कांग्रेस के सियासी फलक पर उतरीं प्रियंका गांधी वाड्रा

By प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क | Jan 23, 2019

नयी दिल्ली। करीब 28 साल पहले पिता राजीव गांधी की अंतिम यात्रा में आम लोगों के साथ चलकर देश की जनचेतना में पहली बार दस्तक देने वाली प्रियंका गांधी वाड्रा ने बुधवार को उस वक्त अपनी सक्रिय सियासी पारी का आगाज कर दिया जब उन्हें कांग्रेस का महासचिव नियुक्त किया गया। गांधी-नेहरू परिवार की समृद्ध राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाते हुए प्रियंका सक्रिय राजनीति में कदम रखने से पहले करीब दो दशक तक राजनीतिक बारीकियों से रूबरू हुईं। लंबे समय तक सियासी गलियारों में इस पर चर्चा होती रही कि आखिर प्रियंका सक्रिय राजनीति में कब कदम रखेंगी और पार्टी में बड़ी भूमिका निभाएंगी। उनके भाई और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने बुधवार को बड़ा सियासी दांव खेलते हुए लोकसभा चुनाव से महज कुछ महीने पहले प्रियंका को कांग्रेस महासचिव और प्रभारी (उत्तर प्रदेश-पूर्व) नियुक्त किया और इसी के साथ सक्रिय राजनीति में प्रियंका के सफर का आगाज हो गया।

 

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अभी तक 47 साल की प्रियंका खुद को कांग्रेस की गतिविधियों से अलग रखते हुए अपने परिवार के लिए काम करती रही हैं। उनका दायरा अब तक विशेष तौर पर मां सोनिया गांधी और भाई राहुल गांधी के संसदीय क्षेत्रों रायबरेली एवं अमेठी तक सीमित रहा है। प्रियंका का जन्म 12 जनवरी, 1972 को हुआ था। दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री हासिल करने वाली प्रियंका की राजनीतिक गतिविधि की शुरूआत 1998 में मां सोनिया गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद हुई। 1999 के आम चुनाव में सोनिया गांधी उत्तर प्रदेश के अमेठी और कर्नाटक के बेल्लारी सीट से एक साथ लोकसभा चुनाव लड़ीं। इस दौरान प्रियंका ने अमेठी के प्रचार की कमान संभाली। सोनिया ने 2004 में अमेठी की सीट पुत्र राहुल गांधी के लिए छोड़ी और खुद रायबरेली चली गईं। इसके बाद प्रियंका ने रायबरेली और अमेठी दोनों क्षेत्रों में प्रचार की जिम्मेदारी संभाली।

 

भाजपा ने जब राजीव गांधी के करीबी रहे अरुण नेहरू को रायबरेली से उम्मीदवार बनाया तो प्रियंका ने वहां की जनता के समक्ष जो वो कहा वो बड़ी सुर्खिंयां बना। उस वक्त प्रियंका ने कहा, ‘‘मुझे आपसे से शिकायत है...एक व्यक्ति जिसने गद्दारी की और जिसने अपने भाई की पीठ में छुरा घोंपा, आप ऐसे व्यक्ति को यहां कैसे रहने दे सकते हैं? उसकी यहां आने की हिम्मत कैसे हुई?’’ वह अक्सर रायबरेली का दौरा करती रहती हैं और चुनाव के समय वह कई दिनों तक प्रचार करती रही हैं। कई मौकों पर अपने भाई राहुल गांधी का खुलकर बचाव करती आई हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव में इसका उदाहरण भी देखने को मिला जब मोदी लहर के बीच भाजपा ने स्मृति ईरानी को अमेठी से राहुल गांधी के खिलाफ चुनाव में उतारा तो प्रियंका ने अपने भाई के पक्ष में चुनाव प्रचार का मोर्चा संभाल लिया और जीत सुनिश्चित की। उन्होंने 2014 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी पर हमला करते हुए गुजरात मॉडल पर तंज किया था।

 

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प्रियंका को करीब से जानने वालों का कहना है कि वह मृदुभाषी होने के साथ कार्यकर्ताओं को पूरा सम्मान देती हैं तथा सबकी बात सुनने में विश्वास रखती हैं। रायबरेली में कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, ‘‘हम प्रियंका जी को वर्षों से देख रहे हैं। उनका कार्यकर्ताओं और आम लोगों से खासा जुड़ाव है। वह सबके साथ संवाद करती हैं और वह कार्यकर्ताओं के साथ निरंतर संपर्क में रहती हैं।’’ उन्हें जिस उत्तर प्रदेश के जिस क्षेत्र की जिम्मेदारी दी गई है उसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का क्षेत्र वाराणसी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का गढ़ कहे जाने वाला गोरखपुर भी आता है। कहा जाता है कि प्रियंका बौद्ध दर्शन का अनुसरण करती हैं और विपश्यना भी करती हैं। मॉडर्न स्कूल और ‘कानवेंट ऑफ जीसस एंड मैरी’ से स्कूली पढ़ाई करने वाली प्रियंका ने दिल्ली विश्वविद्यालय के जीसस एंड मैरी कॉलेज से मनोविज्ञान में स्नातक किया। प्रियंका ने बौद्ध अध्ययन में स्नातकोत्तर किया। पार्टी नेताओं को लगता है कि प्रियंका के सक्रिय राजनीति में उतरने से कांग्रेस को पूरे देश और खासकर उत्तर प्रदेश में फायदा होगा।

 

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