By अनन्या मिश्रा | Sep 23, 2025
आज ही के दिन यानी की 23 सितंबर को रामधारी सिंह दिनकर का जन्म हुआ था। उन्होंने हिंदी को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई थी। रामधारी सिंह दिनकर एक ऐसे लेखक थे, जिनमें सामाजिक चेतना, राष्ट्रीय चेतना के साथ सांस्कृतिक चेतना भी गहरे रूप में मौजूद थी। वह उद्घोष और उद्धोधन के कवि थे। एक ओजस्वी राष्ट्रभक्ति से ओतप्रोत कवि के रूप में जाने जाते थे। तो आइए जानते हैं उनकी बर्थ एनिवर्सरी के मौके पर कवि रामधारी सिंह दिनकर के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...
बिहार के बेगूसराय जिले के सिमरिया गांव में 23 सितंबर 1908 को रामधारी सिंह दिनकर का जन्म हुआ था। इनका बचपन काफी संघर्षों भरा रहा था। वह स्कूल जाने के लिए पैदल चलकर गंगा घाट तक का सफर तय करते थे। इसके बाद वह गंगा के पार उतरकर पैदल चलते थे। इनके पिता का नाम रवि सिंह तथा माता का नाम मनरूप देवी था।
साल 1947 में देश आजाद हुआ और दिनकर बिहार विश्वविद्यालय में हिन्दी के 'प्राध्यापक व विभागाध्यक्ष' नियुक्त हुए। फिर साल 1952 में भारत की प्रथम संसद का निर्माण हुआ, तो दिनकर को राज्यसभा का सदस्य चुना गया और वह दिल्ली आ गए। इसके बाद वह 12 सालों तक संसद के सदस्य रहे। फिर साल 1964 से 1965 तक वह भागलपुर विश्वविद्यालय के कुलपति नियुक्त हुए। इसके अगले साल यानी की 1965 से लेकर 1972 तक भारत सरकार ने दिनकर को अपना 'हिंदी सलाहकार' नियुक्त किया।
इस दौरान रामधारी सिंह दिनकर ने ज्वार उमरा और रेणुका, हुंकार, रसवंती और द्वंदगीत की रचना की। रेणुका और हुंकार की कुछ रचनाओं के प्रकाश में आते ही अंग्रेज प्रशासकों को यह समझते देर न लगी कि वह गलत व्यक्ति को अपने तंत्र का अंग बना बैठे हैं। ऐसे में दिनकर की फाइलें तैयार होने लगीं और बात-बात पर चेतावनियां मिलने लगीं। मालूम हो, 4 साल में दिनकर का 22 बार तबादला किया गया।
बता दें कि रामधारी सिंह दिनकर उत्कृष्ट कोटि के कवि ही नहीं बल्कि उच्चकोटि के गद्दकार थे। दिनकर जी ने अपने काव्य में देश के प्रति असीम राष्ट्रीय भावना का परिचय दिया है। राष्ट्रीय भावनाओं पर आधारित दिनकर जी का साहित्य भारतीय साहित्य की अनमोल धरोहर हैं। रामधारी सिंह दिनकर ही गिनती विश्व के महान साहित्यकारों में की जाती है।
शुरूआत में दिनकर ने छायावादी रंग में कुछ कविताएं लिखीं। लेकिन जैसे-जैसे वह स्वयं से परिचित होते गए। उनमें अपनी ही काव्यानुभूति पर ही कविता को आधारित करने का आत्मविश्वास बढ़ने लगा और वह उनकी कविता छायावाद के प्रभाव से मुक्ति पाती चली गई। वह स्वयं को द्विवेदी युगीन और छायावादी काव्य पद्धतियों का वारिस मानते थे।
इसके साथ के रामधारी सिंह दिनकर ने मुक्तक काव्य संग्रहों के अतिरिक्त अनेक प्रबन्ध काव्यों की रचना भी की है। जिनमें साल 1946 में 'कुरुक्षेत्र', साल 1952 में 'रश्मिरथी' और साल 1961 में 'उर्वशी' प्रमुख हैं।
रामधारी सिंह दिनकर को सरकार के विरोधी रूप के लिये भी जाना जाता था। भारत सरकार ने उनको पद्म भूषण से सम्मानित किया था। वहीं दिनकर की गद्य की प्रसिद्ध पुस्तक 'संस्कृति के चार अध्याय' के लिए उनको साहित्य अकादमी और उर्वशी के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार से नवाजा गया था। वहीं कुरुक्षेत्र के लिए दिनकर को इलाहाबाद की साहित्यकार संसद द्वारा पुरस्कृत से सम्मानित किया गया था।
वहीं 24 अप्रैल 1974 को रामधारी सिंह दिनकर ने इस दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया।