By कमलेश पांडे | Dec 26, 2025
दिल्ली-एनसीआर के लिए प्राकृतिक वरदान समझी जाने वाली अरावली पर्वतश्रृंखला पर चल रहे विरोध प्रदर्शनों के दृष्टिगत और प्रस्तावित अरावली सत्याग्रह के बीच केंद्र सरकार ने विभिन्न राज्यों को स्पष्ट निर्देश दिया है कि इस पर्वतमाला क्षेत्र में अब किसी भी प्रकार के नए खनन पट्टे (माइनिंग लीज) जारी न किए जाएं। इससे साफ है कि अरावली पर्वतश्रृंखला पर जारी सियासत के दृष्टिगत केंद्र सरकार अब सजग हो चुकी है और जनहित के मद्देनजर आवश्यक दिशानिर्देश जारी किया है। इससे अरावली पर्वतश्रृंखला में जैव विविधता के संरक्षण की उम्मीद भी बढ़ी है। यदि वाकई ऐसा होता है तो देश की राजधानी नई दिल्ली के लिए यह शुभ कदम होगा। यहां के जल संरक्षण, वायु संरक्षण और पर्यावरण संरक्षण आदि की दिशा में इसके सकारात्मक प्रभाव जल्द दिखेंगे।
पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने गत बुधवार को इस बारे में एक नया आदेश जारी किया है, जिसमें स्पष्ट किया हुआ है कि यह प्रतिबंध गुजरात, राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली तक फैली पूरी अरावली श्रृंखला पर समान रूप से लागू होगा। मंत्रालय के मुताबिक, यह फैसला अरावली को पर्वतमाला के रूप में सुरक्षित रखने और इसके आसपास चल रहे अवैध खनन पर पूरी तरह से रोक लगाने के मकसद से लिया गया है। लगे हाथ सरकार ने भारतीय वानिकी अनुसंधान और शिक्षा परिषद (ICFRE) को यह भी निर्देश दिया है कि वह पूरे अरावली रीजन में ऐसे जोन की पहचान करे, जहां खनन पर पूरी तरह से बैन लगाया जाना चाहिए।
उल्लेखनीय है कि माननीय सुप्रीम कोर्ट ने हाल में कहा था कि आसपास की जमीन से कम से कम 100 मीटर ऊंचे हिस्से को ही अरावली पहाड़ी माना जाएगा। इसप्रकार इस नए मानक से कई ऐसी पहाड़ियों पर खनन का डर पैदा हुआ, जो 100 मीटर से छोटी और झाड़ियों से ढकी हुई है। यही वजह है कि पर्यावरण प्रेमियों ने इसे मुद्दा बना दिया और राजनीतिक दलों के मुखर होने से विरोध तेज हुआ। हालांकि अरावली सत्याग्रह की हवा निकालने के लिये केंद्र सरकार ने समय रहते ही समुचित कदम उठा लिए। साथ ही इसके इर्द-गिर्द पुनः हरियाली वापस लाने के उपाय करने के दिशा-निर्देश जारी किए हैं।
वहीं, केंद्र सरकार ने भारतीय वानिकी अनुसंधान और शिक्षा परिषद को अरावली क्षेत्र में सतत खनन (Sustainable Mining) के लिए वैज्ञानिक योजना बनाने का निर्देश दिया है। लिहाजा, यह वैज्ञानिक योजना ही अब देखेगी कि खनन का प्रकृति पर कितना बुरा असर पड़ रहा है और अरावली क्षेत्र कितना भार सह सकता है। जहा खनन हो चुका है, उन क्षेत्रों को फिर से सुधारने और वहां पर हरियाली वापस लाने के उपाय किए जाएंगे। यह दूरदर्शिता भरा कदम है जो सराहनीय है।
पर्यावरण और वन मंत्रालय ने यह भी निर्देश दिया है कि जो खदाने पहले से संचालित है, उनके लिए सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के अनुरूप सभी पर्यावरणीय सुरक्षा उपायों का राज्य सख्ती से पालन कराए जाएं। मंत्रालय ने यह भी स्पष्ट किया है कि मौजूदा खनन गतिविधियों को भी कड़े नियमों और अतिरिक्त प्रतिबंधों के तहत कंट्रोल किया जाएगा।
