बच्चों में बढ़ रहा प्री-डायबिटीज का खतरा; जानें एक्सपर्ट से कारण और बचाव के उपाय

By दिव्यांशी भदौरिया | Nov 25, 2025

डायबिटीज लाइफस्टाइल से जुडी एक गंभीर बीमारी है। मधुमेह की बीमारी व्यस्कों में आसानी से देखने को मिलती है। हालांकि, अब बच्चों में इस बीमारी के लक्षण देखने को मिल रहे हैं। यदि बच्चों का पहले से डायबिटीज चेकअप कराएं, तो उन्हें इस समस्या से बचाया जा सकता है। हेल्थ एक्सपर्ट के अनुसार, डायबिटीज के पहले की कंडीशन को प्री-डायबिटीज कहा जाता है। इस परिस्थिति में ब्लड शुगर सामान्य से थोड़ा ज्यादा होता है, लेकिन यह डायबिटीज जितना नहीं होता।आइए आपको बताते हैं बच्चों में प्री-डायबिटीज बढ़ने के कारण और इसे कैसे मैनेज करने के तरीके बताएंगे।


बच्चों में प्री-डायबिटीज होने के कारण


NIH में छापी एक रिपोर्ट के मुताबिक, बच्चों में प्री-डायबिटीज 4 से 23 फीसदी तक बढ़ रही है, जो चिंताजनक है। इस बारे में लोगों में जागरुकता बढ़ाने की काफी जरुरी है, क्योंकि आजकल बच्चों में डायबिटीज के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। आइए जानते हैं कि क्यों बच्चों में इसके मामले बढ़ रहे हैं।


सही खान-पान न होना


आजकल के बच्चे जंक फूड का सेवन अत्यधिक करते हैं। बर्गर, फ्रेंच फ्राइज, चॉकलेट, पैक्ड जूस, सॉफ्ट ड्रिंक्स और शुगर वाले स्नैक्स रोजमर्रा की आदत बन गए हैं। इनमें कैलोरी बहुत होती है और न्यूट्रिशन नाममात्र ही होता है। इस कारण से शरीर इंसुलिन को सही तरह इस्तेमाल नहीं कर पाता है और प्री-डायबिटीज का खतरा बढ़ जाता है।


फिजिकल एक्टिविटी न होना


बच्चे सिर्फ मोबाइल गेम, टीवी और टैबलेट में ही बिजी रहते हैं। स्कूल भी कई बार ऑनलाइन क्लास लेते है। इस वजह से बच्चों की फिजिकल एक्टिविटी कम हो गई है। शरीर कम चलेगा, तो कैलोरी भी कम बर्न होती है। जिस वजह से वजन बढ़ता है और इंसुलिन रेजिस्टेंस बढ़ने लगता है, जो प्री-डायबिटीज को बढ़ा सकता है।


बचपन का मोटापा


जंक फूड का अधिक सेवन और शारीरिक गतिविधियों की कमी पेट के आसपास चर्बी जमा होने का प्रमुख कारण बनते हैं। यह बढ़ा हुआ फैट इंसुलिन के कार्य को प्रभावित करता है, जिसके चलते बचपन में ही मोटापा बढ़ने लगता है और प्री-डायबिटीज का खतरा भी बढ़ जाता है। यदि समय रहते उपचार न किया जाए, तो यही स्थिति आगे चलकर टाइप-2 डायबिटीज का मुख्य कारण बन सकती है।


फैमिली हेस्ट्री


यदि आपकी फैमिली में पैरेंट्स या फिर दादा-दादी या नाना-नानी किसी को भी डायबिटीज की समस्या होती है, तो बच्चे में डायबिटीज का रिस्क भी बढ़ जाता है। यह सिर्फ एर जेनेटिक फैक्टर है , जिसको बदला नहीं जाता है। 


हार्मोनल बदलाव


यह स्थिति तब होती है जब लड़कियों में कम उम्र में ही पीरियड्स शुरू हो जाते हैं और हार्मोनल परिवर्तन जल्दी आने लगते हैं। इसे ‘अर्ली प्यूबर्टी’ कहा जाता है। ऐसे में बच्चों की ग्रोथ अचानक तेज हो सकती है, जिससे इंसुलिन रेजिस्टेंस बढ़ने का खतरा रहता है। इसलिए जिन लड़कियों में जल्दी पीरियड्स शुरू हों या लड़कों में समय से पहले प्यूबर्टी आए, उन पर विशेष ध्यान देना आवश्यक होता है।


नींद पूरी न होना


आजकल के बच्चे पढ़ाई, मोबाइल पर गेम खेलने या फिर सोशल मीडिया के चलते रात में सोते नहीं है। जिससे इनकी नींद पर असर पड़ता है। इससे बॉडी में स्ट्रेस हार्मोन बढ़ जाते हैं, जो स्ट्रेस बढ़ाते है। इससे ब्लड शुगर बढ़ने का रिस्क बढ़ जाता है।


बच्चों में प्री-डायबिटीज कैसे मैनेज करें?


- सॉफ्ट ड्रिंक, पेक्ड जूस और शुगर वाली चीजों को कम से कम खाने दें।


- बच्चों को फल, सब्जियां, दलिया, मिलेट्स, रागी, ओट्स डाइट में शामिल करें।


- बच्चे वॉक, दौड़ने और उनके फेवरेट गेम खेलने को प्रोत्साहित करें। यदि बच्चे का डांस में मन है, तो करने दें। ऐसा करने से बच्चे का शरीर एक्टिव रहेगा।


- मोटे बच्चों  में केवल 5-7% वजन कम होने से ही ब्लड शुगर में बड़ा सुधार आ सकता है। बच्चों के वजन को कंट्रोल में रखें।


- यदि डायबिटीज की फैमिली हिस्ट्री है, तो फास्टिंग ब्लड शुगर, HbA1c और लिपिड प्रोफाइल जरीर कराएं।


- रात को बच्चों को सोने से पहले मोबाइल या टीवी बिल्कुल न देखने दें।

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