By अनन्या मिश्रा | Aug 07, 2025
भारत और बंगाल के बहुमखी प्रतिभा संपन्न विद्वान गुरुदेव रबींद्रनाथ टैगोर का 07 अगस्त को निधन हो गया था। रबींद्रनाथ टैगोर एक लेखक, कवि, नाटककार, संगीतकार, चित्रकार, दार्शनिक और समाज सुधारक थे। उन्होंने बंगाल के अलावा भारतीय संस्कृति, संगीत और कला को नए आयाम देने का काम किया था। उनकी रचनाएं न सिर्फ देश बल्कि यूरोप में भी पसंद की जाती थीं। वह साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार पाने वाले पहले गैर यूरोपीय बने थे। तो आइए जानते हैं उनकी डेथ एनिवर्सरी के मौके पर रबींद्रनाथ टैगोर के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...
कोलकाता के जोड़ासाको ठाकुरबाड़ी में 07 मई 1861 को रबींद्रनाथ टैगोर का जन्म हुआ था। इनके पिता देवेंद्रनाथ अक्सर यात्राओं पर रहते थे। ऐसे में इनका पालन-पोषण नौकरों ने किया था। इन्होंने सेंट जेवियर में शिक्षा हासिल की और बैरिस्टर की पढ़ाई के लिए इंग्लैंड चले गए। जहां पर उन्होंने ब्रिजस्टोन पब्लिक स्कूल के बाद लंदन यूनिवर्सिटी में कानून की पढ़ाई की। लेकिन रबींद्रनाथ टैगोर बिना डिग्री लिए वापस भारत आ गए।
बता दें कि महज 8 साल की उम्र में रबींद्रनाथ ने पहली कविता लिखी थी। वहीं 16 साल की उम्र में उनकी कविता का संकलन छपा था। फिर उन्होंने छोटी कहानियों और नाटकों का संकलन अपने नाम से छपवाया। रबींद्रनाथ टैगोर की रचनाओं ने बांग्ला साहित्य को नई ऊंचाइयां दीं, जिसमें गोरा, गीतांजली और घरे बाइरे काफी फेमस रहीं।
रबींद्रनाथ टैगोर ने भारत और बांग्लादेश का राष्ट्रगान लिखा और उसको संगीतबद्ध किया है। इसके अलावा श्रीलंका का राष्ट्रगान भी टैगोर की रचना से प्रेरित है। लेखन के अलावा रबींद्रनाथ ने अपने लिखे करीब 2230 गीतों को संगीतबद्ध किया है। जिसको रबींद्र संगीत के नाम से भी जाना जाता है।
स्वामी विवेकानंद के बाद रबींद्रनाथ टैगोर दूसरे ऐसे व्यक्ति हैं, जिन्होंने विश्व धर्म संसद को संबोधित किया। उन्होंने ऐसा दो बार किया था। रबींद्रनाथ टैगोर को महात्मा गांधी ने गुरुदेव की उपाधि दी थी। गांधी से वैचारिक मतभेदों पर रबींद्रनाथ टैगोर काफी मुखर थे, वहीं महात्मा गांधी भी उनका काफी सम्मान करते थे।
अपने जीवन से अंतिम दिनों में रबींद्रनाथ टैगोर प्रोस्टेट कैंसर से पीड़ित थे। वहीं 07 अगस्त 1941 में रबींद्रनाथ टैगोर का निधन हो गया था।