Aravalli Hills को लेकर चल रही बयानबाजी तेज, पर्यावरण मंत्री के स्पष्टीकरण से आंदोलनजीवी कठघरे में

सरकार का कहना है कि उच्चतम न्यायालय द्वारा स्वीकृत यह ढांचा नए खनन पट्टों पर तब तक रोक लगाता है जब तक व्यापक प्रबंधन योजना तैयार नहीं हो जाती। सरकार के अनुसार, यह परिभाषा चार राज्यों में एकरूपता लाने के लिए तय की गई है ताकि अस्पष्टता खत्म हो और दुरुपयोग रुके।
अरावली पर्वतमाला की नयी परिभाषा को लेकर उठे तूफान के बीच केंद्र सरकार ने कहा है कि इस बदलाव से खनन को कोई छूट नहीं मिलेगी और संरक्षण की दीवार पहले से अधिक मजबूत होगी। केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने कहा कि अरावली का कुल क्षेत्र लगभग एक लाख सैंतालीस हजार वर्ग किलोमीटर है, जिसमें से केवल दो प्रतिशत क्षेत्र में ही खनन संभव है, वह भी विस्तृत अध्ययन और सतत योजना के बाद। उन्होंने साफ किया कि दिल्ली क्षेत्र में किसी भी तरह का खनन नहीं होगा और अरावली के भीतर मौजूद बीस से अधिक आरक्षित वन और संरक्षित क्षेत्र पूरी तरह सुरक्षित रहेंगे।
हम आपको बता दें कि केंद्र सरकार ने उन खबरों को सिरे से खारिज कर दिया है जिनमें कहा जा रहा था कि अरावली की परिभाषा बदलकर बड़े पैमाने पर खनन का रास्ता खोला जा रहा है। सरकार का कहना है कि उच्चतम न्यायालय द्वारा स्वीकृत यह ढांचा नए खनन पट्टों पर तब तक रोक लगाता है जब तक व्यापक प्रबंधन योजना तैयार नहीं हो जाती। सरकार के अनुसार, यह परिभाषा चार राज्यों में एकरूपता लाने के लिए तय की गई है ताकि अस्पष्टता खत्म हो और दुरुपयोग रुके। केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने साफ कहा है कि अरावली के बारे में जानबूझकर भ्रम फैलाया जा रहा है।
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देखा जाये तो अरावली की लड़ाई केवल सौ मीटर की गणित नहीं है, यह भरोसे की लड़ाई है। सवाल यह नहीं कि कागज पर कितने प्रतिशत क्षेत्र संरक्षित है, सवाल यह है कि जमीन पर क्या बचेगा। सरकार के दावे मजबूत हैं, आंकड़े चमकदार हैं और अदालत की मुहर भी लगी है। एक ओर सत्ता पक्ष हर सवाल को भय फैलाने का आरोप बताकर टाल रहा है, दूसरी ओर विपक्ष हर सरकारी कदम को विनाश की साजिश कह रहा है। देखा जाये तो अरावली न तो भाजपा की है न कांग्रेस की, यह इस इलाके के पानी, हवा और जीवन की रीढ़ है। इतिहास गवाह है कि पहाड़ खामोशी से कट तो जाते हैं लेकिन शोर तब मचता है जब बहुत देर हो चुकी होती है।
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