भाजपा की मुश्किल बढ़ी, लद्दाख में UT पाने का आंदोलन जोर पकड़ने लगा

By सुरेश डुग्गर | Dec 01, 2018

लद्दाख को यूनियन टेरीटरी यानी केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा देने की मांग को लेकर आंदोलन ने फिर तेजी पकड़ ली है। केंद्र में भाजपा सरकार के गठन के साथ ही आंदोलन इसलिए थम गया था क्योंकि भाजपा ने यूटी देने का वादा किया था। लेकिन अब जबकि भाजपा द्वारा अपना वादा पूरा नहीं किया गया है, लद्दाख की जनता फिर से सड़कों पर उतर आई है। लद्दाख बुद्धिस्ट एसोसिएशन ने बुधवार को राज्यपाल सत्यपाल मलिक से भेंट कर लद्दाख को यूनियन टेरीटरी यानी केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा देने की मांग भी उठाई थी। लद्दाख बुद्धिस्ट एसोसिएशन के प्रतिनिधमंडल में प्रधान सीवांग थिनलैस और उप प्रधान पीटी कुजांग शामिल थे।

 

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प्रतिनिधमंडल ने राजभवन में हुई बैठक में राज्यपाल को ज्ञापन सौंपा और लोगों की मुश्किलों के बारे में विस्तार से जानकारी दी। उठाए गए मुद्दों में लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाना, भोटी भाषा को संविधान की आठवीं सूची में शामिल करना मुख्य था। इनके साथ पुलिस रेंज, विवि स्थापित करने सहित लद्दाख के लोगों के व्यापारिक हितों के लिए नीति बनाने की मांग भी की। लद्दाख के लोगों ने यूटी अर्थात् केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा पाने की खातिर बिगुल बजा दिया है। उन्होंने 28 सालों के बाद एक बार फिर आंदोलन का आगाज किया है। यही कारण था कि आने वाले दिनों में वे अपने आंदोलन को और तेज करने की चेतावनी दे रहे थे। लद्दाखी बीते दो दशकों से केंद्र शासित राज्य का दर्जा दिए जाने की मांग कर रहे हैं, लेकिन कश्मीर केंद्रित नीतियों के चलते उनकी यह मांग पूरी नहीं हो रही है। हमारा यह आंदोलन केंद्र शासित राज्य का दर्जा मिलने तक जारी रहेगा।

 

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28 सालों के उपरांत पुनः इस बर्फीले रेगिस्तान में असंतोष भड़कने लगा है। असंतोष किस सीमा को पार कर चुका है, इसी से स्पष्ट है कि लद्दाखी नेता हथियार उठाने की धमकी दे रहे हैं। हालांकि असंतोष को भड़काने तथा राख के ढेर में दबी चिंगारी को हवा देने का कार्य नेशनल कांफ्रेंस सरकार की स्वायत्तता रपट ने किया था जिसके विरोधी सिर्फ लद्दाख में ही नहीं बल्कि जम्मू संभाग में भी हैं और इसमें तेलांगना का गठन भी उनमें हिम्मत फूंक चुका है।

 

वर्ष 1989 में एलबीए ने लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा दिए जाने की मांग को लेकर करीब साढ़े 3 माह तक हिंसक आंदोलन किया था। अंत में 6 सालों की प्रतीक्षा के उपरांत लेह की जनता को आंशिक खुशी उस समय मिली जब लेह स्वायत्त पहाड़ी परिषद के गठन की घोषणा की गई थी। लेकिन 29 अक्तूबर 1989 को केंद्र सरकार ने लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाए जाने की जो घोषणा की थी वह लागू न होने से लद्दाख की जनता खिन्न थी। हालांकि उसने अगस्त 1995 में मिलने वाले स्वायत्त पहाड़ी परिषद के दर्जे को स्वीकार तो कर लिया परंतु उसने आज भी केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा पाने की मांग को कभी त्यागा नहीं।

 

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राज्य की तत्कालीन नेकां सरकार की 1953 से पूर्व की स्थिति की बहाली की मांग ने इस बर्फीले रेगिस्तान में पुनः जख्मों को हरा कर दिया था इसके प्रति कोई दो राय नहीं है। हालांकि मुफ्ती सरकार ने स्वायत्त परिषद के अधिकारों में वृद्धि कर असंतोष को ठंडा करने का प्रयास किया था लेकिन वे कामयाब नहीं हो पाए थे। नतीजतन लद्दाख की जनता फिर से आंदोलन की राह पर चल निकली है। जो यह कहने लगी है कि उनके साथ किए गए वायदों को पूरा किया जाए और लद्दाख को उसका हक, केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा, तत्काल दिया जाए।

 

स्थिति यह है कि लद्दाख बौद्ध संघ के नेता उस चिंगारी को पुनः हवा दे रहे हैं जो पिछले 28 सालों से राख के ढेर में छुपी हुई थी। इस चिंगारी को हवा देकर लावे के भयंकर रूप में फूटने की चेतावनी देने वाले नेता प्रत्यक्ष रूप से भी यह मानने को तैयार नहीं हैं कि आंदोलन शांतिपूर्ण होगा। उनके शब्दों में: ‘शांतिपूर्ण रास्ते पर चल कर कोई कुछ नहीं पा सकता है। हम केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा चाह रहे हैं जिसके साफ मायने हैं कि हमें कश्मीर के उपनिवेशवाद से मुक्ति चाहिए।’

 

- सुरेश डुग्गर

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