, पढ़ने−पढ़ाने में आनंद आता है। वह स्कूल के बाहर कभी झांकता भी है तो उसे पूरी दुनिया विद्यालय-सा ही नज़र आती है। इस कविता में कवयित्री ने गुरु की महिमा का बड़ा सुंदर वर्णन किया है।
वेद, पुराण, उपनिषद् हो
रामायण हो या गीता,गुरुग्रंथ
गुरु की महिमा गा रहे
खुद भगवन और साधु सन्त
जग निर्माता ईश्वर भी
गुरु की शिक्षा से जीवंत
बड़े बड़े विद्वानों ने भी
किया है शिक्षा प्राप्त
शिक्षण की कोई उम्र नहीं
ना होती अवधि समाप्त
जितनी शिक्षा बाटेंगे
उतनी ही होगी प्राप्त
हर पेशे की नीव है शिक्षक
कभी ना करना तुलना इनकी
अध्यापक समाज निर्माता
अध्यापन है दुनियां इनकी
गुरु गोविन्द के प्रथम खड़े
हैं ईश्वर के उपहार
शिष्यों से जो भेदभाव रहित
करे सदा व्यवहार
सही, गलत, अच्छे बुरे का
देते सदा हैं ज्ञान
सभी जीवों में शिक्षित हो
हम कहलाए इंसान
सारी दुनियां शिक्षक के पीछे
जो काल गति को दे मोड़
शिक्षक के शिक्षण से हम
दे धरा से अम्बर जोड़
समाज में शिक्षक की भूमिका
होती है महत्वपूर्ण
समाज के हर वर्ग को
एक शिक्षक ही करता है परिपूर्ण
शिक्षा की अनेक है भाषा
पर शिक्षा की है एक परिभाषा
शिक्षा से बस एक ही आशा
शिक्षक, विद्यार्थी दोनों हों
शिक्षा की परीक्षा में उत्तीर्ण
भेद, स्वार्थ ना पनपे
ना हो मानसिकता संकीर्ण
गुरु और शिष्य दोनों
समझे खुद की महत्ता
सदियों से ही दोनों के हाथ में
है समाज की सत्ता।
- प्रतिभा तिवारी