आतंकवाद का सही कारण बताया पोप फ्रांसिस ने

By मिथिलेश कुमार सिंह | Mar 29, 2016

यूरोप जहाँ सर्वाधिक विकसित और सम्पन्न होने का जश्न मनाता रहा है, वहीं अब तेज गति से आतंकवाद के जहर का सर्वाधिक शिकार भी होता जा रहा है। छिटपुट आतंकी हमलों को छोड़ भी दें तो 7 जनवरी, 2015 को पेरिस में मशहूर व्यंग्य पत्रिका चार्ली ऐब्दो के दफ्तर में हुए आतंकी हमले में 20 लोगों की जान गई थी, जिसने यूरोप समेत शेष विश्व को सकते में डाल दिया था। इस हमले से फ़्रांस उबरा भी नहीं था कि 13 नवम्बर 2015 को राजधानी पेरिस पर हुए एक बड़े आतंकी हमले में कम से कम 140 लोगों के मारे जाने और 55 लोगों के गंभीर रूप से घायल होने की खबर ने समूची मानवता को एक बार फिर दहला दिया। न केवल फ़्रांस बल्कि लन्दन समेत दूसरे यूरोपीय शहरों के लोग भी इस खौफ में हैं कि न जाने किधर से और कब उनकी दुनिया में आतंक के धमाके सुनाई दे जाएँ। इसी कड़ी में, ब्रसेल्स में रोज की तरह सब कुछ ठीक चल रहा था कि अचानक जैसे ही घड़ी में सुबह के 8 बजे, जैवनटेम हवाई अड्डा हिल उठा। इमारत की खिड़कियां चकनाचूर हो गईं और वहां मौजूद लोगों के शरीर के चीथड़े उड़ गए। जब तक किसी की समझ में कुछ आता, तब तक धुएं के गुबार से एयरपोर्ट ढक चुका था। इस हमले में 35 लोग मरे तो सैकड़ों घायल हो गए।

 

भारत में आतंकी हमलों पर पश्चिम के तमाम देश यह कहते थकते नहीं थे कि उसे मानवाधिकारों पर सजग होना चाहिए, किन्तु अब उन्हें यह बताना मुश्किल पड़ रहा है कि आखिर यूरोप इस आग में क्योंकर जल रहा है? जाहिर तौर पर कई कारण इसके पीछे गिनाए जा सकते हैं, जिसमें विचारधारा से लेकर सीरिया के शरणार्थियों तक को दोष दिया जा सकता है, किन्तु सबसे सटीक जो कारण सामने आया है, उसे बताया है पोप ने! न केवल उन्होंने आतंक के पीछे के एक प्रमुख कारण को साफगोई से बताया है, बल्कि मानवता को लेकर एक मिशाल भी पेश करने की पहल की है। रोमन कैथोलिक चर्च के पोप फ्रांसिस ने धार्मिक सद्भावना का संदेश देने के लिए रूढ़िवादी, मुस्लिम, हिंदू और कैथोलिक शरणार्थियों के पैर धोए हैं। उन्होंने सभी को एक ही ईश्वर की संतान घोषित किया तो मार-काट की निंदा करते हुए उसे ‘युद्ध की मुद्रा’ ठहराया है। सबसे दिलचस्प बात जो पोप के कथन में सामने आयी, वह हथियारों की होड़ को लेकर थी। उन्होंने साफ़ कहा कि 'हथियार उद्योग से लोगों को खून का प्यासा बनाया जा रहा है।' पोप फ्रांसिस ने भाईचारे की यह मिसाल ऐसे समय में दी है, जब ब्रसेल्स हमलों के बाद मुस्लिम विरोधी भावनाएं और भी तेज़ी से बढ़ी हैं। ऐसे में पोप फ्रांसिस का यह कहना कि हमें शांति से रहना चाहिए और मानवता की रक्षा करनी चाहिए, बेहद महत्वपूर्ण है।

 

