राजस्थान के राज्यपाल ने विश्वविद्यालयों की गरिमा बहाल करने को उठाया कदम

By डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा | Jul 09, 2018

राजनीति के अखाड़े बने देश के विश्वविद्यालयों की दशा और दिशा के संदर्भ में राजस्थान के राज्यपाल कल्याण सिंह की पहल निश्चित रूप से ताजी हवा का झोंका है। देश की उच्च शिक्षा और खासतौर से विश्वविद्यालयों के हालातों को देखते हुए राजस्थान के राजभवन से प्रदेश के विश्वविद्यालयों के कुलपतियों को जिस तरह का संदेश दिया गया है वह निश्चित रूप से आज की आलोचना−प्रत्यालोचना और राजभवन को सियासी नजरिए से देखते हुए चहुं ओर कमियां ढूंढ़ते बुद्धिजीवियों के लिए भी किसी तमाचे से कम नहीं माना जा सकता। दरअसल देश के विश्वविद्यालयों की अध्ययन−अध्यापन और शोध संदर्भ की स्थिति से कोई अनभिज्ञ नहीं है। विश्वविद्यालयों की प्रतिष्ठा में कमोबेश सभी जगह गिरावट देखी जाने लगी है। शोध और अध्ययन कहीं पीछे छूट गया है। दुनिया के शैक्षणिक संस्थानों की सूची में ढूंढ़ने पर भी हमारे विश्वविद्यालयों का नाम दूर तक दिखाई नहीं देता है। कभी दुनिया के 100 श्रेष्ठ विश्वविद्यालयों में नाम ढूंढते रह जाते हैं तो कहीं दो सौ की सूची में भी तलाश बनी रहती है। यह सब तो तब है जब विश्वविद्यालय एक तरह से स्वतंत्र हैं। हालांकि स्वतंत्रता या यों कहें कि स्वायत्तता का दुरुपयोग भी आम होता जा रहा है। अभी पिछले दो तीन सालों में जिस तरह से देश के नामचीन विश्वविद्यालय जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय में राष्ट्र विरोधी जुमलों और नारों और इनके समर्थन में सियासी नौटंकी हुई, उससे सारा देश वाकिफ है। आखिर शिक्षण संस्थान अपनी गरिमा बनाए रखने में भी सफल नहीं हो पाते हैं या यों कहें कि स्वायत्तता के नाम पर देश विरोधी गतिविधियां खुलेआम की जाती हों तो इससे अधिक दुर्भाग्यजनक क्या होगा। वास्तव में यह स्थितियां चिंतनीय और समूचे देश को चेताने वाली हैं।

 

यदि स्वतंत्रता के नाम पर देश विरोधी गतिविधियां की जाती हैं तो उसे किसी भी बुद्धिजीवी या राजनीतिक दलों द्वारा राजनीतिक रोटियां सेंकने के प्रयास किए जाते हैं तो इसे किसी भी दृष्टि से उचित नहीं कहा जा सकता। विश्वविद्यालयों के माहौल की तो यह स्थितियां हो गईं कि पहले कुलपति बनने या प्रशासनिक पद पाने के लिए जोड़ तोड़ में लगे रहना और इस सबसे परे नए कुलपति से गोटियां नहीं बैठती हैं या हित नहीं सधते हैं तो दूसरे दिन से ही शिकायतों व विरोध की राह पकड़ लेना आम होता जा रहा है। इन सबसे विश्वविद्यालयों का शैक्षणिक माहौल कहीं खो जाता है। यह सभी विश्वविद्यालयों के लिए लागू नहीं होता पर कमोबेश इस तरह की स्थिति देश के अधिकांश स्थानों पर आम होती जा रही है।

 

राजस्थान के राज्यपाल कल्याण सिंह ने राजस्थान के विश्वविद्यालयों के कुलपतियों को विश्वविद्यालयों के स्तर को सुधारने के लिए 12 सूत्र दिए हैं। इन 12 सूत्रों में खास बात यह है कि राज्यपाल कल्याण सिंह ने विश्वविद्यालयों में अध्ययन−अध्यापन, गुणवत्तापूर्ण शोध पर जोर दिया है वहीं पर्यावरण, सामाजिक संवेदनशीलता, छात्रों की व्यवस्थित जीवन शैली साथ ही सामाजिक सरोकारों से जोड़ने की दिशा में भी कार्य योजना बनाकर आगे आने को कहा है। आखिर देश का भविष्य भावी पीढ़ी यानी की युवाओं के हाथों में ही है और उनको अच्छा शैक्षणिक माहौल, उच्च संवेदनशीलता, पर्यावरण की समझ और क्रियान्वयन, सामाजिक सरोकार के तहत स्मार्ट विलेज जैसी गतिविधियों से जुड़कर सहभागी बनने जैसे 12 सूत्रों में उन सभी बिन्दुओं का समावेश किया गया है जो बदलते सामाजिक ताने बाने में आज की आवश्यकता बनता जा रहा है।

 

राज्यपाल की यह पहल इस मायने में भी महत्वपूर्ण हो जाती है कि राजभवनों पर आए दिन केवल और केवल केन्द्र के इशारों पर राजनीतिक निर्णय करने के आरोप लगाए जाते रहते हैं। 12 सूत्रों में खास बात यह है कि सभी पहलुओं को नजदीक से समझा गया है और उसी के आधार पर यह कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी कि समग्र रूप से हालातों को सुधारने का संदेश है। छात्रों पर कक्षाएं गोल करने के आरोप लगते रहते हैं पर शिक्षकों के भी कक्षाएं गोल करना किसी से छुपा नहीं होने के कारण ही बायोमीट्रिक उपस्थिति की बात की गई है। शोध कार्यों की गुणवत्ता पर जोर दिया जाना तो खैर पहली शर्त और आवश्यकता है। खास बात यह है कि राजस्थान के राज्यपाल ने 12 सूत्र भेजकर औपचारिकता पूरी नहीं की है अपितु इसके प्रति गंभीरता को इसी से समझा जा सकता है कि कुलपतियों की समन्वय समिति की बैठक का इन 12 सूत्रों पर रिव्यू किया जाना स्थाई एजेंडा का हिस्सा बनाया गया है।

 

राजस्थान के राज्यपाल कल्याण सिंह की यह पहल निश्चित रूप से सराहनीय है। अन्य राज्यों के महामहिमों द्वारा भी इस तरह के नवाचार निश्चित रूप से किए जाते होंगे। सियासी चालों, राजभवनों पर आरोपों−प्रत्यारोपों से परे इस तरह के नवाचारों की सराहना की जानी चाहिए ताकि सियासी राजनीति से परे होने वाले इस तरह के कार्य जगजाहिर हों, इनका प्रभाव सामने आ सके। महामहिमों, शैक्षणिक, सांस्कृतिक, सामाजिक−आर्थिक सरोकारों से जुड़े इस तरह के कार्यों की पहल करनी चाहिए क्योंकि महामहिमों का दीर्घ और प्रेक्टिकल अनुभव समाज के उन्नयन में काम आ सके। राजभवन की चारदिवारी से बाहर की इस तरह की गतिविधियां निश्चित रूप से सराहनीय व समाज के लिए दीर्घावधि के लिए लाभदायी होगी।

 

-डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा

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