राहुल गांधी कहीं प्रियंका से कुछ ज्यादा ही उम्मीद तो नहीं लगा रहे ?

By अजय कुमार | Jan 28, 2019

उत्तर प्रदेश की सियासत में कांग्रेस ने प्रियंका वाड्रा को उतारकर भाजपा और सपा−बसपा गठबंधन के सामने 'बड़ी लाइन' खींच दी है। प्रियंका के मैदान में आने के बाद कांग्रेस को फायदा मिलना तय है, लेकिन नुकसान किसका होगा यह बात अभी किसी चुनावी पंडित के समझ में नहीं आ रही है। इसको लेकर मिलीजुली प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं। कुछ को लगता है कि अगर मुस्लिम वोट बंटे तो सपा−बसपा गठबंधन को और सवर्ण वोट में कांग्रेस ने सेंधमारी की तो भाजपा को इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। इसके अलावा सवाल यह भी है कि कांग्रेस चुनाव लड़ेगी कैसे ? कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी जिस तरह से सपा−बसपा गठबंधन को लेकर लचर रवैया अपनाएं हुए हैं उससे उनके कार्यकर्ताओं में असमंजस बना हुआ है, जबकि राहुल के रूख से अलग उत्तर प्रदेश कांग्रेस के तमाम नेता और कार्यकर्ता यही चाहते हैं कि भाजपा की तरह ही सपा−बसपा गठबंधन और उसके नेताओं को भी पूरी तरह से जनता के सामने बेनकाब किया जाए। अगर ऐसा नहीं हुआ तो कांग्रेस के लिये जीत का रास्ता आगे चलकर संकरा हो सकता है।

 

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प्रियंका गांधी को पूर्वी उत्तर प्रदेश का प्रभारी और महासचिव बनाए जाने के बाद राहुल गांधी का अमेठी में पत्रकारों से बातचीत में यह कहना तो समझ में आता है कि वह उत्तर प्रदेश की राजनीति को बदलना चाहते हैं, लेकिन वह यह कहें कि मैं मायावती जी और अखिलेश जी का आदर करता हूं। हम तीनों का लक्ष्य बीजेपी को हराने का है हमारी इन दोनों (सपा−बसपा) से दुश्मनी नहीं है, यह थोड़ा हास्यास्पद लगता है। अगर राहुल का लक्ष्य सत्ता हासिल करने की बजाए सिर्फ मोदी को हराना भर ही था तो वह सपा−बसपा की इच्छा का सम्मान करते हुए रायबरेली और अमेठी के अलावा पूरा खुला मैदान छोड़ देते, लेकिन जब कांग्रेस सभी 80 सीटों पर चुनाव लड़ने की बात करती है तो उसे जीत के लिए रणनीति भी बनाना होगी। जीत की रणनीति बनाते समय कांग्रेस आलाकमान को सपा−बसपा से ध्यान हटाना ही पड़ेगा।


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यह बात समझ से परे है कि कांग्रेस चुनाव से पूर्व चुनाव के बाद की स्थितियों पर ज्यादा गंभीरता दिखाए। अगर कांग्रेस को लग रहा है कि चुनाव बाद उन्हें सपा−बसपा की जरूरत पड़ सकती है और इसीलिये वह  गठबंधन के खिलाफ नरम रवैया अपना रहे हैं तो यह समझ लेना चाहिए कि समय−समय पर ऐसे कई मौके सामने आए हैं जब चुनावी जंग में एक−दूसरे के कट्टर दुश्मन नजर आने वाले दलों ने नतीजे आने के बाद पलटी मारने में देरी नहीं की थी। यह कारनामा सपा और बसपा नेता भी कई बार दोहरा चुके हैं। कांग्रेस जिस तरह से सपा−बसपा के साथ दोस्ताना लड़ाई लड़ती दिख रही है, उससे कांग्रेस के कार्यकर्ता ही नहीं मतदाता भी भ्रमित हैं। उधर, सपा−बसपा गठबंधन कांग्रेस को लेकर ज्यादा लचर रवैया नहीं अपना रहा है। सपा नेता जरूर कांग्रेस के प्रति नरम रूख अपनाए हुए हैं, लेकिन बसपा सुप्रीमो मायावती लगातार कांग्रेस और भाजपा को एक ही तराजू में तौल रही हैं।

 

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बात लोकसभा चुनाव और केन्द्र की सत्ता की ही नहीं है। राहुल गांधी 2022 में उत्तर प्रदेश में भी कांग्रेस का मुख्यमंत्री बनने की बात कर रहे हैं। प्रियंका गांधी को पूर्वी उत्तर प्रदेश का महासचिव बनाए जाने के बाद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा कि उत्तर प्रदेश का शासन अब कांग्रेस के मुख्यमंत्री के पास होगा। अगले विधानसभा चुनाव में यूपी में कांग्रेस पार्टी अपना मुख्यमंत्री बनाएगी। दो दिनी दौरे पर अमेठी आए राहुल गांधी ने कार्यकर्ताओं में जोश भरते हुए कहा, 'मैंने प्रियंका को उत्तर प्रदेश का महासचिव बना दिया है। अब वह यहां पर कांग्रेस का सीएम बनवाने का काम करेंगी।' 

 

 

गौरतलब हो कि उत्तर प्रदेश में 05 दिसंबर 1989 को नारायण दत्त तिवारी के मुख्यमंत्री की कुर्सी से पदमुक्त होने के बाद से अभी तक राज्य में कांग्रेस के लिए सीएम की कुर्सी सपना ही बनी हुई है। कांग्रेस का जनाधार लगातार खिसकता जा रहा है। यह स्थिति तब है जबकि उत्तर प्रदेश से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को कई दिग्गज और शीर्ष नेता प्रदान करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। पंडित मदन मोहन मालवीय, पंडित मोतीलाल नेहरू, पंडित जवाहर लाल नेहरू, पंडित गोविंद बल्लभ पंत, सम्पूर्णा नंद, सुचेता कृपलानी, कमलापति त्रिपाठी, रफी अहमद किदवई, लाल बहादुर शास्त्री और श्रीमती इंदिरा गांधी, हेमवती नंदन बहुगुणा, वीपी सिंह, राजीव गांधी से लेकर सोनिया गांधी, राहुल गांधी और अब प्रियंका गांधी का नाम इस लिस्ट में जुड़ गया है। फिर भी यूपी में कांग्रेस के हाथ खाली हैं।

   

-अजय कुमार

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