पोप ने बड़ी हिम्मत की है, क्योंकि हथियारों की दौड़ को बढ़ावा देने वाले मुख्य लोगों में वैश्विक स्तर पर ईसाई समुदाय के लोग ही काबिज़ हैं, जिन्हें सन्देश देने के लिए पोप से बेहतर दूसरा विकल्प क्या होता भला! हमें यह स्वीकारने में क्यों संकोच होना चाहिए कि अगर, छोटे हथियारों से लेकर बड़े रॉकेट लॉन्चर तक आज आतंकवादियों के तमाम समूहों के पास हैं तो वह कहीं न कहीं हथियारों की मार्केट बनाने और उसमें सप्लाई करने वालों के कारण ही हैं। कंप्यूटर की दुनिया में हम सब सुनते थे कि तमाम एंटी वायरस कंपनियां पिछले दरवाजे से पहले वायरस को फैलाती हैं तो उनके एंटी वायरस की बिक्री आसान हो जाती है। सुनने में यह अजीब है, किन्तु क्या यह बात सच नहीं है कि आतंकी समूहों को खड़ा करने में हथियार के इन्हीं सौदागरों का बड़ा हाथ है। यहाँ तक कि आज समूचे विश्व के लिए खतरा बन चुके इस्लामिक स्टेट के प्रसार में भी कई देशों का सीधा हाथ बताया गया है तो तेल के बदले तुर्की इत्यादि देशों पर इन आतंकियों को हथियार सप्लाई करने का सीधा आरोप तक लगा है। सीरिया में जिस तरह वर्चस्व की लड़ाई में समूची वैश्विक शक्तियां उलझी हुई हैं, उससे पोप का कथन बिलकुल सही साबित होता है। निश्चित रूप से हथियारों की मार्केट और आतंक में वैश्विक सम्बन्ध जगजाहिर हो चुका है। कुछेक बातें जो गौर करने लायक हैं वह पोप और ताकतवर ईसाई लॉबी को भी समझनी होगी कि अब सिर्फ शरणार्थियों के पाँव धोने और हथियारों की मार्केट के बारे में टीका-टिप्पणी करने भर से काम नहीं चलेगा, बल्कि हथियारों की अवैध दौड़ को बढ़ावा देने वाले देशों पर दबाव भी बनाना पड़ेगा, जिससे दुनिया को जंग में झोंकने से पहले वह इसके परिणाम के बारे में सोचने पर मजबूर हो जाएँ। निश्चित रूप से यूरोप के भी कई देश इस रेस को बढ़ावा देने में शामिल रहे हैं तो कई समृद्ध इस्लामिक देश भी इस मामले में अपना हाथ खुल कर सेंकते हैं।

 

अमेरिका और लादेन का सम्बन्ध भला कौन नहीं जानता तो चीन द्वारा पाकिस्तान को हथियार का नया अखाड़ा बनाने से भारत सहित पूरा वैश्विक समुदाय चिंतित है। जरा गौर कीजिये, सामान्य और कुछ विध्वंसक हथियार जब आतंकियों के हाथ में हैं और दुनिया इतनी परेशान है और अगर हथियारों की यह दौड़, खुदा-न-खास्ता परमाणु हथियार और आतंकवादियों का मिलन करा दे तो ब्रुसेल्स और फ़्रांस में निर्दोष नागरिक जहाँ सैकड़ों में मारे जा रहे हैं, उनकी संख्या लाखों में कब हो जाए, इस बात की गारंटी देने की हालत में कौन है भला? आखिर, परमाणु हथियारों की तस्करी और उसके आतंकियों के हाथों में जाने की रपट कई वैश्विक एजेंसियां पहले ही दे चुकी हैं। आगे जब हम इस कड़ी में विचार करते हैं तो स्पष्ट होता है कि हथियारों की दौड़ के अतिरिक्त, उदार इस्लाम को बढ़ावा देने वालों में भरोसा जताना आतंक को रोकने में दूसरा बड़ा फैक्टर साबित हो सकता है। पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऐसे ही एक कार्यक्रम में बहुत सटीक वक्तव्य दिया, जिसे समूचे विश्व को एक बार जरूर आजमाना चाहिए। वर्ल्ड सूफी फोरम के कार्यक्रम में पीएम ने कहा कि सूफी पुरानी परंपराओं और विश्वास की फुहार है। ऐसे में जब, आतंकवाद लोगों को बांट रहा है और बर्बाद कर रहा है, हर तरफ हिंसा की छाया गहरी होती जा रही है, तो सूफी एक उम्मीद की किरण है। यह खुद में शांति, सहिष्णुता और प्यार का संदेश देती है।' साफ़ है कि जब पूरा विश्व आतंक की आग में जल रहा है ऐसे में भारत की जमीन पर खुलेपन और उदारता से यहाँ फैला सूफिज्म दुनिया भर के लोगों के लिए एक मजबूत शांति आधार की तरह है तो पोप का खुला उद्गार और भगवान कृष्ण की तरह लोगों के चरण धोना एक नयी राह खोलने का द्वार! हाँ, इस दरमियान हथियार के सौदागरों के खिलाफ पूरी दुनिया को एक सुर में सख्ती दिखानी होगी, इस बात में कहीं कोई संदेह नहीं होना चाहिए, क्योंकि हथियारों के व्यापारी अधिक से अधिक युद्ध और लड़ाई में यकीन रखते हैं, यह बात बार-बार, लगातार साबित हो चुकी है। यदि आंकड़ों पर गौर किया जाये तो, पिछले साल आयी स्टॉकहोम स्थित थिकटैंक इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (सिपरी) की वार्षिक रिपोर्ट में बताया गया है कि 2010 से 2014 के बीच विश्व भर में हथियारों के कारोबार में पिछले पांच सालों के मुकाबले करीब 16 फीसदी की बढ़ोत्तरी दर्ज हुई है।

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