By अनन्या मिश्रा | May 03, 2023
भारतीय जनता पार्टी को राष्ट्रीय पटल लाने का श्रेय जिन नेताओं को जाता है, उनमें से एक प्रमोद महाजन हैं। हालांकि असमय हुई मौत के कारण वह राष्ट्रीय राजनीति में वह कद नहीं हासिल कर पाए। जिसके वह असली हकदार थे। बता दें कि 22 अप्रैल 2006 को प्रमोद महाजन को उनके ही छोटे भाई प्रवीण महाजन ने गोली मार दी थी। जिसके बाद 13 दिनों तक अस्पताल में प्रमोद महाजन जिंदगी और मौत से संघर्ष करते रहे। जिसके बाद इलाज के दौरान 3 मई को मुंबई के हिंदुजा अस्पताल में उनकी मौत हो गई। प्रमोद महाजन की हत्या को आज कई साल बीत चुके हैं, लेकिन उनकी हत्या क्यों की गई। यह बात आज भी राज ही है।
जन्म
प्रमोद महाजन का जन्म 30 अक्टूबर 1949 को तेलंगाना में हुआ था। प्रमोद महाजन छात्र जीवन से ही संघ से जुड़ गए थे। संघ का इनके जीवन पर विशेष प्रभाव रहा। बता दें कि उन्होंने पुणे के रानाडे इंस्टीट्यूट ऑफ जर्नलिज्म से पत्रकारिता की थी। इसके बाद RSS के मराठी अखबार ‘तरुण भारत’ के उप संपादक बन गए। साल 1974 में उनको संघ प्रचारक बनाया गया और इमरजेंसी के दौरान प्रमोद महाजन ने पूर्व पीएम इंदिरा गांधी विरोध का मोर्चा संभाला।
राजनीति में प्रवेश
प्रमोद की राजनीति में सक्रियता देखते हुए उनको भारतीय जनता पार्टी में शामिल कर लिया गया। साल 1983-85 तक उन्होंने पार्टी के अखिल भारतीय पद की जिम्मेदारी संभाली। फिर साल 1986 में वह भारतीय जनता युवा मोर्चा के लगातार 3 बार अध्यक्ष बने। लालकृष्ण आडवाणी ने 1990 की शुरुआत में महाजन की काबिलियत को पहचाना। प्रमोद महाजन को केंद्र की राजनीति में लाने का श्रेय लाल कृष्ण आडवाणी को जाता है।
पहला चुनाव
साल 1996 में महाजन ने लोकसभा चुनाव जीता। जिसके बाद उनको अटल बिहारी बाजपेयी की सरकार में रक्षामंत्री बनाया गया। हालांकि यह सरकार सिर्फ 13 दिन ही टिकी थी। साल 1998 में जब एक बार फिर भाजपा सत्ता में आई तो महाजन को चुनाव में हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद उनको राज्यसभा भेजा गया, जहां वह सूचना प्रसारण मंत्री बने।
आडवाणी की रथयात्रा
बताया जाता है कि लालकृष्ण आडवाणी की रथयात्रा का आइडिया महाजन का ही था। आडवाणी की रथयात्रा और इसकी सफलता के पीछे प्रमोद महाजन ने बड़ी भूमिका निभाई थी। इसी कारण जब आडवाणी ने अरुण जेटली, गोविंदाचार्य, सुषमा स्वराज और एम वेंकैया नायडू जैसे धुरंधरों के साथ नई टीम बनाई। तो इस टीम में महाजन को भी जगह मिली। बाद में प्रमोद महाजन का पार्टी में कद इतना बड़ा हो गया था कि उनको बीजेपी का संकटमोचन कहा जाने लगा था।
बीजेपी के संकटमोचक
महाराष्ट्र में बीजेपी और शिवसेना में गठबंधन करवाने में भी महाजन की अहम भूमिका थी। कहा जाता है कि शिवसेना सुप्रीमो बाल ठाकरे भाजपा के तमाम नेताओं में सबसे अधिक भरोसा प्रमोद महाजन पर करते थे। साल 1995-96 में जब गुजरात बीजेपी के दिग्गज नेता शंकर सिंह वाघेला और मौजूदा पीएम नरेंद्र मोदी ने एक-दूसरे के खिलाफ मोर्चा खोल लिया था तो आडवाणी ने प्रमोद महाजन के कंधों पर इस विवाद को सुलझाने का जिम्मा सौंपा था। वाघेला और मोदी के बीच महाजन ने सुलह करा दी। वहीं साल 2003 में कई विधानसभाओं में पार्टी की जीत का श्रेय भी महाजन को मिला तो 2004 के लोकसभा चुनाव में हार का जिम्मा भी महाजन को ही उठाना पड़ा।
भाई ने की हत्या
मुंबई के वर्ली इलाके में प्रमोद महाजन 22 अप्रैल, 2006 को अपने आवास 'पूर्णा' में चाय पी रहे थे। सुबह करीब साढ़े सात बजे के आसपास उनके भाई प्रवीम महाजन घर के अंदर आए। जिसके बाद कुछ ही देर में दोनों भाइयों के बीच किसी बात को लेकर तकरार हो गई। 10 मिनट के अंदर प्रवीण महाजन ने 32 बोर की पिस्टल निकालकर प्रमोद महाजन पर फायरिंग कर दी। प्रमोद महाजन के सीने में 3 गोलियां लगीं। इस दौरान उनकी पत्नी अंदर थीं। जब वह गोलियों की आवाज सुनकर बाहर आईं तो देखा कि प्रमोद खून से लथपथ पड़े हैं। जिसके बाद उनको फौरन अस्पताल ले जाया गया।
मौत
प्रवीण महाजन गोलियां चलाने के बाद चुपचाप घर से बाहर निकल गए। इसके बाद उन्होंने थाने पहुंचकर अपनी पिस्टल जमा की और बताया कि उन्होंने अपने भाई की हत्या कर दी है। जिसके बाद पुलिस ने उनको गिरफ्तार कर लिया। वहीं 13 दिनों के बाद 3 मई 2006 को प्रमोद महाजन की मौत हो गई। बता दें कि साल 2007 में मुंबई सत्र न्यायालय ने प्रवीण महाजन को इस हत्या का दोषी मानते हुए उन्हें आजीवन उम्रकैद की सजा सुनाई।