बताते चलें कि अरावली अस्तित्व संकट मुख्य रूप से अवैध खनन और पर्यावरणीय क्षरण से जुड़ा है, जो 1990 के दशक में शुरू हुआ। इस दौरान राजस्थान, हरियाणा और गुजरात में खनन गतिविधियों से पहाड़ियों को भारी नुकसान पहुंचा। अरावली पर्वतमाला में अवैध खनन की शिकायतें 1990 के दशक से बढ़ने लगीं, जब संगमरमर और ग्रेनाइट जैसे खनिजों के दोहन से पर्यावरण, जल संकट और वायु प्रदूषण उभरा।
अलबत्ता 1992 में सुप्रीम कोर्ट ने पहली बार हस्तक्षेप कर कुछ क्षेत्रों में खनन रोका। वहीं 2002 में सेंट्रल एम्पावर्ड कमेटी ने हरियाणा और राजस्थान में पूर्ण खनन प्रतिबंध लगाया। ततपश्चात 2003 का विवादास्पद मर्फी फॉर्मूला लागू हुआ, जिसने 100 मीटर से कम ऊंचाई वाली पहाड़ियों को खनन योग्य घोषित किया। पुनः बढ़ते विरोध के मद्देनजर 2009 में हरियाणा के कई जिलों में स्थायी प्रतिबंध लगा। जहां तक इसे मुद्दे पर हालिया विकास की बात है तो नवंबर 2025 में सुप्रीम कोर्ट ने अरावली की नई परिभाषा (100 मीटर ऊंचाई) मंजूर की, जिससे खनन का खतरा फिर बढ़ गया है। यह थार रेगिस्तान के विस्तार और दिल्ली-एनसीआर के पर्यावरण को प्रभावित कर सकता है।
अरावली में अवैध खनन मुख्य रूप से 1990 के दशक से तेजी से बढ़ा, जब संगमरमर, ग्रेनाइट और चूना पत्थर जैसे खनिजों की मांग बढ़ने लगी। यह राजस्थान, हरियाणा और गुजरात की सीमाओं पर जंगलों के बीच गुप्त सड़कों और रात के अंधेरे में विस्फोटों के जरिए फैला। इसके बढ़ोतरी के कारण खनन माफियाओं ने स्थानीय प्रशासन की मिलीभगत से जंगल काटे, डंपरों के लिए रास्ते बनाए और सप्ताहांतों पर बड़े पैमाने पर ब्लास्टिंग की।
आंकड़े बताते हैं कि 1975 से 2019 तक अरावली की 8% पहाड़ियां गायब हो चुकीं थीं, जिसमें अवैध खनन की मुख्य भूमिका रही। 2018 तक राजस्थान में 25% अरावली प्रभावित क्षेत्र नष्ट हो चुका। नूह, चित्तौड़ा जैसे इलाकों से 8 करोड़ मीट्रिक टन से अधिक सामग्री गायब। आलम यह रहा कि सुप्रीम कोर्ट के प्रतिबंधों के बावजूद सरिस्का जैसे संरक्षित क्षेत्रों में जारी। वहीं, हालिया स्थिति यह है कि 2024-2025 में हरियाणा-राजस्थान सीमा पर 30 से अधिक गांवों में खनन माफिया सक्रिय, जिससे धूल भरी आंधियां और दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण बढ़ा। इससे सतर्क हुए एनजीटी ने कई बार जांच के आदेश दिए।
देखा जाए तो अरावली संकट से सबसे ज्यादा प्रभावित जिले राजस्थान, हरियाणा और गुजरात के सीमावर्ती क्षेत्रों में हैं, जहां अवैध खनन ने पहाड़ियों को नष्ट किया। राजस्थान के जिले अलवर, जयपुर, सीकर और उदयपुर जैसे जिले सबसे अधिक प्रभावित हुए, जहां सरिस्का टाइगर रिजर्व के आसपास खनन माफिया सक्रिय रहे। यहां 1990 से 25% क्षेत्र नष्ट हो चुका। वहीं, हरियाणा के जिले नूह (मेवात), गुरुग्राम, महेंद्रगढ़ और रेवाड़ी में 30 से अधिक गांव खनन से तबाह, धूल भरी आंधियां दिल्ली-एनसीआर तक पहुंचीं। वहीं गुजरात के जिले साबरकांठा और बनासकांठा जिलों में चूना पत्थर खनन से अरावली का बड़ा हिस्सा गायब। कुल मिलाकर, इन जिलों में 1975-2019 तक 8% पहाड़ियां समाप्त हो चुकीं।
- कमलेश पांडेय
वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक