By अनन्या मिश्रा | Jan 14, 2025
इतने दिन तक चलता है पोंगल पर्व
बता दें कि पोंगल का पर्व चार दिन तक चलता है। इसमें पहले दिन भोगी पोंगल, दूसरे दिन थाई पोंगल, तीसरे दिन मट्टू पोंगल और चौथे दिन कानूम पोंगल कहा जाता है। तमिलनाडु में पोंगल पर्व की अलग ही रौनक देखने को मिलती है। इस पर्व पर लोग नए कपड़े पहनते हैं, घरों को सजाते हैं और तरह-तरह के पकवान बनाते हैं।
क्यों मनाया जाता है पोंगल पर्व
पोंगल का पर्व मकर संक्रांति की तरह तमिलनाडु में भी सूर्य देव के उत्तरायण होने पर मनाया जाता है। यह पर्व सूर्य देव को समर्पित होता है। साथ ही यह पर्व नई फसल के आगमन का भी प्रतीक माना जाता है।
पोंगल का पहला दिन (भोगी पोंगल)
पोंगल का पहला दिन भोगी पोंगल के रूप में मनाया जाता है। इस दिन पुराने और अनुपयोगी कपड़ों और सामान को जलाकर नए जीवन को शुरू करने का संकल्प लिया जाता है।
पोंगल का दूसरा दिन (थाई पोंगल)
इस पर्व के दूसरे दिन को थाई पोंगल कहा जाता है। इस दिन सूर्य देव की पूजा-उपासना की जाती है। थाई पोंगल के लिए नए चावल, गुड़ और दूध से विशेष तरह के पकवान बनाए जाते हैं। इन पकवानों को मिट्टी के बर्तनों में पकाया जाता है। पकवान बनने के बाद इसे सबसे पहले सूर्य देव को अर्पित किया जाता है।
पोंगल का तीसरा दिन (मट्टू पोंगल)
पोंगल पर्व के तीसरे दिन गाय और बैलों की पूजा की जाती है। इस दिन गाय और बैलों को फूलों, मालाओं और रंगीन वस्त्रों से सजाया जाता है। यह दिन पशुओं के प्रति सम्मान व्यक्त करने का दिन होता है। क्योंकि पशु खेती में अहम भूमिका निभाते हैं।
पोंगल का चौथा दिन (कानुम पोंगल)
कानुम पोंगल इस पर्व का आखिरी दिन होता है। इसको अपने दोस्तों और परिवार के साथ मनाया जाता है। इस दिन करीबी लोग अपनों के साथ यादगार पल बिताते हैं औऱ पिकनिक पर घूमने-फिरने जाते हैं।
पोंगल का महत्त्व
पोंगल सिर्फ एक पर्व ही नहीं बल्कि यह कृषि, प्रकृति और परिवार के प्रति आभार व्यक्त करने का जरिया है। पोंगल पर्व सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से भी महत्वपूर्ण होता है। यह पर्व नई शुरूआत, समृद्धि और खुशी का भी प्रतीक है।