नयी दिल्ली। 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के खिलाफ विपक्ष का महागठबंधन बनाने के कांग्रेस के प्रयासों को पार्टी के भीतर से ही चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। इस सप्ताह पार्टी को अपनी पश्चिम बंगाल इकाई से ही काफी असंतोष का सामना करना पड़ा। वहां राज्य नेतृत्व गठबंधन के विकल्पों को लेकर काफी बंटा हुआ है। जहां पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी के नेतृत्व में पश्चिम बंगाल कांग्रेस का एक हिस्सा विपक्षी वाम मोर्चा के साथ गठबंधन की वकालत कर रहा है , वहीं कांग्रेस सचिव और स्थानीय विधायक मैनुल हक के नेतृत्व वाला एक अन्य खेमा सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस के साथ गठबंधन का समर्थन कर रहा है।
हक और उनके कुछ समर्थकों के पाला बदलकर तृणमूल के साथ जाने की अटकलों के बीच संकट को थामने के लिये कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को इस सप्ताह पार्टी के राज्य के सभी नेताओं से व्यक्तिगत रूप से मुलाकात करनी पड़ी थी। हक ने कहा, ‘‘हम कांग्रेस नहीं छोड़ेंगे और कोई भी फैसला करने से पहले कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के निर्णय का इंतजार करेंगे। ’’
उन्होंने महसूस किया कि पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान माकपा के साथ तालमेल करने के बाद कांग्रेस के पक्ष में मतों का स्थानांतरण नहीं हुआ। उन्होंने कहा , ‘‘ माकपा के साथ एकबार फिर जाना आत्मघाती होगा क्योंकि उसका राज्य में अब कोई वजूद नहीं है।’’
चौधरी ने हालांकि कहा कि उनका लक्ष्य पार्टी को मजबूत बनाना है और सभी को उस दिशा में काम करना चाहिये। उन्होंने कहा, ‘‘कुछ विधायक पार्टी छोड़ चुके हैं और अगर कुछ और छोड़ना चाहते हैं तो उन्हें कौन रोक सकता है।’’ कांग्रेस की दिल्ली इकाई में भी पार्टी के प्रदेश नेतृत्व ने अरविंद केजरीवाल नीत आम आदमी पार्टी (आप) के साथ गठबंधन से साफ तौर पर मना कर दिया है, लेकिन गांधी ने अब तक इस बारे में अपना रुख सार्वजनिक नहीं किया है।
इसी तरह की हालत पार्टी शासित पंजाब में भी है। वहां राज्य नेतृत्व आप के साथ किसी भी गठबंधन के सख्त खिलाफ है। राजस्थान और मध्य प्रदेश में हालांकि कांग्रेस बसपा के साथ गठबंधन करने का प्रयास कर रही है ताकि भाजपा विरोधी मतों के बिखराव को रोका जा सके , लेकिन शुरूआती रिपोर्ट बहुत अधिक सफलता का संकेत नहीं देती है। मध्य प्रदेश में भी कांग्रेस के सभी नेता बसपा के साथ गठबंधन का समर्थन नहीं कर रहे हैं।
सीडब्ल्यूसी के पूर्व सदस्य अनिल शास्त्री ने कहा है कि बसपा के साथ कोई भी गठबंधन मध्य प्रदेश में पार्टी के लिये आत्मघाती होगा। शास्त्री ने राज्य विधानसभा में बसपा की मामूली उपस्थिति का हवाला देते हुए गठबंधन के पीछे के तर्क पर सवाल उठाया। मध्य प्रदेश में बसपा के साथ गठबंधन की वकालत कर रहे धड़े का कहना है कि मायावती नीत पार्टी के पास पर्याप्त मत हैं जो चुनाव का रुख तय कर सकते हैं। राजस्थान कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट भी प्रदेश में बसपा के साथ गठबंधन के पक्ष में नहीं हैं और चाहते हैं कि कांग्रेस अकेले चुनाव लड़े।
कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा है कि पार्टी राज्य में अपने नेताओं की कीमत पर कोई गठबंधन नहीं करेगी। बसपा ने हालांकि 2019 के चुनाव में हरियाणा में इनेलो के साथ मिलकर चुनाव लड़ने की अपनी योजना की पहले ही घोषणा कर दी है। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस महागठबंधन का हिस्सा बनने को तैयार है। हालांकि , पार्टी सपा और बसपा की मंशा से घबरायी हुई है। वे 2019 के चुनाव में सीटों की साझीदारी में कांग्रेस को बड़ा हिस्सा नहीं देना चाहते हैं। कर्नाटक में कांग्रेस का जद (एस) के साथ कमोबेश तालमेल है। बिहार में भी जद (यू) को महागठबंधन में फिर से शामिल करने को लेकर उसकी पुरानी सहयोगी राजद से अलग राय है।